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इंडिया टीवी से नाता तोड़कर न्यूज़ इंडिया पहुचीं एंकर अर्चना सिंह, एडिटर करंट अफेयर्स का जिम्मा संभाला

archana singh news anchor
Archana Singh, News Anchor

14 साल से इंडिया टीवी का चेहरा रहीं अर्चना सिंह अब हिंदी नेशनल न्यूज़ चैनल न्यूज़ इंडिया की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा बन गई हैं। अर्चना सिंह ने न्यूज इंडिया चैनल में एडिटर करंट अफेयर्स की ज़िम्मेदारी संभाली है। अर्चना सिंह न्यूज़ इंडिया के प्राइम टाइम का अहम चेहरा होंगी। उनके साथ एक नए शो की प्लानिंग शुरू हो गई है और उसका खाका तैयार हो रहा है। अर्चना सिंह खुद न्यूज़ इंडिया की टीम के साथ इस नए कंसेप्ट पर दिन-रात काम कर रही हैं।

आपको बता दें न्यूज़ इंडिया का लोगो नवरात्र के पहले दिन एडिटर इन चीफ़ सरफ़राज़ सैफ़ी ने लॉन्च किया जिसकी तारीफ़ हर तरफ हो रही है, ड्राई रन में धार दिख रही है। न्यूज़ इंडिया चैनल की लॉन्चिंग की तैयारी पूरी हो चुकी है, ड्राय रन शुरू हो चुका है। अर्चना सिंह ने बताया कि जल्द ही न्यूज इंडिया चैनल खबरों के नए तेवर के साथ लोगों के बीच होगा।

अर्चना सिंह इससे पहले तकरीबन 14 साल तक इंडिया टीवी का प्रमुख चेहरा रहीं। बतौर एंकर और रिपोर्टर अर्चना सिंह ने इंडिया टीवी के साथ कई बड़े शो किये। अपनी इस लंबी पारी में उन्होंने इंडिया टीवी में तमाम अहम जिम्मेदारियां भी संभाली। अर्चना सिंह ने बताया कि न्यूज़ इंडिया उनके लिए नई चुनौती है और वो इसे इंज्वॉय कर रही हैं। एक नए चैनल की नई और युवा टीम के साथ वो दिन रात मेहनत कर रही हैं, कुछ नया करना उन्हें भी रोमांचक लग रहा है।

टीवी स्क्रीन पर आज के चीखने चिल्लाने वाले दौर में अर्चना सिंह तीखे सवाल सहजता से पूछे जाने के लिए जानी जाती हैं। आपने स्टूडियो से लेकर फील्ड तक बेबाकी से काम किया है। चाहे सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे रहे हों या राजनीतिक खबरें, अर्चना सिंह ग्राउंड ज़ीरो पर पहुंच कर रिपोर्ट करने की पक्षधर रही हैं।

आप ने कई लोकसभा और विधानसभा चुनाव कवर किये। हाल मे बंगाल चुनाव के दौरान उनके काम को बहुत पसंद किया गया। अर्चना ने “बंगाल डायरी” के जरिये सिलीगुड़ी से कलकत्ता तक के चुनावी रंग लोगों तक पहुंचाये। अर्चना सिंह ने कश्मीर की रिपोर्टिंग जितनी बेबाकी से की, वो कम ही लोगों के बूते की बात है। अर्चना ने 26/11 मुंबई हमलों के समय मे 15- 15 घंटे एंकरिंग की। गुडग़ांव के प्रद्युम्न मर्डर केस मे संवेदनशील रिपोर्टिंग ने मीडिया के लिए नया मापदंड तैयार किया।

कानपुर की रहने वाली अर्चना को टीवी न्यूज मीडिया में एंकरिंग का बीस साल का अनुभव है। साइंस ग्रेजुएट अर्चना ने पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इन दिनों वो वक्त निकाल कर पीएचडी की पढ़ाई भी कर रही हैं। अर्चना ने एंकरिंग करियर का आगाज लखनऊ दूरदर्शन से किया। इसके बाद ईटीवी और जनमत चैनल की शुरुआती सालों को छोड़ दें तो इंडिया टीवी ही आपकी पहचान का हिस्सा बन गया। ज़िंदगी की सबसे लंबी पारी के बाद अर्चना ने सबसे बड़ी चुनौती कबूल की है। चैनल के मैनेजिंग एडिटर पशुपति शर्मा है और एडोटोरियल डायरेक्टर मनीष अवस्थी है

