हिंदी की पहली इरोटिक किताब सोहो: जिस्‍म से रूह का सफर

पाकिस्‍तानी क्रिकेट के सिरमौर और दक्षिण एशिया की महत्‍त्‍वपूर्ण राजनीतिक हस्‍ती इमरान ख़ां की जीवनयात्रा ‘इमरान वर्सेज़ इमरान: द अनटोल्‍ड स्‍टोरी’ दर्ज कर भारतीय उपमहाद्वीप और इग्‍लैंड में लेखकीय धाक जमाने वाले फ्रैंक हुजूर की पहली हिन्‍दी पुस्‍तक ‘सोहो: जिस्‍म से रूह का सफ़र’ की ऑनलाइन प्री बुकिंग आरंभ हो गई है. फ्रैं क की यह पुस्‍तक सेन्‍ट्रल लंदन स्थित महत्‍त्‍वपूर्ण सेक्‍स स्‍टूडियोज, उससे जुड़े तमाम किरदारों व उनकी कार्यप्रणाली पर आधारित एक रोचक आख्‍यान है.

सोहो का सैर कभी इतना आसान नहीं होता. मगर फ्रैंक जैसे जिद्दी और हौसलामंद रचनाकार के लिए यह महज सैर नहीं है. इसमें एक बड़ा ख़्वाब है, जिसकी एक मंजिल है. लन्दन सेंट्रल के वेस्ट एंड में जवान होती हुस्न, वासना और इश्क़ की महफ़िल तथा सोहो की गलियों में आनंद से सराबोर महल, दिल और दिमाग़ के पोरों में से कुछ यूँ गुज़रता है कि फ्रैंक हुजूर को कहना पड़ा कि सोहो आह्लाद का ओलम्पिक ग्राम है. अंग्रेज़ी के लेखक फ्रैंक ने ‘सोहो:जिस्‍म से रूह का सफ़र’ लिखकर हिन्‍दुस्‍तानी में कहानी कहने की एक नायाब परंपरा की नींव डाली है. सोहो की ऐसी चमकदार, रेशम बदन तस्वीर साहित्य के इतिहास में पहले कभी नहीं आयी. फ्रैंक के इस आख्‍यान में ब्रिटेन और यूरोप के मादक पोर्न फिल्मों के किरदारों की रूमानी कहानियां पुरकश मिलती हैं. मगर इसमें हिन्द और सिंध की मिट्टी की रूहानी और जिस्मानी खुशबू भी है. यह एक बेहद आशिक़ाना रचना है.

पाठ्यपुस्‍तकों के अंदर पचास-साठ पृष्ठों का ‘मस्‍तराम’ छुपा कर पढने वाला जमात अब अभिभावकीय जिम्‍मेदारियां संभाल रहा है. नयी पीढी ऑनलाइन पॉर्नोग्रफ़ी देख कर अपनी उत्‍कंठा शांत कर रहा है. कई मर्तबा समाज उसकी विद्रूपताओं का गवाह बनता है. ऐसे में, पॉर्नोग्रफ़ी पर एक समझ विकसित करना बेहद महत्‍त्‍वपूर्ण हो जाता है. इस उत्‍तर-आधुनिक दौर में जब विचारधाराओं से लेकर संरचनाओं तक के विघटन की कहानियां लिखी जा रही हैं, सेक्‍स और पोर्नोग्रफ़ी को लेकर पसरी ख़ामोशी परेशानी का एक बड़ा सबब बन कर खड़ी है. हालांकि, हिन्‍दी रचना-संसार तमाम रीतिकाल नायिकाओं के नख-शिख वर्णन से भरा पड़ा है लेकिन आज तक न कोई इसकी पारदर्शिता की मांग कर पाया है और न कोई इतना हौसलावान और ईमानदार रचनाकार आगे आकर इसे स्‍थापित ही कर पाया है. इसके बरअक्‍श फ्रैंक हुजूर ने न केवल इस विषय को समझने की कोशिश की है बल्कि अपनी समझ व्‍यापक हिंदी समाज के साथ साझा करने के इरादे से वे सवा दो सौ पृष्‍ठों का एक आख्‍यान भी लेकर आ रहे हैं.

हिन्‍दयुग्‍म के लिए यह संतोष की बात है कि वह इस अभियान में फ्रैंक का एक साझीदार है. हिन्‍दयुग्‍म का यह साफ़ मानना है कि प्रकाशनगृह यानी समाज और समकालीनता पर संवाद को सुगमता प्रदान करना. इसी सोच के साथ हिन्‍दयुग्‍म प्रकाशन ‘चौराहे पर सीढियां’, नमक स्‍वादानुसार, Terms & Conditions Apply*, ‘जानेमन जेल’ और ‘बम संकर टन गनेस’ जैसी कृतियों का प्रकाशन किया है. हिन्‍दी पठन-पाठन संसार से हिन्‍दयुग्‍म प्रकाशन का यह वायदा है कि वह आने वाले समय में उन्‍हें और भी पठनीय तथा मानीखेज पुस्‍तकें उपलब्‍ध कराएगा.

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