टीवी पर अगर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को लेकर एक पूरा एपिसोड हो तो आज की स्थितियों में यह बात थोडा चौंकाती हैं। लेकिन एबीपी चैनल ने यह साहस किया। महाकवि दस एपिसोड में लाया गया एक कार्यक्रम हैं। जिसकी पहली शुरूआत दिनकरजी से हुई। जहां टीवी की दुनिया में ग्लैमर्स फिल्म खबरें धारावाहिक अनवरत है वहां एक ऐसा आयोजन संजीदगी भरा लगता है। और कुछ हटकर भी। कुमार विश्वास का इस कार्यक्रम से जुडना सार्थक हैं । क्योंकि वे युवाओं के बीच में बहुत लोकप्रिय हैं। एक सेलिब्रिटी हैं। कम से कम उनके बहाने ही सही आज की युवा पीढी अपने बडे कवियों की पंक्तियों को सुन लें गुनगुना ले। ये कविताएं केवल कालेज और विश्वविद्यालय में हिंदी के छात्रों तक सीमित न रहे। इस लिहाज से एवीपी का यह पहला आयोजन राष्ट्रकवि को समर्पित था।
थोडा और बेहतर हो सकता था। हां दिनकरजी की संस्कृति के चार अध्याय बहुत महत्वपूर्ण कृति है। डिस्कवरी आफ इंडिया जैसी कृति लिखने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरु ने संस्कृत के चार अध्याय की प्रस्तावना बहुत सुंदर शब्दों में लिखी है। थोडा जिक्र इस कृति का होना चाहिए था। एक दो जगह और तथ्य गडबडाए हैं। कवि के संदर्भ में रोचक स्मरण आने से श्रेष्ठ कवियों को पढने का रुझान बढेगा।
आखिर वह रामधारी सिंह दिनकर ही थे जिन्होंने संसद में प्रधानमंत्री नेहरु को सुनाते हुए कहा था – रे रोक युधिष्ठर को यहां। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में यह स्वर देश भर में गूंजा था , सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। आज दशकों बाद उस रचना को संगीत में लय बद्ध होते सुनना अच्छा लगा। यह अपने बीते को पलट कर देखने का वक्त है। इस बहाने उन कवियों को नमन करने का भी अवसर है जो निडर थे और अपने सिद्धातों पर अडिग थे। जिनकी रचनाओं पर समय के नारे गढे जाते थे। इस बहाने ही सही राष्ट्रकवि फिर याद आए।
वेद उनियाल-