Home Blog Page 1030

न्यूज24 पर निर्मल बाबा रिटर्नः जो चैनल खुद का नहीं है वो आपका-हमारा क्या होगा ?

न्यूज़ 24 और निर्मल बाबा एक – दूसरे के बिना ज्यादा दिन तक नहीं रह सकते. आलोचना, मीडिया की नैतिकता और कोर्ट – कचहरी के चक्कर में चैनल और बाबा अलग तो हो गए , लेकिन सच्ची मुहब्बत थी सो फिर दोनों आ मिले . न्यूज़ 24 के स्क्रीन पर निर्मल बाबा रिटर्न कर चुके हैं. दरअसल दोनों ने एक – दूसरे को बहुत कुछ दिया है. निर्मल बाबा को और अधिक प्रसिद्धि मिली तो न्यूज़24 को टीआरपी के साथ – साथ मुद्रा की भी प्राप्ति हुई. अब फिर दोनों पुराने इतिहास को दुहरा रहे हैं और पाखण्ड एक बार फिर से लाइव है. मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार का विश्लेषण (मॉडरेटर)

news 24 nirmal babaन्यूज 24 पर निर्मल बाबा का विज्ञापन एक बार फिर से बदस्तूर जारी है. एक ऐसे चैनल पर जिसका शुरु से नारा ( इसे नारा तक ही समझें) रहा है- न्यूज इज बैक. न्यूज कितनी और किस तरह से बैक हुई, इस पर तो अळग से शोध की जरुरत है लेकिन इतना जरुर है कि एक ऐसे शख्स के गुणगान में विज्ञापन की वापसी हुई है जिसे दूसरे चैनलों के साथ-साथ खुद न्यूज24 लगभग खलनायक साबित कर चुका था. ये अलग बात है कि टीवी की दुनिया में निर्मल बाबा का आगमन इसी चैनल के जरिए हुआ और इतना ही नहीं इसने पेड कार्यक्रम और विज्ञापन को इस तरीके से दिखाया कि ये टीआरपी चार्ट तक में शामिल हो गया. मतलब विज्ञापन की टीआरपी न्यूज कंटेंट में आ गयी. इसे लेकर सोशल मीडिया पर घड़ीभर के लिए हो-हल्ला हुआ लेकिन बात आगे तक नहीं गई और सवाल इस पर भी नहीं उठा कि आखिर ये सब हुआ कैसे और टैम के लोग भांग खाकर रिपोर्ट जारी करते हैं क्या ?

विष्णुगुप्त का लेख मार लिया अखबार ने और क्रेडिट भी नहीं दिया

हिन्दी के अखबारों में अनपढ़ और अपराधी टाइप के लोगों का आधिपत्य हो गया है। सरकारी विज्ञापन हासिल कर धनवान बनने की इच्छा से कुकुरमुत्ते की तरह अखबारों की बाढ़ आ गयी।

अखबारों न तो संपादक होता है और न ही संपादकीय टीम होती है। चोरी और बिना ऐडिट के समाचार-लेख प्रकाशित करते हैं। एक ऐसा ही अखबार है जिसका नाम है ‘जगतक्रांति‘। यह अखबार हरियाणा के जींद से निकलता है।

जगतक्रांति अखबार ने एक जनवरी 2013 को ‘तेलंगाना पर आग-पानी का खेल‘ नामक शीर्षक मेरे लेख को किसी दूसरे के नाम से छाप दिया और खंडन भी नहीं छाप रहा है।

क्या ऐसे अखबारों और उनके मालिकों के खिलाफ सरकारी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए, क्या प्रेस परिषद जैसे नियामकों को स्वयं संज्ञान नहीं लेना चाहिए? (पत्रकार और स्तंभकार विष्णुगुप्त के वॉल से)

लड़कियां चूमती है तो मर्दों की चड्डी बिकती है !