सरफ़राज़ सैफ़ी बने न्यूज़ इंडिया के एडिटर इन चीफ़, लॉन्चिंग की तैयारी पूरी

Sarfaraz Saifi appointed Editor-in-Chief of News India
Sarfaraz Saifi appointed Editor-in-Chief of News India

सरफ़राज़ सैफ़ी ने हिंदी नेशनल न्यूज़ चैनल न्यूज़ इंडिया के एडिटर इन चीफ का पद संभाल लिया है। सरफ़राज़ सैफ़ी पिछले काफी वक्त से न्यूज़ इंडिया की टीम तैयार करने में जुटे थे। उन्होंने न्यूज़ इंडिया में आउटपुट और इनपुट की बेहतरीन टीम तैयार की है। सरफ़राज़ सैफ़ी से जब हमने बात की तो उन्होंने न्यूज़ इंडिया की जिम्मेदारी संभालने की बात की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि चैनल की लॉन्चिंग की तैयारी पूरी हो चुकी है। ड्राय रन शुरू हो चुका है और जल्द ही चैनल राष्ट्र की आवाज़ बन कर लोगों के बीच होगा।

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Sarfaraz Saifi in news india
Sarfaraz Saifi, Editor in chief, News India

सरफ़राज़ सैफ़ी इससे पहले ज़ी हिंदुस्तान के सुपर प्राइम टाइम शो राष्ट्रवाद के एंकर के तौर पर बड़ी पहचान बना चुके हैं। सरफ़राज़ सैफ़ी ने नॉन स्टॉप राष्ट्रवाद के 200 एपिसोड कर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। आप ऐसे एंकर हैं जो फील्ड और स्टूडियो दोनों जगह अपने अंदाज से अलग छाप छोड़ते हैं। सरफराज़ सैफ़ी न्यूज़ ब्रेक करने के अपने स्टाइल को लेकर मशहूर हैं। आप ने सड़क से लेकर संसद तक रिपोर्टिंग की है। देश के अलग अलग इलाको में जाकर लोगों की समस्याएं करीब से देखीं, समझीं और उन्हें रिपोर्ट किया है।

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सरफ़राज़ सैफ़ी ने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत बतौर इंटर्न की थी। बतौर ट्रेनी क्राइम रिपोर्टर आप ने आजतक के साथ काम किया। कई चैनलों में आप ने शानदार रिपोर्टिंग, आउटपुट और एंकरिंग के जरिए एक धार बनाई। टेलीविजन इंडस्ट्री में फील्ड और स्टूडियो में स्मार्ट वर्क करने के लिये मशहूर सरफ़राज़ सैफ़ी को डेढ़ दशक से ज्यादा का अनुभव है। टीवी न्यूज़ इंडस्ट्री के हर काम को बारीकी से जानने वाले सरफ़राज़ सैफ़ी इकलौते ऐसे एंकर हैं, जिन्होंने दिन-रात मेहनत कर एडिटर इन चीफ और सीईओ तक की सीढियाँ चढ़ीं। पत्रकारिता के साथ-साथ आप ने कॉरपोरेट की दुनिया में भी अपनी एक पहचान बनाई और नाम कमाया ।

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टीवी इंडस्ट्री में सरफराज़ सैफ़ी अलग-अलग चैनलों में प्राइम टाइम प्रमुख एंकर के अलावा कई अहम और सीनियर पदों पर भी ज़िम्मेदारी निभा चुके हैं। सरफ़राज़ सैफी ने देश के पहले रिजनल चैनल एस वन, नेशनल टीवी आज़ाद न्यूज़, देश के पहले HD न्यूज़ चैनल न्यूज़ एक्सप्रेस, महुआ ग्रुप , समाचार प्लस जैसे कई चैनलों की सफल लॉन्चिंग में अहम भूमिका निभाई। बतौर वाइस प्रेसिडेंट सुधाकर शेट्टी के जय महाराष्ट्र और भास्कर न्यूज़ की शानदार लॉन्चिंग और ब्रांडिंग की। ख़बरों को लेकर उनके पैशन और नजरिये की चर्चा भी खूब हुई।

