इटली के दार्शनिक मैक्यावली की रचना द प्रिंस की प्रासंगिकता कभी कम नहीं हुई

Dr. Shobha Bhardwaj
डॉ.शोभा भारद्वाज

डॉ शोभा भारद्वाज

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबने अनेक उतार चढाव देखे काम कम घोषणाएं अधिक हुई समस्यायें जस की तस रहीं लेकिन पिता पुत्र मीडिया में छाये रहे. पिता मुलायम सिंह की अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव से नाराजगी बेटे के विद्रोही स्वर एक बार ऐसा लगा सपा पार्टी में टूटन आ रही है सपा के उम्मीदवारों की दो लिस्ट बनीं लखनऊ में कार्यकर्ताओं का हंगामा हुआ जिसमें अखिलेश यादव की छवि को निखारा गया उन्हें बेदाग़ जनता के हित के लिए तत्पर हैं लेकिन चाचा शिवपाल की वजह से मजबूर हैं. अबकी बार मुख्यमंत्री बनने पर उत्तर प्रदेश की जनता का जीवन सवार देंगे वह सबसे बड़े जनता के हित चिंतक हैं पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी का नाम किसे मिले का मसला चुनाव आयोग तक पहुंचा अखिलेश यादव को चुनाव चिन्ह मिला अंत में पिता पुत्र में सुलह हो गयी चाचा शिवपाल किनारे लगा दिये गये . जीत पक्की करने के लिए कांग्रेस से गठबंधन हुआ नाम दिया गया साम्प्रदायिक ताकतों के विरुद्ध साथ मिल कर लड़ने का फैसला .

1531 में इटली के महान दार्शनिक मैक्यावली की पुस्तक ‘दी प्रिंस’ प्रकाशित हुई थी भारत में भी अधिकाश राजनेताओं की पुस्तकों की आलमारी में सजी रहती है . पुस्तक एक शक्तिशाली राज्य की कल्पना तथा व्यवहारिक शासन कला का दर्शन है |विश्व भर में यह पुस्तक राजनीतिक क्षेत्रों में प्रिय और प्रसिद्ध है उनके विचारों को मैक्यावलिजम कहा जाता है इन्हे कुछ विचारक आधुनिक राजनीति विज्ञान का जनक मानते | अकसर इस कूटनीतिज्ञ की तुलना चाणक्य से करते हैं लेकिन दोनों के विचारों में सैद्धांतिक अंतर है .दी प्रिंस नवनिर्वाचित प्रिंस सत्ता पर अपनी पकड़ कैसे मजबूत करे का दर्शन है | वह राज्य को शक्तिशाली सुसंगठित सम्प्रभु राज्य के रूप में देखना चाहते थे | मैक्यावली के आलोचकों की संख्या बहुत है उनकी पुस्तक में तानाशाहों के आचरण की सटीक व्याख्या है. उनकी कितनी भी आलोचना की जाये वह राजनेताओं के दिलों और आचरण में वह बसते हैं | सत्ता के नये अधिकारी को उन्होंने प्रिंस का नाम दिया उनका प्रिंस तानाशाह है .

उनके अनुसार प्रिंस चार प्रकार के हैं –

1.वंशानुगत राजा ,राजा का पुत्र सिंहासन का अधिकारी होता है राजा की मृत्यु के बाद पुत्र का सत्ता पर अधिकार होता है भारत की प्रजातंत्रिक व्यवस्था में बेटा चुनाव जीत कर सत्ता का अधिकारी हो जाता है . नये प्रिंस को अपनी योग्यता का प्रभाव प्रजा पर शीघ्र डालना चाहिए .वह साधन नहीं साध्य को प्रमुख मानते थे

2. विजेता राजा किसी राज्य पर कब्जा कर सत्ता प्राप्त करता है . वह अपने विरोधियों को कुचल कर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा है उसे अपने सहयोगियों से समझौते भी कम करने पड़ते हैं.

