ट्रेन से दिल्ली आते समय जब आप गाजियाबाद क्रॉस करते हैं तो बड़े – बड़े अक्षरों में आपको एक खास तरह का विज्ञापन दीवालों पर लिखा मिलेगा. ये विज्ञापन तरह –तरह के नीम हकीम और उनके नुस्खे से संबंधित होते हैं जो मर्दानगी से निपटने के उपाय बताती है.
मर्दानगी, शीघ्रपतन से लेकर बेटा पैदा करने की दवाई तक होने का ये दावा करते हैं. लेकिन अब ऐसे विज्ञापन गाजियाबाद की दीवारों तक ही सीमित नहीं रह गए हैं. उनका दायरा बढ़ गया है.
वे शक्ल बदलकर टीवी स्क्रीन तक आ धमके हैं और अपना जाल बखूबी फैला रहे हैं. इसका नमूना तब दिखाई पड़ता है जब रात 12 बजते ही ‘पावर प्राश’ के रूप में न्यूज़ चैनलों पर इनका विज्ञापन चलने लगता है.
इसी मुद्दे पर कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रो.जगदीश्वर चतुर्वेदी अपने एफबी वॉल पर लिखते हैं –
भारत में टीवी कल्चर का पतन देखना हो तो आप मर्दानगी बढ़ाने वाली गोलियों और तेलों के विज्ञापन देखें । मर्दानगी बढ़ाने के विज्ञापन क्या हमारी टीवी नीति में फिट बैठते हैं ? क्या आपने कभी बीबीसी या सीएनएन में मर्दानगी की दवाओं के विज्ञापन देखे हैं, आखिरकार ये भारतीय टीवीवाले पैसे की खातिर देश को जहन्नुम में क्यों ले जाने पर आमादा हैं ?
चैनल अभी मर्दानगी को आक्रामक बनाने वाली दवाओं के विज्ञापन दे रहे हैं ,आने वाले समय में औरतों को जोश सॆ भरनेवाली दवाओं के विज्ञापन देंगे,उसके बाद सेक्स का आनंद देने वाले खिलौनों का प्रचार करेंगे। यानी सेक्स और सनसनी के अलावा टीवी वालों के पास और कोई मसाला नहीं है।
आक्रामक मर्दानगी की दवाओं का प्रचार करने वाले टीवी विज्ञापनों के महिमामंडन के केन्द्र में आक्रामक कामुकता है। यानी वे मर्द डूब मरें जो आक्रामक कामुक नहीं हैं !!