मीडिया खबर के मीडिया कॉनक्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान में आजतक के प्रख्यात एंकर सईद अंसारी ने हैशटैग पत्रकारिता और ख़बरों की बदलती दुनिया पर प्रकाश डाला.उनके वक्तव्य पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की प्रतिक्रिया (मॉडरेटर)
आजतक के प्राइम टाइम एंकर सईद अंसारी ट्विटर पर सक्रिय नहीं है, फेसबुक पर भी नहीं और न ही व्हॉट्स अप को बहुत एन्ज्वॉय करते हैं. उनकी अपनी समझ है कि जो मजा ऑफलाइन रिश्ते-दोस्ती में है वो वर्चुअल स्पेस पर बनी दोस्ती में नहीं है. लोगबाग मिलते हैं और सीधा कहते हैं- हमदोनों फेसबुक फ्रेंड हैं. क्या सिर्फ एक ये बात हमारे आत्मीय होने की वजह हो सकती है ? ये तो फिर भी ठीक है लेकिन जिसे आप जानते तक नहीं, जो आपके सामने तक नहीं आता लेकिन मार गंदी-गंदी गालियां दिए जा रहा है. आप क्यों झेंलेगे ये गालियां, किसके लिए झेलेंगे ? लेकिन इन सबके बावजूद वो सोशल मीडिया कंटेंट को लेकर अपडेट रहते हैं. उन्हें हर किसी की ट्वीट, पोस्ट और एफबी स्टेटस की जानकारी होती है.
सईद अंसारी के सोशल मीडिया के किसी भी मंच पर न होने और हैशटैग पत्रकारिता ( मीडियाखबर कॉन्क्लेव एवं एस पी सिंह स्मृति व्याख्यायन 2016, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली ) पर बतौर वक्ता अपनी बात रखने को लेकर डीडी न्यूज के मीडियाकर्मी आलोक श्रीवास्तव ( जो पहले आजतक में रहे हैं) ने अपनी तरफ से भरपूर घेरने की कोशिश की. वो अपने सवाल को भरसक नैतिकता के सवाल की तरफ ले जाना चाह रहे थे लेकिन अभिषेक श्रीवास्तव का नैतिक आग्रह से पूछा गया ये सवाल पीछे रह गया जब सईद अंसारी ने सोशल मीडिया पर न होने की वजह व्यक्तिगत इच्छा बताते हुए मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए इसे अनिवार्य बनते जा रहे माध्यम के तौर पर परिभाषित करना शुरू किया.
सईद अंसारी ने बहुत ही साफ तौर पर कहा कि बुलेटिन के बीच में हमें किसी की ट्वीट को शामिल करना होता है, खबरें वहां से दूसरी दिशा में मुड़ती है. हम इसकी जरूरत को नकार नहीं सकते. लेकिन इन सबके बावजूद असल सवाल है कि क्या तीन करोड़ ट्विटर अकाउंटधारी सवा सौ करोड़ की आबादी की आवाज बन पा रहे हैं, बन सकेंगे ? आप लाख तर्क देते रहिए कि इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही है, अब सामान्य लोग भी इसके जरिए अपनी बात रख रहे हैं लेकिन क्या ये सचमुच इतना मासूम माध्यम है ?
ट्विटर पर जो ट्रेंड हो रहा है, वो मेनस्ट्रीम मीडिया में बतौर खबर शामिल किया जा रहा है लेकिन कभी आपने देखा है कि किसी सामान्य व्यक्ति की कोई खबर ट्रेंड कर रही हो या फिर जब तक उसमे सिलेब्रेटी शामिल नहीं हुए हों. मैं अपने निजी कारणों( खासकर वेवजह गालियों की संभावना और रिश्तों में गर्माहट नहीं) से यहां नहीं हूं लेकिन जो लोग हैं और स्टारडस्ट नहीं है, उनकी बातें, उनके हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं ?