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ज़ी मीडिया ग्रुप के ज़ी हिन्दुस्तान को जब- रिलॉन्च किया गया तो सरफ़राज़ सैफ़ी को रात 9 बजे के प्राइम टाइम शो राष्ट्रवाद की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने टेलीविजन इंडस्ट्री के तमाम दिग्गजों के बीच रात 9 बजे की फाइट में अपना स्पेस तैयार किया, अपनी ख़ास पहचान बनाई, शो के जरिए राष्ट्रवाद को घर-घर तक पहुंचा दिया। इसका फायदा सरफ़राज़ सैफ़ी के साथ-साथ ज़ी हिन्दुस्तान को भी मिला।

सरफ़राज़ सैफ़ी टीवी इंडस्ट्री में कॉरपोरेट स्टाइल में वर्क के लिए जाने जाते हैं। आप उन-गिने चुने पत्रकारों में हैं, जो काफी कम उम्र में नेशनल मीडिया हाउस के वाइस प्रेसिडेंट कॉरपोरेट की ज़िम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा चुके हैं। अब उन्होंने न्यूज़ इंडिया के एडिटर इन चीफ़ कम सीईओ का पद संभाला है।

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सरफ़राज़ सैफ़ी की राजनैतिक गलियारों से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक हर कोने की ख़बरों पर शानदार पकड़ है। आपने पिछले दो दशकों में देश और राज्यों में होने वाले चुनाव को कवर किया है। आप ने यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, बिहार और बंगाल के चुनाव में महीनों ग्राउंड ज़ीरो से रिपोर्टिंग की । बंगाल में आपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह की सबसे ज़्यादा रैलियां कवर की। 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनेंगे ये खबर सबसे पहले सरफराज़ ने ही ब्रेक की थी। आप ने राजनीतिक गलियारों की कई बड़ी ख़बरें ब्रेक की हैं। कश्मीर में आतंक का दौर रहा हो या फिर बदली हुई फिजा…. सरफ़राज़ अपनी कैमरा टीम के साथ बिना किसी ख़ौफ़ के घाटी तक पहुंचे और शानदार कवरेज की। नोएडा का निठारी कांड हो या आरूषि हत्याकांड जैसी कई ख़बरें हैं, जहां सरफ़राज़ ने इन्वेस्टिगेटिव और एक्सक्लूसिव स्टोरीज की।

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सरफ़राज़ सैफ़ी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके अलावा सरफ़राज़ ने कानून की पढ़ाई की है। सरफ़राज़ सैफ़ी को देश विदेश में पत्रकारिता और कॉरपोरेट जगत में उनके काम के लिए कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। सरफ़राज़ सैफी को 2007 में नेशनल टेलीविज़न जर्नलिज़्म अवॉर्ड (बेस्ट क्राइम रिपोर्टर) और 2010 में राजीव गांधी ग्लोबल एक्सीलेंस अवॉर्ड (बेस्ट यूथ एंकर) भी हासिल किया। इंडिया यूथ आइकॉन से लेकर एस पी सिंह मीडिया यंग अचीवमेंट अवॉर्ड जैसे कई बड़े खिताब आपकी झोली में आ चुके हैं। सरफराज़ सैफ़ी को दुबई में होने वाले सबसे बड़ा अवार्ड समारोह World Brad Summit 2016 में इंडिया की तरफ़ से यंग एंकर और कॉरपोरेट पर्सन का अवॉर्ड मिल चुका है। थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में होने वाले एशियन जर्नलिस्ट अवार्ड-2017 का सम्मान भी आप हासिल कर चुके हैं।

