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अमित शाह ने अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी की आलोचना की

amit shah and arnab goswami

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर रिपब्लिक टीवी और उसके संपादक अर्नब गोस्वामी के खिलाफ ‘राज्य की शक्ति का दुरुपयोग’ करने का आरोप लगाया।

महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद गृह मंत्री का बयान आया है।

शाह ने ट्वीट किया, “कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने एक बार फिर लोकतंत्र को शर्मसार किया है। रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी के खिलाफ राज्य की सत्ता का दुरुपयोग और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है।”

मंत्री ने आगे कहा कि, “यह ‘आपातकाल’ की याद दिलाता है। इसका विरोध किया जाएगा।”

महाराष्ट्र पुलिस की रायगढ़ इकाई ने बुधवार सुबह रिपब्लिक टीवी के मालिक के घर पर छापा मारा और उसके मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार कर लिया।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सचिन वेज ने कहा कि, “गोस्वामी को 2018 के आत्महत्या मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था, केस को पहले बंद कर दिया गया था और अब फिर से खोल दिया गया है।”

चैनल ने 20-30 पुलिसकर्मियों के अंदर जाने और गोस्वामी को गिरफ्तार करने के बाद “एक शीर्ष भारतीय समाचार चैनल के संपादक को अपराधी की तरह, बाल को खींचकर, धमकाकर, पानी नहीं पीने की इजाजत देने” के लिए जोरदार नारा दिया।

गृहमंत्री अमित शाह के अलावा मोदी सरकार के कई अन्य वरिष्ठ मंत्रियों ने भी अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा की है। सभी ने इसे प्रेस की आजादी का दमन और इमरजेंसी जैसी कार्रवाई कहा है। भाजपा ने इस मामले में बुधवार दोपहर प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर पूरे घटना पर महाराष्ट्र सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। भाजपा मुख्यालय पर प्रेस कांफ्रेंस कर राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि इटली माफिया सरकार महाराष्ट्र में प्रेस की आजादी पर हमला कर रही है।

पढ़िए और किसने क्या कहा –

प्रकाश जावडेकर

मुंबई पुलिस की ओर से बुधवार को रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने इसे प्रेस-पत्रकारिता पर हमला बताते हुए इमरजेंसी जैसी कार्रवाई बताया है। प्रकाश जावडेकर ने ट्वीट कर कहा, मुंबई में प्रेस-पत्रकारिता पर जो हमला हुआ है वह निंदनीय है। यह इमरजेंसी की तरह ही महाराष्ट्र सरकार की कार्रवाई है। हम इसकी भर्त्सना करते हैं।

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने आगे कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में काम कर रही कांग्रेस अभी भी आपातकालीन मनोस्तिथि में है। इसी का सबूत आज महाराष्ट्र में उनकी सरकार ने दिखाया है। लोग ही इसका जवाब लोकतांत्रिक तरीके से देंगे।

अर्णब गोस्वामी को एपीआई सचिन वाजे की टीम ने बुधवार सुबह उनके घर से अरेस्ट किया। दो साल पुराने आत्महत्या के केस मामले में गिरफ्तारी बताई जा रही है। पुलिस के मुताबिक, मई 2018 में 53 साल के अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक ने अलीबाग के अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में अर्णब गोस्वामी, फिरोज शेख और नितैश सारडा को कथित तौर पर जिम्मेदार बताया गया था। मामला बकाए से जुड़ा था। हालांकि, दो साल पुराने केस में अचानक हुई गिरफ्तारी को बदले की भावना से जोड़ा जा रहा है। वजह कि अर्णब गोस्वामी महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस के खिलाफ लगातार मुखर रहे हैं।

प्रमोद सावंत

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने बुधवार को रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को ‘प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला’ करार दिया। सावंत ने ट्वीट किया, “अर्नब गोस्वामी के खिलाफ उच्चस्तरीय कार्रवाई प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है और मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं। यह महाराष्ट्र सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोग है जो राजनीति से प्रेरित है।”

