सलीम अख्तर सिद्दकी-
कल सड़कों पर चिरपरिचित नजारा एक बार फिर दिखाई दिया। अब लग्जरी गाड़ियों पर भाजपा का झंडा फहराने लगा है। ये वे गाड़ियां हैं, जिन पर 11 मार्च से पहले सपा का झंडा लगा होता था। ये वो नस्ल है, जो सत्ता बदलते ही रंग बदल देती है। यह वही नस्ल है, जिन्होंने मौके की नजाकत को देखते हुए मुगलों के आगे सिर झुकाया तो अंग्रेजों के आते ही उनकी गुलाम करने लगे। ये नस्ल आजादी के बाद भी मौके के हिसाब से रंग बदलती रही है। इनकी न कोई विचारधारा होती है, न सिद्धांत। मौका आने पर ये जय समाजवाद भी बोल सकते हैं और जयश्रीराम का उद्घोष भी कर सकते हैं। एक सीनियर पत्रकार ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार ऐसा होगा कि हिंदू अपने तीज त्योहार बिना किसी खौफ के मना सकते हैं। मानसरोवर यात्रा पर सब्सिडी देने के ऐलान पर भी ये पत्रकार महोदय गदगद हैं। अब उनकी मानसरोवर यात्रा पर जाने की इच्छा होने लगी है। जैसे इससे पहले उन पर वहां की यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा हुआ था। उनकी बातों से आभास होता है, जैसे कहना चाह रहे हों कि अब हमारी बारी है, अब तुम अपने तीज त्योहार खौफ के सामने मनाओगे। पत्रकार महोदय कहते हैं, मैं बेबाक होकर लिखता हूं। किसी से डरता नहीं हूं। उनकी ये अदा हमें भी पसंद है, इसलिए हम भी बेबाक होकर ही उनके बारे में लिख रहे है। अच्छा है कि बहुत लोगों के चेहरों से नकाब उठ रहा है। उन जैसे लोगों से वे उम्मीदें तो टूटेंगी, जो हम जैसों लोगों ने लगा रखी हैं। अभी और चेहरे बेनकाब होंगे।
तेल देखिए, तेल की धार देखिए।
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