ज़ी न्यूज़ : सोंच ही नहीं एचआर और एचआर पॉलिसी में भी बदलाव

zee-news-sudhirज़ी न्यूज़ उथल – पुथल के दौर से गुजर रहा है. संपादक सुधीर चौधरी पर पहले ब्लैकमेलिंग का आरोप लगने और फिर उस आरोप के कारण जेल की हवा खाने की वजह से चैनल की साख पर बट्टा लग गया.

ऐसी साख जिसे ज़ी न्यूज़ ने कई सालों में हासिल की थी. भूत-प्रेत और बाबाओं के युग में भी ज़ी न्यूज़ ने दूसरे चैनलों से अलग अपनी छवि बनायी रखी. इसलिए नंबर एक की रेस से बाहर रहने के बावजूद ज़ी न्यूज़ और यहाँ काम करने वालों को अलग सम्मान हासिल था.

लेकिन सुधीर चौधरी के द्वारा संपादक का पद सँभालते ही मानों ग्रहण लग गया और कोयले में आग लगाते – लगाते ऐसा धुँआ उठा कि ज़ी न्यूज़ के पत्रकारों का दम घुटने लगा.

 

फिर पत्रकारों के पलायन का सिलसिला शुरू हुआ जो अब भी जारी है. इस सिलसिले में पिछले हफ्ते मीडिया खबर डॉट कॉम ने बीस लोगों की एक सूची भी जारी की थी जो इस प्रकरण के बाद चैनल छोड़कर चले गए. इस सूची में एक महत्वपूर्ण नाम ‘एचआर हेड’ का छूट गया था जिसे बाद में सूची डाला गया.

ख़बरों के मुताबिक ज़ी न्यूज़ के एचआर हेड ‘प्रदीप गुलाटी’ को भी अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. उनसे खता ये हुई कि उन्होंने ब्लैकमेलिंग के आरोपी संपादक की एचआर पॉलिसी की बजाये ज़ी न्यूज़ की वर्षों से चली आ रही एचआर पॉलिसी की वकालत की जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा.

वैसे सुधीर चौधरी की एचआर पॉलिसी है कि पुराने लोगों को हटाओ और अपने लोगों को भरो, ताकी संपादक महोदय कंफर्ट ज़ोन में रहे और घूरती आँखों से उन्हें छुटकारा मिल जाए. बहरहाल ज़ी न्यूज़ से प्रदीप गुलाटी के जाने के बाद एचआर हेड की जगह पर एक नया पद ‘चीफ पीपल ऑफिसर’ का पद गढा गया है और उसपर ‘गीताजंली पंडित’ को नियुक्त किया गया है.

आने वाले समय में ये बदलाव और रंग दिखलाएगा. अभी और भी लोग ज़ी से बाहर जाने की तैयारी में है. कुछ ब्लैकमेल के आरोपी संपादक के साथ काम नहीं करना चाहते तो कुछ दबाव में छोड़ने के लिए विवश है. मिला – जुलाकर चैनल के अंदर अशांति हैं और वहां काम करने वालों में एक छटपटाहट है.

वैसे गौरतलब है कि इतनी बड़ी संख्या में ज़ी न्यूज़ छोड़कर पहले कभी पत्रकार नहीं गए. ज़ी न्यूज़ में काम करने वाले वर्षों यही काम करना पसंद करते थे कि क्योंकि यहाँ के काम का वातावरण और एचआर पॉलिसी दूसरे चैनलों से थोड़ी अलग रही है.

लेकिन अब लगता है कि ज़ी न्यूज़ के टैगलाइन ‘सोंच बदलो, देश बदलो’ की तर्ज पर ‘एचआर बदलो, पत्रकार बदलो’ का नियम भी लागू हो गया है. यानी ज़ी न्यूज़ की सोंच ही नहीं एचआर पॉलिसी भी बदल गई है.

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