साल 2018 में महाराष्ट्र के रायगढ़ पुलिस स्टेशन में दर्ज एक व्यक्ति का आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गोस्वामी को बुधवार सुबह वर्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया। इस मामले को पहले ही बंद कर दिया गया था और अब इसे फिर से खोल दिया गया है। (एजेंसी)

दक्षिणपंथी अर्नब की गिरफ्तारी ने वामपंथी खेमे के पत्रकारों की भी गिरफ्तारी के रास्ते खोल दिये

arnab goswami arrest

कुंदन कुमार झा

आपको किसी की पत्रकारिता का स्टाइल पसन्द न हो, लहजा पसन्द न हो, हो सकता है कि आपकी निजी विचारधारा के विपरीत हो, आपके चैनल का प्रतिद्वंद्वी हो लेकिन आपके और उसके लिए ‘फ्रीडम ऑफ प्रेस’ के मामले में दोनों के अधिकार बराबर होने चाहिए और इसको बनाएं रखने के लिए दोनों को एक दूसरे के साथ खड़ा होना ही चाहिए।

अगर यह ‘फ्रीडम ऑफ प्रेस’ का रक्षा कवच टूटा तो यहां ‘त्रिवेदी’ के भी बचने की गुंजाइश नहीं होगी क्योंकि सत्ताधीशों की एकता कभी नहीं टूटती।

वैसे पिछले कुछ समय से लोगों को अब पहचानने में दिक्कत नहीं होती कि अमुक पत्रकार दक्षिणपंथी खेमे से है या फिर वामपंथी खेमे से। अब पत्रकारिता में छद्म जैसा कुछ है भी नहीं जिसे पहचानने में राकेट साइंस लगाने की जरूरत पड़े।

वहीं दूसरी ओर अगर वामपंथी पत्रकारों को बलात्कार जैसे मामलों में तरुण तेजपाल की गिरफ्तारी और अर्नब के मामलें में समानता दिख रही है तो माफ कीजिये आपकी बुद्धि तरुण तेजपाल जैसी ही वहशीपने के लेवल तक पहुंच चुकी है।

किंतु-परंतु से हटकर अगर अर्नब मामलें में किसी भी प्रकार से सरकारी मिशनरी का दुरुपयोग आपको अभी नहीं दिख रहा है और इसकी तुलना आप प्रशांत कनोजिया जैसे जहरीले संपोलों से कर रहे है तो आपकी मानसिकता भी परलोकागमन के लिए तैयार हो चुकी है।

कायदे से वामपंथी गिरोह के कामरेडों का इलाज उसी टाइम हो जाना चाहिए था जब सुपारी दुर्बुद्दिजीवियों की आधी जमात का बड़े से बड़ा मठाधीश #Metoo कैम्पेन में धराएं गए थे। समय से इलाज हो गया होता तो मौजूदा पत्रकारिता में गलाकाट प्रतियोगिता के तहत वामपंथी खेमा अर्नब की गिरफ्तारी नहीं करवा पाता।

वैसे आज दक्षिणपंथी खेमे के पत्रकार अर्नब की गिरफ्तारी से कम से कम भाजपा की राज्य सरकारों से भी वो मनोवैज्ञानिक दबाव खत्म हुआ होगा जिसमें पत्रकारों की गिरफ्तारी से पहले सोचना पड़ता था क्योंकि इस तरफ अर्नब के पाप देखे जा रहे है तो दूसरी तरफ क्विंट, वायर, Alt, NDTV, THE PRINT और बेनामी दर्जनों सुपारी लेकर बैठे वेबसाइट्स आदि के अपराध भी कम नहीं हैं।

बधाई हो!

