‘क्रांति गाथा’ का लोकार्पण
– साहित्य का धर्म बड़ा व्यापक है
– दामिनी का कलंक इस संसार पर लगता रहेगा, हमारा काम इसे रोकना है।
– फुकियामा ने कहा था विचार का अंत नहीं हुआ है..
– जिसमें सृजन की चेतना है वही साहित्यकार है
23 जनवरी को सहरसा विधि महाविधालय में डा. जी. पी. शर्मा रचित काव्य ग्रंथ ’क्रांति गाथा’ का लोकार्पण करते हुए डा. रमेन्द्र कु. यादव ’रवि’ (पूर्व सांसद व संस्थापक कुलपति भू.ना.मं. विश्ववि. मधेपुरा ) ने कहा कि विगत चालीस वर्षों में ‘क्रांति गाथा’ जैसी पुस्तक पढ़ने का पहली बार मौका मिला, 1857 से 1947 तक के भारतीय मुक्तिा संघर्ष के इतिहास को काव्यात्मक शैली में पिरोकर कवि डा. जी. पी. शर्मा ने भारतीय जनमानस का बड़ा उपकार किया है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा धर्म साहित्य का सृजन है, जिसमें सृजन की चेतना है वही साहित्यकार है। हम युग को बदलते हैं युगधर्म बदलते हैं। हम क्र्रांति को पालते हैं क्रांति का प्रचार प्रसार करते हैं।
इतिहासकार एवं,वरिष्ठ कवि हरिशंकर श्रीवास्तव ’शलभ’ ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद के इतिहास के प्रमाणिक वृतांतों को बड़ी निष्ठा और परिश्रम से सुंदर, सरल, सुबोध एवं सार्थक काव्यमयी वाणी देकर कवि ने गाथा काव्य परंपरा को आगे बढ़ाने का सारस्वत प्रयास किया है। प्रो. आचार्य धीरज ने कहा कि बदलाव हुआ है क्रांति नहीं! विचार का भावात्मक रूप ही साहित्य है.. वस्तुतः विचार का अंत नहीं हुआ है जैसा कि सोवियत संघ के विघटन पर फ्रेंसिस फुकियामा ने कहा था।
साहित्यिक पत्रिका ‘क्षणदा’ के संपादक सुबोध कुमार सुधाकर ने कहा कि देश और काल के अनुरूप परिभाषाएँ तथा मान्यताएँ बदलती रहती है। वत्र्तमान साहित्य में जब गद्यमय साहित्य सरस कविता हो सकती है, हाइकु विधा साहित्य की कोटि में आ सकती है तो डा0 शर्मा का यह काव्य ग्रन्थ ‘क्रांति गाथा’ शास्त्रीय मतान्यताओं से किंचित हट कर भी महाकाव्यत्व को क्यो नहीं प्राप्त कर सकता ! निःसंकोच ‘क्रांति गाथा’ की गणना महाकाव्यों की कोटि में की जा सकती है।
स्नात्कोत्तर केन्द्र के प्रो. सी पी सिंह ने इतिहास और साहित्य के संबन्धों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इतिहास साहित्य से भी लिया जाता है..। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार डा. रमेश चंद्र वर्मा एवं संचालन प्रो. अरविन्द ‘नीरज’ ने किया
समारोह के अन्य वक्ता कथाकार ध्रुव तांती, डा. भूपेन्द्र ना. यादव ‘मधेपुरी,’ सहरसा के वर्तमान विधायक आलोक रंजन, प्रो. विनय चैधरी, प्रो. रतनदीप, अरविन्द श्रीवास्तव, मुख्तार आलम एवं मुर्तजा नरियारवी आदि थे। सहरसा में अर्सा वाद ऐसे आयोजन की बुद्धिजीवियों ने सराहना की।