3.भाग्य से सत्ता या कौशल से सत्ता हाथ में आ जाना या राज्य के अंदर समर्थक किसी ऐसे व्यक्ति को सत्ता सौंप देते हैं जिसे आस्कमिक रूप से ,भाग्य वश समीकरण बैठाने के दौरान सत्ता हासिल हो जाती है परन्तु उनकी दया पर निर्भर है जिन्होंने सत्ता में मदद की थी .यह सत्ता स्थायी नहीं होती हाँ नया प्रिंस योग्यता से उसे स्थायी बना सकता है .यह सत्ता समर्थकों की संख्या में वृद्धि कर या युद्ध द्वारा बचाई जा सकती है .ईरान में प्रजातंत्र के लिए संघर्ष चल रहा था लेकिन सत्ता संघर्ष में इस्लामिक शक्तियों के हाथ में सत्ता आ गयी विरोध जारी था लेकिन इराक ने ईरान पर हमला कर दिया इसे सुअवसर समझ कर इस्लामिक शक्तियों ने युद्ध के बहाने पकड़ मजबूत कर ली .

4.चर्च के अधीन राज्य जैसे रोम लेकिन भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है .सैन्य शक्ति – मैक्यावली के अनुसार सैन्य शक्ति से प्रिंस का महत्व बढ़ता है .उसे सेना को अपनी शक्ति से अपने आधीन रखना चाहिये . सेना का संगठन – 1 . युद्ध की स्थिति में पैसा देकर सेना का गठन करना . इब्राहीम लोदी के समय बाबर ने देश पर हमला किया इब्राहीम की सेना में एक लाख सैनिक थे यह सब अस्थायी सैनिक थे लेकिन बाबर ने चुस्त दुरुस्त सेना के बल पर इब्राहीम लोदी को हरा कर दिल्ली के तख्त पर कब्जा किया 2.किसी और राजा से सैनिक सहायता लेना य सामरिक सन्धियाँ करना .3 .अपनी स्वयम की सेना का गठन करना . 4.दोनों प्रकार की सेना अपनी सुसंगठित सेना के अलावा समय पर धन से सैनिक प्राप्त करना .
प्रिंस को सैनिक मामलों को समझना चाहिए युद्ध कला की जानकरी होगी सेना उसका सम्मान करेगी वह अपने सैनिकों पर नियन्त्रण रख अपनी सत्ता को सुरक्षित कर सकता है . प्रिंस को युद्ध से डरना नहीं चाहिए उसमें आलस्य नहीं होना चाहिए .वह तुरंत कार्यवाही में सक्षम हो युद्ध के समय उसका ध्यान पूर्ण रूप से विजय पर केद्रित होना चाहिए . संगठित और अनुशासित सेना ,अनुशासनहीन कायरों की सेना जिसे पैसे से गठित किया गया है पर भारी पड़ती है .आज प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अलग रक्षा विभाग हैं हर राज्य अपनी सेना को आधुनिक हथियारों से लैस रखता है सैनिकों को मिलिट्री ट्रेनिग द्वारा युद्ध कौशल सिखाते हैं.पड़ोसी राज्यों से नो वार पैक्ट किये जाते हैं .

प्रिंस- सैद्धांतिक रूप से प्रिंस में सद्गुणी हो लेकिन अवसर आने पर सद्गुणों का परित्याग करने के लिए भी तत्पर रहें . जनता को भयभीत रखे . आदर्श एवं अच्छाई हर वक्त नहीं चल सकती प्रिंस यदि उदार है जन हित पर धन खर्च करता है जनता की मांगें बढती जायेंगी निरंतर मांगे पूरी करने से राज्य की आर्थिक दशा खराब हो जाएगी नये टैक्स लगने से कर दाता प्रिंस से नफरत करने लगते हैं नफरत से बचना है जनता प्रिंस से प्यार करे या न करे डरे ,भय नफरत तक न पहुंचे यह प्रिंस को चुनना है जिससे डरते हैं उसे चोट नहीं पहुंचाना चाहते ,भयंकर बनें पर अति न हो वह न अधिक दयालु हो न क्रूर लेकिन समय आने पर क्रूरता दिखा सके वादे करे परन्तु वादों पर अड़ा न रहे जरूरत के हिसाब से वादों से पलट सकता है .ऐसा लगना चाहिए जैसे प्रिंस जनता के लिए बहुत कर रहा है और करेगा उसका विश्वास बढ़े और साध्य पूरा हो . इस कला में आज के राजनेता निपुण हैं .प्रिंस चाटुकारों से दूरी बना कर रहे ,सलाह ले लेकिन ऐसे दिखाए जैसे उसको उनकी सलाह की जरूरत नहीं है .महान पुरुषों की नकल कर अपनी महानता का प्रचार करे . प्रिंस को किसी की सम्पति और महिलाओं में हस्ताक्षेप नहीं करना चाहिए .

