गालियों की बौछार के बीच ज़ी टीवी का बुद्धा

buddhaटेलीविजन पर पौराणिकता, मिथक और इतिहास की कॉकटेल को लेकर रिवन्यू तलाशने और बैलेंस शीट मजबूत करने की भेंडचाल के बीच जीटीवी का नया शो बुद्धा अपनी तमाम कोशिशों के वाबजूद नया नहीं है. आप फ्रेम दर फ्रेम गुजरते हैं और एहसास करते हैं, ऐसा पहले हम देख चुके हैं. वैसे तो बाकी चैनलों के शो की तरह जीटीवी ने भी प्रोमोशन के जरिए उस चालू पैटर्न को स्थापित करने की भरपूर कोशिश की कि ये बात इतिहास के लिए विवाद और समस्या है कि पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएं कब हुई या हुई भी कि नहीं लेकिन टेलीविजन पर सबके “अपने-अपने राम” होते हैं. वो चाहे तो शो शुरु होने से पहले एक लाइन लिखकर छुट्टी पा सकता है कि यह महज पौराणिक मान्यताओं और जनभावनाओं पर आधारित सीरियल है, इसका ऐतिहासिक प्रमाणों से न तो कोई लेना-देना है और न ही वास्तविक घटनाओं पर आधारित है.

लेकिन ऐतिहासिक और मिथकीय चरित्रों के उपर पर्याप्त शोध करने से बचने और लागत कम करके चैनल चाहे जितनी भी सास-बहू सीरियलों की छौंक लगाने की कोशिश करे, अगर ऐसे सीरियल अपनी बुनियादी गड़बड़ियों और तथ्यात्मक गलतियों के साथ बढ़ता है तो वह दर्शकों की कड़ी आलोचना का शिकार होगा. शायद यही कारण है कि इधर बुद्धा बने कबीर बेदी ने बुद्ध का जन्म भारत में बताया कि उधर जीटीवी की आधिकारिक वेबसाइट पर गालियों की बौछार शुरु हो गई. आलम ये है कि इस चैनल की वेबसाइट पर ऐसी कोई गाली नहीं है जो कि हिन्दुस्तान में अंग्रेजी और हिन्दी में नहीं बोले जाते हों.

दूसरा इतिहास और मिथक से लिए गए चरित्र एकबारगी एक सीरियल से दूसरे को भले ही अलग करते हों लेकिन गौर करें तो उनकी प्रस्तुति और पूरी ट्रीटमेंट में बहुत फर्क नहीं होता. मसलन अगर आप बुद्ध के जन्म और उसके बाद के दृश्यों पर गौर करें तो लगेगा जीटीवी ने अपने ही सारियल रामायण की दो साल पहले की फुटेज को झाड-पोंछकर बुद्धा में फिट कर दी हो. इधर जिस क्षत्रिय राजन की अकड़ दिखाई जा रही है वो सोनी टीवी के महाराणा प्रताप की विजुअल मिक्सिंग का हिस्सा है.

गौर करें तो दूसरे पौराणिकता की फ्लेवर में बने सीरियलों की तरह बुद्धा भी नया और हटके के नाम पर बंद हो चुके चैनल एनडीटीवी इमैजिन के रामायण( अच्छी आदत) की समझ में ही जाकर फंस गया लगता है. खासकर कॉस्ट्यूम और संवाद के स्तर पर तो इमैजिन के रामायण ने जो बदलाव किए, अब वही पैटर्न बनकर रिपीट होता चला जा रहा है. आपको कहीं से पौराणिक चरित्र नहीं लगते..जो तत्समी हिन्दी बीच-बीच में प्रभावित भी करते हैं तो वो उसी दूरदर्शन के पूर्वज की तरह जिससे अलग होने की निजी चैनल जद्दोजहद करते आए हैं.

ये सही है कि कार्टून चैनलों की चाइल्ड ऑडिएंस को तोड़ने और रविवार के टीवी को परिवारिक बनाने के फार्मूले के बीच छुट्टी की सुबह पर टीवी की गहरी नजर है. दूरदर्शन के लिए प्राइम टाइम रहे इस समय की जब सत्यमेव जयते को याद आयी तो अब जीटीवी जाग गया लेकिन उसके रामायण और महाभारत से लाहौर तक की गलियों के सूनी हो जाने का चमत्कार जीटीवी क्या किसी भी चैनल के लिए शायद मिथक ही रह जाए.

स्टारः डेढ

समयः रविवार 11 बजे सुबह

(मूलतया तहलका में प्रकाशित)

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