आज से सात-आठ साल पहले जब मीडिया इन्डस्ट्री के लोग सोशल मीडिया पर नहीं हुआ करते थे, घबराते थे या तकनीक के स्तर पर लद्दड हुआ करते थे तो हम उन्हें किसी न किसी तरह प्रोवोक किया करते थे कि वो इस पर आएं. मीडियाखबर, मोहल्लालाइव, भड़ास, विस्फोट जैसे पोर्टल और वेबसाइट ने इन पर लिख-लिखकर सोशल मीडिया के प्रति दिलचस्पी पैदा की और वो धीरे-धीरे इस पर आने लगे. उनके संस्थान अपने शुरुआती दौर में यहां आने से रोकते रहे. फेसबुक, ट्विटर अकाउंट एक्सेस करने तक की इजाजत नहीं हुआ करती थी और इन सबके बीच जो मीडियाकर्मी ऐसा कर पाता था वो हमारा आदर्श हुआ करता.
आज स्थिति बदली है. मेनस्टरीम मीडिया को सीधे तौर पर इसमे अपने व्यावसायिक हित और भविष्य दिख रहा है. लिहाजा अब मीडियाकर्मी पर दवाब है कि ज्यादा से ज्यादा बज्ज क्रिएट करे, डिजिटल मीडिया पर अपनी उपस्थिति और पकड़ मजबूत करे. ऐसे में सईद अंसारी सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं है और सक्रिय न होने के पीछे एक ठोस वजह है तो अब हमारा तर्क बदल जा रहा है. अब मेनस्ट्रीम मीडिया में काम कर रहे लोगों के लिए बड़ी चुनौती है कि अपनी इस इच्छा और फैसले पर कब तक कायम रह सकते हैं. ऐसा इसलिए भी कि उनकी इस इच्छा में चैनल, अखबार के राजस्व के स्तर पर घाटा होने की संभावना है. बहरहाल जब तक सईद अंसारी अपनी इच्छा को बचा ले जाते हैं, हम उन्हें इस बात की बधाई तो दे ही सकते हैं.
इसी कड़ी में उन्होंने जब खबरों की बदलती दुनिया पर अपनी बात रखी तो उनमे जो तर्क थे वो सवालों की शक्ल में थे. मसलन किसको, किस बात से कितना फर्क पड़ रहा है..कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिसे हम सोशल मीडिया कह रहे हैं वो भी चंद लोगों की गिरफ्त में जाकर रह गया है और वहीं कन्सेंट मैनुफैक्चरिंग का काम कर रहे हैं..
तो ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि इसके पीछे जो बाजार की ताकतें और उसका मायाजाल काम कर रहा है, उस पर बात हो. ट्रेंड कराने, शेयर और हिट्स बढ़ाने का काम जो पैसे ले-देकर किए जा रहे हैं, वो सारी चीजें लोगों के सामने आए. नहीं तो उपरी तौर पर सोशल मीडिया हमें जितना व्यापक दिख रहा है, उसके भीतर खबरों और जानकारियों का दायरा उतना ही अधिक सिमटता चला जाएगा ? क्या दूरदर्शन पर एक भी ऐसी खबर परसारित नहीं होती और एक भी ऐसा पत्रकार काम नहीं कर रहा जो ट्विटर पर ट्रेंड कर सके, उसे सम्मानित किया जा सके ? लेकिन नहीं, ले-देकर वही चार-छह चैनलों की बात पूरी मीडिया की बात और कंटेंट बातकर लोगों के बीच है.
सच पूछिए तो जिस तेवर के साथ जो बातें वो कह रहे थे, हमें उनसे उम्मीद नहीं थी. हम सैडिस्ट नहीं हैं लेकिन मीडिया के काम करने के तरीके और उसकी व्यावसायिक हरकतों को जितना जान-समझ पाते हैं, उन सबके बीच काम करते हुए सईद अंसारी क्या, किसी के लिए भी बोलना आसान नहीं है. लेकिन सुनकर अच्छा लगा कि एक ऐसे संस्थान का प्राइम टाइम एंकर ये सब कह रहा है जहां सबसे तेज के नाम पर वही सारी हरकतें की जाती हैं, जिसे सईद अंसारी पत्रकारिता का हिस्सा नहीं मानते. जिसे वो नए किस्म की गुलामी मानते हैं. कुछ नहीं तो कम से कम कुछ घंटे के लिए ही सही, डिलिवर और रिसिवर की संवेदना की जमीन एक होती हुई तो जान पड़ती ही है..
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