पुण्य प्रसून बाजपेयी के आजतक ज्वाइन करने पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की एक टिप्पणी :
दिन-रात टीवी के आगे आंखें फोड़ने पर भी पता नहीं चल पाता कि किस चैनल में जर्नलिज्म हो रही है और किसमें चिरकुटई लेकिन इसका समाधान पुण्य प्रसून ने निकालकर हमारे सामने रख दिया.
पहले तो उनके आजतक में जाने की लख-लख बधाई के साथ समाधान के लिए शुक्रिया. फंडा सीधा है- पुण्य प्रसून जिस चैनल में जाएं तो समझिए कि वहां दुनियाभर की चिरकुटई छोड़कर जर्नलिज्म होने लगी है.
ये बात मैं कोई हवा में नहीं कह रहा. न्यूजलॉड्री में मधु त्रेहन को दिए इंटरव्यू में कहा कि आजतक को मैंने पैसे के कारण नहीं छोड़ा, वहां कुछ करने के लिए था ही नहीं. मैंने तो कहा भी हम रुक जाते हैं, काम तो हो..चाय पी-पीकर आखिर कैसे आदमी दिन काटे ऑफिस में. सांप-बिच्छू ही जब चलना है चैनल में तो फिर..
अब पुण्य प्रसून फिर से उसी आजतक में आए हैं जहां से प्रोफेशनल स्तर पर असंतुष्ट होकर चले गए थे. वैसे वे सहारा से भी असंतुष्ट होकर जी न्यूज गए थे और वहां एक दागदार संपादक की गिरफ्तारी को इमरजेंसी बताकर उसे भी बाय-बाय कर दिया.
पुण्य प्रसून के साथ खास बात है कि वो जहां भी जाते हैं, पत्रकारिता और सरोकार करने ही लेकिन इन्डस्ट्री की आवोहवा ऐसी है कि उन्हें ऐसा करने नहीं देती. कामना करते हैं कि अब जबकि आजतक में जर्नलिज्म का बसंत लौटा आया है, वो भी बने रहें.:)
पुण्य प्रसून वाजपेयी जिन्हें आप ब्रांड कह रहे हैं उनके बारे एक बात और जान लें। पुण्य प्रसून वाजपेयी जी के पिता जी दूरदर्शन में काम करते थे और आजतक के बुलेटिन की प्रिव्यू का काम उन्हीं के पास था। प्रसून जी कुछ समय की पत्रकारिता के बाद उस वक़्त या तो बेकार थे या बेकार स्वरूप। एस पी सिंह ने पिता जी के कहने पर ही इन्हें रखा था. दोनों में से किसी ने इनसे कहा था या नहीं, पता नहीं। मगर शुरू में लंबे समय तक न्यूज एजेंसी से आनेवाले टिकर की मॉनिटरिंग ड्यूटी पर लगाए गए थे। तो क्रांति और बदलाव की लफ्फाज़ी बहुत है मगर जुगाड़ के सिद्धांत में पक्के हैं। पिता जी संघ परिवार से भी रिश्ता रखते हैं इसलिए परिवार वाले भी इन्हें घर का बिगड़ा बच्चा मानते हैं। यूं ही ज़ी न्यूज़ भी किसी को रखता नहीं है ये तो आपको भी पता ही होगा। और सहारा जाना और बाहर आना भी अनायास तो नहीं था।