television advertisment

thermocot-ad1. जिस देश में दो सौ रुपये के एक रुपा थर्मॉकॉट बेचने के लिए नेहा,स्नेहा जैसी कुल छह लड़कियों को स्वाहा करने की जरुरत पड़ जाती हो. 60-70 की चड्डी पहनते ही दर्जनों लड़कियां चूमने दौड़ पड़ती हो, सौ-सवा रुपये की डियो के लिए मर्दों के मनबहलाव के लिए आसमान से उतरने लग जाती हो. कंडोम के पैकेट हाथ में आते ही वो अपने को दुनिया की सबसे सुरक्षित और खुशनसीब लड़की/स्त्री समझने लग जाती हो..वहां आप कहते हैं कि हम मीडिया के जरिए आजादी लेकर रहेंगे. आप पलटकर कभी मीडिया से पूछ सकते हैं कि क्या उसने कभी किसी पीआर और प्रोमोशनल कंपनियों से पलटकर सवाल किया कि बिना लड़की को बददिमाग और देह दिखाए तुम मर्दों की चड्डी,डियो,थर्मॉकॉट नहीं बेच सकते ? हॉट का मतलब सिर्फ सेक्सी क्यों है,ड्यूरेबल का मतलब ज्यादा देकर टिकने(फ्लो नहीं होने देनेवाला) क्यों है और ये देश स्त्री-पुरुष-बच्चे बुजुर्ग की दुनिया न होकर सिर्फ फोर प्ले प्रीमिसेज क्यों है ? तुम अपना अर्थशास्त्र तो बदलो,देखो समाज भी तेजी से बदलने शुरु होंगे..

2. टेलीविजन के विज्ञापन और उनका कंटेंट दो अलग-अलग टापू नहीं है. इस पर बात करने से एडीटोरिअल के लोग भले ही पल्ला झाड़ ले और मार्केटिंग वालों की तरफ इशारा करके हम पर ठहाके लगाएं लेकिन दर्शक के लिए वो उसी तरह की टीवी सामग्री है जैसे उनकी तथाकथित सरोकारी पत्रकारिता. उस पर पड़नेवाला असर भी वैसा ही है..अलग-अलग नहीं. आप दो सरोकारी खबरे दिखाकर दस चुलबुल पांडे हीरो उतारेंगे तो असर किसका ज्यादा ये कोई भी आसानी से समझ सकता है. ऐसे में सवाल सरोकारी खबरों की संख्या गिनाकर नेताओं की तरह दलील पेश करने का नहीं है, सवाल है कि आप जिस सांस्कृति परिवेश को रच रहे हैं क्या उसे संवेदनशील समाज का नमूना कहा जा सकता है..क्या आपके हिसाब से स्त्री देह को रौंदने,छेड़ने,मजे लेने की सामग्री के बजाय एक अनुभूति और तरल मानवीय संबंधों की तरफ बढ़ने की खूबसूरत गुंजाईश भी है. अस्मिता और पहचान की इकाई भी है ? आप जो इसके जरिए फोर प्ले की वर्कशॉप चला रहे हैं, उससे अलग तरीके से भी समाज सोचता है ? ये कौन सा उत्तर-आधुनिक मानवीकरण है जहां गाड़ी से लेकर थर्मॉकॉट तक स्त्री देह होने का आभास कराते हैं और जिसके पीछे मर्द दिमाग पिल पड़ता है ? माफ कीजिएगा, इस सहजता के साथ अगर आप काम कर रहे होते तो आप खुद भी कटघरे में खड़े नजर नहीं आते ?