अन्तोगत्वा पत्रकारों का खेमा बंट चुका है और इसका फायदा समय-2 पर वामपंथी और दक्षिणपंथी सरकारों को ही होगा क्योंकि जिस बेलगाम प्रेस पर लगाम लगाने की दिल में तमन्ना लिए दोनों विचारधारा की सरकार घूम रही थी उनके हाथ अंधेरे में ही सही पत्रकारों के विभाजन से ब्रह्मास्त्र लगा है और पत्रकारों के हाथ में ….सच देखने के लिए…तेज देखने के लिए…पुष्ट खबरों के प्रकाशन के लिए यहां आए, दूसरों के यहाँ न जाये…की दौड़ हाथ लगी है।

यहाँ पर मुझे पंचतंत्र की वो कहानी याद आ रही है जिसमें दो बिल्लियों की लड़ाई का फायदा बंदर ले जाता है। दो बिल्लियों से मतलब दक्षिणपंथी और वामपंथी पत्तरकारों से है और बंदर से मतलब सरकार से जिसकी सिर्फ एक विचारधारा होती है ‘सत्ता’।

निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि , दक्षिणपंथी अर्नब की गिरफ्तारी ने वामपंथी खेमे के पत्रकारों की भी गिरफ्तारी के रास्ते खोल दिये है.

अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी और मीडिया का मौन

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रीवा सिंह, पत्रकार, ऑनलाइन मीडिया

लगभग 7 वर्ष पहले आउटलुक और नेटवर्क 18 से 200 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बाकी मीडियाकर्मी चुपचाप अपना काम करते रहे। किसी दिग्गज-दिलेर पत्रकार के मुंह से विरोध के स्वर नहीं फूटे जब कुछ वर्ष पहले दैनिक भास्कर अपने लोगों को अनायास ही टाटा कह रहा था।

मिलिंद खांडेकर और पुण्य प्रसून वाजपेयी एबीपी से बाहर हुए तो भी कोई क्रांति नहीं हुई, पत्रकारों ने यह भी कहा कि जब इनकी बोलने की बारी थी तब ये चुप रहे जबकि इनके बोलने से बदल सकती थी सूरत।

जब रवीश कुमार को फुटकर के भाव में धमकियां मिलती हैं जो कभी भी सच में तब्दील हो सकती हैं तब भी नहीं आता कोई होनहार पत्रकार यह कहने कि हम साथ हैं।

छोटे पत्रकार तो वो छोड़कर जो करने आये थे, वो सबकुछ कर रहे हैं जिससे पेज व्यूज़ आयें, टीआरपी आये, ग्रोथ मिले प्लैटफ़ॉर्म को। वो मीडियाकर्मी रह गये हैं। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता, यह समझ रहे हैं और उनकी क्रांति क्लर्की बनती जा रही है।

पत्रकारों को आदत ही नहीं रही है साथ खड़े रहने की, एकजुट रहने की इसलिए बाहर से सुपरमैन दिखने वाले ये प्रेसकर्मी शोषित रहते हैं – दूसरों के हक़ की बात करना, अपने हक़ पर मौन हो जाना।

ख़ूब बात हुई बेरोज़गारी की, नौकरी छूटने की लेकिन किसी मीडिया प्लैटफ़ॉर्म पर नहीं दिखा कि कितने पत्रकारों को कोविड का हवाला देकर घर बिठा दिया गया। पत्रकार लिखते रहे जीडीपी की गिरावट, नहीं लिख सके कि वेतन इतना कट गया है कि इएमआई देना मुहाल हुआ है।

नहीं लिखते हैं कलम के क्रांतिवीर यह सब, मैं लिखती हूं तो उसकी क़ीमत चुकाती हूं और चुका रही हूं। किसी मीडिया हाउस को इतना बेबाक कर्मचारी नहीं चाहिए। फिर भी बोलने का जोखिम उठा रही हूं कि नहीं हुआ कुछ तो खेती ही करूंगी। बंजर होने से बेहतर है।

अर्णब गोस्वामी की पत्रकारिता आपको निराश-हताश करती होगी। You might have had issues with his idea of journalism but should that stop him from speaking? What happened to tolerance now? Where’s the freedom of speech? Don’t remind me that it’s abided by terms and conditions when you can see the arbitrariness of the Maharashtra govt.
Remember Voltaire said – “I may not agree with what you have to say, but I will defend to the death your right to say it.”

दो वर्ष पुराने केस में जिसे बंद किया जा चुका था, दोबारा खोला गया और सुबह सात बजे मुंबई पुलिस एंटी टेररिज़्म स्क्वॉड के साथ उनके घर पर थी। यहां तक सब न्यायोचित था भले मनमानी के लिये ही किया गया हो। राइफ़ल्स के साथ स्क्वॉड का उनके घर पहुंचना अजीब है, अजीब तो उन्हें जबरन खींचते-घसीटते हुए वैन में बिठाना भी है। सवाल कहां हैं? किधर हुए?

आपको उनकी पत्रकारिता नापसंद हो सकती है लेकिन एक पत्रकार के साथ पुलिस के इस व्यवहार पर आपत्ति सिर्फ़ इसलिए नहीं है क्योंकि आप उसके विचारों से इत्तेफ़ाक नहीं रखते तो वॉल्टेयर के कथन को कूड़ेदान में ही रखा करें। निष्पक्ष आप तबतक ही हैं जबतक अपने विरोधी विचारों के हाशिये पर जाने पर आप उत्फुल्ल नहीं होते। उनकी गिरफ़्तारी पर लहालोट हो रहे हैं तो ग़ज़ब हैं आप।

कमरे में चारों ओर से घेर लेना, कंधा दबाकर सोफ़े पर बिठाना, खींचकर कभी हाथ, कभी कंधा पकड़ते हुए झटके से वैन में घुसाना, इसकी क्या ज़रूरत थी? अर्णब कहीं भाग रहे थे? वे आतंकवादी हैं? क्या उनके साथ सही व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए था?

प्रेस क्लब जैसी जगहें सस्ती शराब का अड्डा भर हैं, कोई गिल्ड और कमीटी एकजुट नहीं होती ऐसे किसी भी वाकये पर। वैचारिक मतभेद का दर्द इस तरह भरा हुआ है कि कोई सोच ही नहीं पा रहा कि यह हश्र एक पत्रकार के साथ हो रहा है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तो वैसे भी भगवान भरोसे है, ऐसे सभी लोकतंत्र ट्रायपॉड स्टैंड पर खड़े हैं लेकिन पत्रकारों ने एक चीज़ में तारतम्यता बनाये रखी है और वह है अपने लिये चुप रहने की।

अर्णब के लिये तो फिर भी संबित पात्रा से लेकर अमित शाह तक बोल चुके। वहां कोई दूसरा पत्रकार भी हो सकता था जो निष्पक्ष होता, निर्भीक होता… उसका भी यह हश्र होता। यह हश्र तथाकथित प्रहरी का हो रहा है जिससे लोकतंत्र को परहेज़ है।

अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी की पत्रकारों ने की निंदा

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रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी की महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की गयी गिरफ्तारी की पत्रकारों ने भर्त्सना की है. पत्रकारों ने इसे मीडिया की स्वतंत्रता के लिहाज से खतरनाक माना है और अपनी असहमति जताई है. इसमें ऐसे भी पत्रकार हैं जो अर्नब की पत्रकारिता से असहमति रखते हैं. आइये जानते हैं किस पत्रकार ने क्या कहा –

राहुल देव, वरिष्ठ पत्रकार

अर्नब की गिरफ़्तारी के तरीक़े का विरोध उन की पत्रकारिता का समर्थन नहीं है। दोनों में फ़र्क़ करने का विवेक हममें होना चाहिए। अर्नब ने गंभीर पत्रकारीय अपराध किए हैं। उन पर कार्रवाई प्रेस परिषद को करनी चाहिए। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस का इस पूरे प्रकरण में व्यवहार शुद्ध बदला लेना ही है.

रजत शर्मा, प्रधान संपादक, इंडिया टीवी

I condemn the sudden arrest of Arnab Goswami in an abetment to suicide case. While I don’t agree with his style of studio trial, I also don’t approve of misuse of state power to harass a journalist. A media Editor cannot be treated in this manner

vir sanghvi @virsanghvi

No matter whether you agree with his journalism or not, all of us should condemn the way in which the police have arrested Arnab Goswami.

रुबिका लियाकत, न्यूज एंकर, एबीपी न्यूज

अर्नब से सहमत हो न हो इस बात पर हम सब को सहमत होना ज़रूरी है कि उनके साथ जो हो रहा है वो सरासर ग़लत है। असहमति के मायने अगर गिरफ़्तारी है तो आगे आपकी बारी है।

TV9 का आधिकारिक बयान

अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को बदले की कार्यवाही बताता है। यह सीधा सीधा लोकतंत्र पर हमला है। TV9 ग्रुप के CEO @justbarundas , TV9 भारतवर्ष के न्यूज डायरेक्टर @hemantsharma360 और TV9 मराठी के एडिटर @umeshk73 ने #ArnabGoswami की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया.

सुमेरा, न्यूज एंकर, टीवी9

#ArnabGoswami की गिरफ़्तारी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है. #ArnabGoswami के साथ जो हुआ है वो कल किसी और के साथ होगा इसलिए इस मुद्दे पर खुल कर बोलिए।ये वक्त ये सोचने के लिए भी है कि ना जाने कितने दूर दराज़ के इलाक़ों में अलग अलग राज्यों में काम करने वाले पत्रकारों का ऐसा शोषण होता है लेकिन वो सुर्ख़ियाँ नहीं बन पाते ।

Prema Sridevi @premasridevi

I had worked wit #ArnabGoswami for 15 yrs, perhaps the only journalist to work wit him for so long. Wen it came to the way we do news, many times we hav been on opposite ends but im deeply hurt to see the way he was arrested, timing of his arrest, the vendetta being played out

Shobhaa De @DeShobhaa

No matter what you think of Arnab Goswami and his brand of “journalism”, police action against him is shocking in a democracy. Assault and intimidation by cops is not acceptable under any circumstances!
#ArnabGoswami

उमेश चतुर्वेदी Umesh Chaturvedi @uchaturvedi

National Union of Journalists (India) strongly condemns arrest of the #RepublicTVLive editor @TeamsArnab Goswami by Mumbai police. Clear cut vindictive action on behest of Maharashtra Government. Assault on Freedom of Press.

Manak Gupta @manakgupta

Arrest in a 2-3 year old case which had been closed by police itself…!! This is wrong. Plane and simple. Shows desperation #ArnabGoswami.

Navika Kumar @navikakumar

The coercive arrest of #ArnabGoswami is against the spirit of Press Freedom. A counter productive move in a Democracy. There’s one basic Tenet enshrined in our Constitution. Right to Freedom of Expression. Agree disagree but can’t compromise FoE.

Indian Digital Media Association @IndiaIDMA

Statement condemns state high-handedness used by the Maharashtra government displayed against Republic TV and Mr. Arnab Goswami. IDMA vows to fight

Anuranjan Jha

#अर्णबगोस्वामी को बिना पूर्व नोटिस, सुबह सुबह एक आतंकवादी की तरह गिरफ्तार किया जाना और घसीटकर ले जाया जाना फासिज्म का नमूना है। इस गिरफ्तारी पर वो सारे चुप हैं जो पिछले 6 साल से देश में इमरजेंसी का रोना रो रहे हैं। वो सब चुप रहेंगे क्यूं उनको #हूंबोहूंबो करने की आदत है। वो सब चुप रहेंगे जिनको #अर्णब की तरक्की पसंद नहीं है और वो सब भी चुप रहेंगे जिन्हें अगर #अर्णब कल बुलाकर अपने चैनल में नौकरी दे दें तो चुपचाप गुलगुले खा लें। ये चुप्पी खतरनाक है। सब आएँगे जद में। सरकारों को शर्म आनी चाहिए।

