सुजीत ठमके
मैंने ना तो कभी सहारा इंडिया परिवार में काम किया है। ना कभी नौकरी के लिए गुहार लगाईं है। ना ही सहारा इंडिया परिवार से मेरा कोई ताल्लुक रहा है। ना दूर दूर से कोई नाता। चुकि मै भी एक ग्राउंड जीरो से आया हु। बचपन से काफी स्ट्रगल किया है। जिंदगी के सभी पड़ाव देखे है। तब कही जाकर इस मुकाम पर पहुंचा हु। मीडिया कर्मी हु तो मीडिया कर्मियों की परेशानी बेहतर समझता हु। ख़ास कर वो मीडिया कर्मी जिसके परिवार का समूचा दारोमदार माह की सैलरी पर टिका होता है। जिसके पीछे ना तो कोई “बैक अप प्लान” है या यू कहे नौकरी के अलावा आय के अन्य स्त्रोत नहीं है। उन मीडिया कर्मियों का तो ठीक है जिन्होंने दलाली करके, चापलूसी करके, बॉस, नेता मंत्री से सांठगाँठ करके करोड़ रुपये बनाये है। उन्हें कई वर्ष भी सैलरी नहीं मिली तो कोई फर्क नहीं पड़ता।
सहारा इंडिया परिवार के कर्मी के आत्महत्या करने की खबरे सुनकर दिल टूट जाता है। सेबी, कानूनी विवाद, आम निवेशक और सहारा का गड़बड़ झाला इसपर तो मै कोई टिपण्णी नहीं करूंगा। क्योकि यह मामला कानूनी पचड़े में है। सहारा समूह दावा कहता है की उनके सारे बिजनेसेस की असेट वैल्यू २ से ३ लाख हजार करोड़ के आसपास है। अगर यह सच है तो कर्मियों की सैलरी देने में सहाराश्री को क्यों परेशानी है ? क्या मज़बूरी है सैलरी ना देने के पीछे ? सहारा समूह मीडिया कर्मी की वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की जाती ? कर्मियों को बकाया राशि देकर सहारा श्री कर्मियों को दो टूक क्यों नहीं कह देते की आप दूसरी नौकरी खोज सकते है ? सवालो की फेहरिस्त काफी लम्बी है। यह कड़वा सच है लेकिन कह रहा हु। मीडिया कर्मीयो को जमीनी सच्चाई को भी समझना चाहिए। टीवी न्यूज़ चैनल कोई मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री, सर्विस सेक्टर, आईटी या लोगो की जरुरत वाला सेक्टर नहीं है। कोई शख्स न्यूज़ चैनल नहीं देखता तो उसकी जिंदगी थम नहीं जाती। आज बाजार में सूचना के कई स्रोत है। मीडिया कर्मियों ने अन्य स्किल को भी डेवलप करना चाहिए। न्यूज़ रूम से थोड़ा बाहर निकलना चाहिए। टीवी चैनेलो की नौकरी गई इसका मतलब जीवन में सब कुछ ख़त्म होता है ऐसा नहीं है। नए अवसर को तलाशो चाहिए मुश्किल होता है पर असंभव नहीं। कर्मियों ने हिम्मत नहीं हारना चाहिए। कोशिश करो। जिंदगी अनमोल है। आप का आत्महत्या का मतलब है। उस माँ – बाप को पीड़ा और दर्द जिन्होंने आप को बड़े कष्ट, मेहनत और पसीना बहाकर पढ़ाया है काबिल बनाया है ताकि हर कठिनाइयों का आप डटकर मुकाबला कर सके। आप का आत्महत्या का मतलब है बीवी बच्चे बेसहारा और उनका पूरा भविष्य अंधकार। मै हमेशा मीडिया कर्मियों के साथ रहता हु इसीलिए सहारा कर्मियों ने हौसला नहीं हारना चाहिए जिंदगी अनमोल है आत्महत्या मत करो। बाजार में आप के लिए नए अवसर है ज़रा देखो तो।
सुजीत ठमके
पुणे – ४११००२
( लेखक कई मीडिया संस्थान में रह चुके है। वर्तनाम ने भारत सरकार के अधीन नामचीन संस्थान में कॉर्पोरेट – पीआर देखते है और खुद के बड़े बिज़नेस वेंचर पर भी काम कर रहे है )