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आपको बता दें सरफ़राज़ सैफ़ी और न्यूज़ इंडिया की टीम की चर्चा काफी दिनों से मीडिया इंडस्ट्री में हो रही है। न्यूज़ इंडिया के मैनेजिंग एडिटर पशुपति शर्मा, एडिटोरियल डायरेक्टर मनीष अवस्थी, क्रिएटिव हेड अतुल दयाल, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर सैयद उमर , आउटपुट हेड रंजेश शाही, एग्जीक्यूटिव एडिटर आशीष सिंह, एडिटर करेंट अफेयर्स अर्चना सिंह जैसे बड़े नामों के साथ मिलकर सैफ़ी ने ग्रैंड लॉन्चिंग की तैयारी पूरी कर ली है।

किसान रैली में अर्नब गोस्वामी,सुधीर चौधरी,रजत शर्मा और सरफराज सैफी की डॉगी इमेज वाले पोस्टर

news anchor dog image poster in kisan Rally
न्यूज एंकरों को लेकर कैसे - कैसे पोस्टर

खबर पसंद न आए तो नेताओं और दर्शकों के निशाने पर सबसे पहले न्यूज एंकर ही रहते हैं। न्यूज एंकरों पर दवाब बनाने के लिए कानूनी दावपेंच के साथ-साथ कवरेज के दौरान हूटिंग, नारेबाजी, ठेलम – ठेली और बैनर पोस्टर पर अभद्र टिप्पणी आदि का सहारा भी लिया जाता है।

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किसान रैली में नामी एंकरों के डॉगी इमेज !

लंबे समय से चले आ रहे किसान आंदोलन के दौरान भी कुछ ऐसा ही दिखायी दे रहा है। किसान नेताओं को जिनकी खबर पसंद आ रही है, उनका स्वागत किया जा रहा है और जिनकी खबर पसंद नहीं आ रही, उनका तिरस्कार किया जा रहा है। मसलन आजतक की प्रमुख एंकर चित्रा त्रिपाठी जब मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत की कवरेज करने गयी तो भीड़तंत्र ने उन्हें उस जगह को छोड़ने पर मजबूर कर दिया। एंकरों के साथ इस तरह के मसले हाल में काफी बढ़े हैं। इसी तरह का एक और दिलचस्प मामला और देखने को मिला जिसे मीडिया खबर के एक पाठक ने हमारे पास भेजा है।

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डॉग नंबर-1, डॉग नंबर-2 वाले पोस्टर

यह एक पोस्टर है जो किसान रैली (उत्तरप्रदेश) का है। इसमें देश के कई नामी एंकरों पर छींटाकशी की गई है और उनकी नंबरिंग डॉग नंबर-1, डॉग नंबर-2 आदि से की गई है। इस नंबरिंग में जी हिंदुस्तान के एंकर (पूर्व) सरफराज सैफी को डॉग नंबर1 तो रिपब्लिक भारत के अर्नब गोस्वामी को डॉग नंबर2, जी न्यूज के सुधीर चौधरी को डॉग नंबर3 और इंडिया टीवी के मशहूर एंकर और वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा को डॉग नंबर4 बताया गया है। पोस्टर से भी मन नहीं भरा तो कुछ लोगों ने पोस्टर पर जूते भी चलाए और एंकरों को मोदी का दलाल, कुत्ते और न जाने क्या – क्या कहा!

देखिए आप भी तस्वीर और यह छोटा सा वीडियो –

पत्रकारिता करने आया था, दलाली नहीं करूँगा

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नीरेंद्र नागर, पूर्व संपादक, नवभारत टाइम्स. कॉम

वह रामभक्त है मगर उन्हें ईश्वर नहीं, महापुरुष मानता है। वह हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रेमी है मगर उसकी कमियों से आँखें नहीं चुराता। वह हिंदूवादी है मगर मुस्लिम-द्वेषी नहीं है। मेरे मन में भक्तों और राष्ट्रवादियों की जो छवि थी, वह उससे थोड़ा अलग है।
पाँच-छह साल पहले जब पहली बार मेरा उसका सामना हुआ तो मैं संपादक-नियोक्ता की कुर्सी पर बैठा हुआ था और वह उम्मीदवार की कुर्सी पर। जहाँ तक मुझे याद है, उसने अपने माथे पर टीका लगाया हुआ था। इंटरव्यू में भी वह मुझे घोर परंपरावादी लगा।