गिरीश पंकज

मैं मानता हूं कि आर भारत चैनल के अर्णब गोस्वामी की प्रस्तुति शालीन होनी चाहिए। बहुत अधिक उत्तेजित होकर घटनाओं के बारे में चर्चा करना गलत है। संयत स्वर में भी बात कही जा सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप एक व्यक्ति को पूरी तरह से नष्ट करने पर उतारू हो जाएं।

महाराष्ट्र में मीडिया के दमन करने का जो दृश्य आज मैंने टीवी पर देखा, वैसा दृश्य इस देश की परंपरा रही है । राज्य कोई भी हो, वहाँ सरकार किसी की भी हो, अगर उसके खिलाफ है कोई लिखेगा या बोलेगा तो उसका दमन स्वभाविक है। हमारे राजनेता लोकतंत्र की बात तो करते हैं लेकिन अभिव्यक्ति का गला घोटते रहते हैं। आप जल संकट पर बात कर सकते हैं। लोक कला की दशा और दिशा पर घंटों बहस कर सकते हैं। समाज के नैतिक पतन पर आंसू बहा सकते हैं,मगर सरकार के रवैये पर निरंतर प्रहार किया, तो तुम्हारी खैर नहीं । और वही हुआ आर भारत के अर्णव गोस्वामी के साथ ।

पुलिस ने दो साल साल पहले बंद पड़े एक मामले को पुनः खोलकर अर्णव को गिरफ्तार किया है। इसके पहले हीरोइन कंगना राणावत भी महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मुखर थी, तो हमने देखा, उसके ऑफिस को तोड़ दिया गया। आश्चर्य की बात यह है कि एक मीडिया के दामन पर बाकी मीडिया बेहद खामोश है। एक घर को जलता हुआ देखकर दूसरा घर वाला खुश हो जाय, यह भारत देश में ही संभव है।

मैंने वर्षी तक सक्रिय पत्रकारिता में भागीदारी अदा की है। रायपुर में भी यह महसूस किया है कि एक मीडिया हाउस पर कोई संकट आता है तो दूसरा मीडिया हाउस मज़ा लेता है। और जब मज़ा लेने वाले पर संकट आता है तो दूसरा मीडिया हाउस आनन्दित होता है जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे वक्त पर सभी को एक हो कर विरोध करें। हैरत केंद्र सरकार में बैठे मंत्रियों को देखकर हो रही है । उनके निंदा वाले बयान तो जरूर आ रहे हैं लेकिन उनमें इतना आत्मबल नहीं है कि वह राज्य सरकार को लताड़ सकें। केंद्रीय गृह मंत्री महाराष्ट्र के अत्याचारी डीजीपी परमबीर सिंह पर तो कार्रवाई कर ही सकते थे ।

अमर उजाला के पत्रकार राघवेंद्र नारायण मिश्रा का आकस्मिक निधन

journalist Raghavendra Narayan Mishra dies
journalist Raghavendra Narayan Mishra dies

अमर उजाला, लखनऊ के डिप्टी एडिटर राघवेंद्र नारायण मिश्रा की आज रात 8:00 बजे हृदय गति रुक जाने से अचानक मौत हो गई।

वे अपने पैतृक जिला देवघर (झारखंड) गए थे। वहीं अचानक वह बेहोश होकर गिर पड़े।

उन्हें तत्काल पास के अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

बड़ी त्रासदी यह कि परसों ही उनकी बड़ी बहन का निधन हो गया था।

राघवेंद्र जी मेरठ शिमला और जम्मू कश्मीर में भी रहे हैं।

उनके लघु भ्राता रामानुग्रह प्रसाद नारायण मिश्र दैनिक जागरण, रांची में वरिष्ठ पत्रकार हैं।

परमात्मा राघवेंद्र जी को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।

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