3. इस कड़कड़ाती ठंड में भी क्या आप सचमुच इतनी गर्मी चाहते हैं कि आपके आगे नेहा,स्नेहा सहित पीले स्कार्फवाली प्रिया, ट्रेडमिलवाली त्रिशा, प्रीति,स्वीटी, पोल्का डॉट अम्ब्रेलावाली अनन्या और लेबेंडर लैपटॉप वाली अनन्या सब इसके आगे स्वाहा हो जाए. आप इन सभी लड़कियों की तस्वीरें देखिए…हमारे आसपास हजारों-लाखों ऐसी ही लड़कियां. मां-बाप जब अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के सपने देखते हैं तो इन्हीं सबों की छवि ध्यान में आते होंगे..जो पढ़ी-लिखी,आजाद, बहादुर होगी..इस विज्ञापन ने इन लड़कियों की छवि क्या बना दिया जो एक लंपट मर्द के आगे स्वाहा. आप करेंगे, गांधी की तरह मैनचेस्टर कपड़े की जगह रुपा थर्माकॉट को आग लगा देंगे, विज्ञापन को तत्काल रोकने की मांग करेंगे या फिर उस टीवी की शीशा फोड़ देगे जिस पर इस विज्ञापन के ठीक बाद गैंग रेप पर जोरदार बहस होगी ? (विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से )

मैं हूँ बलात्कारी हन्नी सिंह के गाने पर एफआईआर दर्ज होना हास्यास्पद

“मैं हूं बलत्कारी” हन्नी सिंह के इस गाने को लेकर माहौल गर्म है और जो टीवी चैनल कल तक जया बच्चन के आंसू को बॉलीवुड संवेदना का घोषणापत्र के रुप में प्रोजेक्ट कर रहे थे, अब सवाल कर रहे हैं क्या सिर्फ दिखावे के आंसू से काम चल जाएगा ? देखें तो इससे पहले हम दिक्कत होने पर लंपट को पिल्स खाने की सलाह देकर पल्ला झाड़ चुकनेवाले गाने चुपचाप पचा गए हैं. और इससे पहले भी डार्लिग के लिए बदनाम होनेवाली मुन्नी और शीला की जवानी को. जिगरमा बड़ी आग है पर न जाने कितने वर्दीधारियों ने नोटों की गड्डियां उड़ायी होंगी ? अब खबर है कि हन्नी सिंह पर एफआइआर दर्ज हो रहा है..कितना हास्यास्पद है न..सवाल हमारी अचर-कचर को लेकर बढ़ रही हमारी पाचन क्षमता पर होनी चाहिए तो ह्न्नी सिंह को प्रतीक प्रदूषक बनाकर मामला दर्ज हो रहा है..आप रोजमर्रा के उन सांस्कृतिक उत्पादों का क्या कर लेंगे जो पूरी ताकत को इस समाज को फोर प्ले प्रीमिसेज में बदलने पर आमादा है. आप उस मीडिया का क्या करेंगे जो बहुत ही बारीकी से छेड़खानी,बदसलूकी और यहां तक कि बलात्कार के लिए वर्कशॉप चला रहा है. हम प्रतीकों में जीनेवाले और गढ़नेवाले लोग क्या कभी उस चारे पर सवाल उठा सकेंगे जो दरअसल अपने आप में दैत्याकार अर्थशास्त्र रचता है.

अंतर्राष्ट्रीय न्यायायिक जाँच की मांग !

16 दिसंबर,2012 की रात,दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार की शिकार 23 वर्षीया युवती.आख़िरकार 29 दिसंबर,2012 को जीवन से जंग लड़ते-लड़ते सिंगापुर में मौत से हार गयी,जिसका नाम सिर्फ दिल्ली पुलिस और सरकार जानती है,बावजूद इसके पीड़िता के मौत पर हम सवाल उठा रहे हैं.अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला अधिकार,आजादी और न्याय के लिए कार्यरत संस्थाओं से जबाब मांगते हुए,इस पूरे प्रकरण की निम्नलिखित बिंदुओं पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक जाँच की मांग करते हैं…

1. पीड़िता युवती जब अस्पताल पहुंची,किस हालत में थी…?

2. प्राथमिक उपचार में कौन-कौन सी दवा दी गयी और मेडिकल जाँच की गयी.जरुरत क्या थी,किया क्या गया…?

3. इण्डिया (भारतीय नहीं) के डाक्टरों ने उसके कितने आपरेशन किये गये और क्यों..?

4. किस अवस्था में पीड़िता ने जूस पीया,टहली और बयान दर्ज करायी.क्या वह इस अवस्था में थी…?

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें