(सार्थक कुमार,दर्शक)-
सब्जी मंडी में सब्जी लेने आप जरूर जाते होंगे और आपको जरूर याद होगा कि वहां का नज़ारा कैसा होता है. सारे सब्जी वाले जोर-जोर से अपना-अपना रेट बताते रहते हैं. मसलन आलू बीस रूपये की दो किलो, ले लो – ले लो, इससे सस्ता कहीं नहीं मिलेगा. फिर दूसरा – तीसरा …….. सब ऊँची आवाज़ में चिल्लाते रहते हैं. कई बार ऊँची आवाज़ लगाने वाले की सेल भी ज्यादा हो जाती है. लेकिन सब्जी खरीदने वाला इस पूरे माहौल से एक अजीब से दबाव में आ जाता है और कई बार असमंजस में भी फंस जाता है कि किससे सब्जी ख़रीदे. बहरहाल उसकी कोशिश होती है कि जल्द-से-जल्द सब्जी खरीद कर यहाँ से निकला जाए. ताकि इस सब्जी बाजार के माहौल से मुक्ति पाकर चैन की साँस ली जाए. तभी ज्यादा हंगामा होने पर कहने लगते हैं कि कितना हंगामा कर रहे हो, सब्जी बाजार बना दिया है.
बहरहाल ये तो बात हुई सब्जी बाजार की, लेकिन यदि ऐसा माहौल किसी चैनल पर बहस के नाम पर रच दिया जाए तो सोंचिये दर्शकों को कैसा लगेगा. हालाँकि ऐसा माहौल अब रोजाना ही हर दूसरे न्यूज़ चैनल पर दिखाई देते ही रहता. अंग्रेजी चैनल भी इसमें पीछे नहीं. लेकिन बिजनेस चैनल पर इस तरह का रायता फैले तो ताज्जुब होता. ज़ी बिजनेस पर जेएनयू मुद्दे पर बहस के दौरान ऐसा ही हुआ जब सारे वक्ता – प्रवक्ता और एंकर ऐसे चीखे – चिल्लाये कि तौबा- तौबा. बहस के दौरान कोई किसी को बोलने देने को तैयार नहीं था. ऐसा लग रहा था कि सब एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं और आज स्टूडियो में ही एक – दूसरे को कूट देंगे. फिर भाजपा के प्रेम शुक्ला की बात ही निराली है. शिवसेना के समय से वे बिना ऊँगली दिखाए बिना बात नहीं कर पाते. मानो बहस नहीं लठैती करने आए हो.
एंकर भी निराले हैं. एंकर की भूमिका न्यूट्रल एम्पायर से ज्यादा कुछ नहीं लग रही थी. एक खास पक्ष के प्रति झुकाव और दूसरे पक्ष के प्रति आक्रमकता साफ़-साफ़ झलक रही थी. बहरहाल सबने मिलकर ज़ी बिजनेस पर राजनीतिक बहस के नाम पर सब्जी मंडी लाइव का परिदृश्य बना दिया. (समाचार चैनलों का एक कट्टर दर्शक)
देखिये बहस की एक झलक(वीडियो) –
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