प्रिंस को विजय कैसे प्राप्त हो- लोग बदलाव नहीं चाहते, सत्ता का लाभ उठाने वाले लाभ से वंचित नहीं रहना चाहते . प्रिंस को विजित होने के बाद उनके विरोध का सामना करना पड़ता है नये लोग बदलाव चाहते हैं जिससे उनको लाभ मिले राजा सबको खुश नहीं रख सकता लेकिन नये सुधारों का विरोध कम होता हैं क्योंकि उनसे नागरिक अनजान होते हैं . हर व्यक्ति की अपेक्षाओं पर प्रिंस के लिए खरा उतरना भी आसान नहीं है जब सत्ता अपने बल पर मिलती है योग्यता से स्थायी रहेगी अपने समर्थकों को अपने पास रखों उनकी संख्या बढाओ वही आगे प्रिंस को बचायेंगे कई बार क्रिमिनल प्रवृति के लोग सत्ता हासिल कर लेते हैं लेकिन उनकी क्रूरता से लोग नफरत करते हैं क्रूरता करनी है तो शीघ्रता से करनी चाहिए अपने विरोधियों को जल्दी ही कुचल डालो सद्दाम ने जब सत्ता हासिल की थी अपने अभिजात्य वर्ग के समर्थकों को एक साथ बुलाया मार डाला था मारने के बाद सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत किया .बरसों सुन्नी होते हुए भी शिया बहुल प्रदेश पर राज्य किया था .यह मैक्यावली के प्रिंस की विशेषता है .

प्रिंस के सहायक कभी उससे अधिक योग्य न हों उनसे खतरा रहेगा .ऐसे लोगों को विश्वास में लें जो अपने दम पर कुछ नहीं कर सकते . नये राजकुमार को अपने महान कार्यों से सम्मान मिलता है कार्य दूसरे करें लेकिन खाते में प्रिंस के जाएँ इसे हम अपने देश में देख सकते हैं जो भी सुधार थे वह गाँधी परिवार के खाते में गये बदनामी डॉ मनमोहन सिंह को मिली .

मैक्यावली के समय सत्ता पर चर्च का बहुत प्रभाव था चर्च से रिश्ता तोड़ कर राजनीति को कूटनीति से जोड़ा .वह ऐसे प्रिंस का समर्थक था जो अपनी सीमाओं का विस्तार कर विजित प्रदेश को पर स्थायी अधिकार करे .विजित प्रदेश में धूमधाम से प्रवेश करे विद्रोहियों का दमन करे . दिल्ली के तख्त पर अधिकार करने के लिए ऐसा होता रहा है . अधिकार के बाद वहाँ शांति और सम्पन्नता बढ़ाना राज्य की सीमाओं को निरापद करना पड़ोसियों में भय बनाये रखना प्रिंस का महत्वपूर्ण कार्य हैं .सिकन्दर ने ईरान पर हमला किया उसके साथ उसके गुरु अरस्तु भी थे .ईरान के शिराज शहर के पास बसे खूबसूरत महत्वपूर्ण शहर परसीपोरस को जला दिया पूरा राजवंश खत्म कर दिया एक बच्चा बच गया था .गुरु के आदेश पर उसे भी मार डाला . मैक्यावली इसी धारणा में विश्वास करता था .

आज भी प्रजातंत्र में भी प्रिंस के गुण दिखाई देते हैं चाटुकार अपने नेता की जयजयकार करते रहते है वक्त आने पर धोखा देते हैं स्वर्गीय राजीव गाँधी की आलमारी में ‘दी प्रिंस’रहती थी उनकी पत्नी मैक्यावली के देश इटली की थीं लेकिन वह अपने वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को पहचान नहीं सके उनसे धोखा खाया था .

(डॉ शोभा भारद्वाज)

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