अर्नब के रिपब्लिक चैनल के लांच होते ही सोशल मीडिया पर हंगामा हो गया है. इस संदर्भ में प्रतिक्रियाओं की बाढ सी आ गयी. उन्हीं में से मीडिया विश्लेषक ‘विनीत कुमार’ की प्रतिक्रिया –
शब्दों की बलि देकर शुरु हुआ चैनल रिपब्लिक :
आज पहले ही दिन चैनल की ओर से एक संवैधानिक शब्द की हत्या हुई है साहब. सीएम के लिए रिपब्लिक पर बार-बार क्रिमिनल माइंड बोला जाता रहा. और देखते-देखते मुख्यमंत्री का मतलब क्रिमिनल माइंड हो गया.
एक शब्द के अस्तित्व में आने में सालों लग जाते हैं लेकिन चैनल उसकी हत्या करने का माद्दा एक बुलेटिन में रखता है.
पहले पूरे शब्द को अलग-अलग तर्क गढकर एक-दो वर्ण में निबटाओ. उसके बाद उसमे अपनी मूढता को ठूंसकर उसका अर्थ बदल दो.
गिनने लग जाएं तो इस तरह चैनल रोज दर्जनों शब्द की हत्या करते हैं. इस चैनल का तो पहला दिन है. आगे देखते जाइए.
रिपब्लिक देखने से खराब हो सकती हैं हमारी आंखें:
अर्णव गोस्वामी के मीडिया फूड को लेकर अभी बात करना जल्दीबाजी होगी लेकिन पहली नजर में देखकर लगा कि ये चैनल हमारी आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है.
इतना ज्यादा फ्लैश,सुपर और आक्रामक रंगों के क्रोमा वॉल का इस्तेमाल किया गया है कि कुछ ही मिनट में आंखें चुंधियाने लग जाती है. आंखें बद करके खीरे की स्लाईड रखने की जरुरत महसूस होती है. मुझे ऐसे वक्त में टाइम्स नाउ की लांचिग के समय का विज्ञापन याद आता है. खीरे की स्लाइड के साथ महिला दर्शक की तस्वीर.
रिपब्लिक को लेकर अर्णव के दावे को जितनी बार सुना, लगा कि कुछ नहीं तो प्रेजेंटेशन के स्तर पर कम से शांत और इत्मिनान से देखनेवाला चैनल होगा. हम कई बार अल जजीरा, सीएनएन की खबरें से असहमत होते हैं वेकिन आंखों को चुभते नहीं ये चैनल. इतने भडकीले रंगों और हाइ स्पीड से फ्लैश होने के कारण बुरी तरह चुभ रहा है. आप एक चीज पर नजर टिकाते भी नहीं है कि दूसरी चीज की बमबारी. ऐसा लगता है कि टीवी रिमोट किसी शैतान बच्चे के हाथ लग गया हो और वो दनादन चैनल बदलता जा रहा हो, जिकजैक मोड में कुछ देखने ही नहीं दे रहा हो.