मुजफ्फरपुर (बिहार). बदनाम हुए तो क्या नाम तो हुआ. ज़ी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी यक़ीनन इस कहावत पर विश्वास करते होंगे और संभवतः इसीलिए इसे अपने पत्रकारिता जीवन का स्वर्ण काल मान कर चल रहे होंगे.
हाल के दिनों में ऐसी चर्चा किसी पत्रकार, संपादक या मीडिया से जुड़े आदमी की नहीं हुई होगी जितनी सुधीर चौधरी की हुई. ये बात अलग है कि ऐसी चर्चा पर पर कोई गर्व नहीं कर सकता.
बहरहाल खबरिया चैनलों के माध्यम से सुधीर चौधरी और उनकी उगाही कथा महानगरों और छोटे शहरों से होते हुए गाँवों तक पहुँच गयी है और लोग घूरा पर इसकी चर्चा करने लगे हैं.
घूरा का मतलब नहीं समझे. मतलब गाँव के जीवन से आप वाकिफ नहीं है. गाँव से ताल्लुक रखने वाले घूरा का मतलब समझते होंगे. घूरा तापना गाँव में बहुत आम शब्द है और कंपकंपाती ठंढ में भी गप्पबाजी का अड्डा. शहर वाले इस घूरा को अलाव कह सकते हैं.