पहली नज़र में उसने मुझे विकर्षित ही किया। लेकिन जिन 50-60 उम्मीदवारों की कॉपियाँ मैंने और मेरे साथी ने देखी थी, उनमें इसकी कॉपी सबसे अच्छी थी। मैं किसी योग्य उम्मीदवार को केवल इसलिए नहीं छाँट सकता था कि उसकी विचारधारा मुझसे नहीं मिलती थी। अगर ऐसा होता तो मैं भी 1985 में नवभारत टाइम्स में नहीं आ पाता क्योंकि मेरी और तत्कालीन प्रधान संपादक राजेंद्र माथुर की विचारधारा बहुत अलग थी।

वह हमारी टीम में शामिल हुआ। मेरी टीम में कई लड़के-लड़कियाँ आधुनिक और सेक्युलर विचारधारा के थे। उसका उनसे अकसर वैचारिक टकराव होता लेकिन उस टकराव ने कभी कोई भद्दी शक्ल नहीं ली। हाँ, कई बार वह इस बात से दुखी हो जाता कि कुछ साथी उसका मज़ाक उड़ाते हैं।

उसके लिखे किसी लेख पर मैं आपत्ति करता तो वह कहता, आपको जो ग़लत लगे, वह निकाल दें। मुझे यह सही नहीं लगता। लगता जैसे मैं सेंसरशिप कर रहा हूँ। मैं चाहता था कि वह समझे कि मैं क्यों और किस बात पर एतराज़ कर रहा हूँ। हम दोनों में लंबी चर्चा होती, कुछ तो घंटे से भी ज़्यादा लंबी चलतीं। वह चुपचाप सुनता रहता और अंत में हम एक निष्कर्ष पर पहुँचते और उसका लेख हलके-फुलके परिवर्तन के साथ स्वीकार हो जाता।

कई बार मुझे संदेह होता कि उसकी यह विनयशीलता स्वाभाविक है या ओढ़ी हुई। कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं संपादक हूँ, इसीलिए वह इस तरह पेश आता है। लेकिन जब मैं रिटायर हो गया, उसके बाद भी उसके फ़ोन बराबर आते रहे। जब वह कोई भंडाफोड़ करने वाली स्टोरी करता तो मुझे बताता। मुझे ख़ुशी होती और हैरानी भी कि एबीवीपी का सदस्य रह चुकने और बीजेपी का समर्थक होने के बाद भी वह राज्य की योगी सरकार की कलई खोलने में ज़रा भी पीछे नहीं रहता।

लेकिन उसकी यह ईमानदार पत्रकारिता लंबे समय तक नहीं चल पाई। यूपी सरकार उसके पीछे पड़ गई। संपादक को लगातार फ़ोन आने लगे और अपनी निष्ठा के कारण या सरकारी दबाव के चलते संपादक ने इसे रिपोर्टिंग करने से रोक दिया। कल पता चला, उसकी नवभारतटाइम्स.कॉम से विदाई कर दी गई।

कल बातचीत के दौरान वह बहुत उदास था। परसों उसे कहा गया कि लखनऊ छोड़कर नोएडा आ जाए जो उसके लिए संभव नहीं था। वह अपने उन बूढ़े दादा-दादी को अकेला छोड़कर नहीं आ सकता था जिन्होंने उसे बचपन से पाला-पोसा और संस्कार दिए। नतीजतन उसके सामने इस्तीफ़ा देने के अलावा कोई चारा नहीं था। इस्तीफा चौबीस घंटों के अंदर ही मंज़ूर हो गया।

उसके दुश्मन केवल सरकार में नहीं थे, अख़बार में भी थे। कुछ दिन पहले उसने एक ठेकेदार को रंगे हाथों पकड़ा था जो अपनी गाड़ी पर नगर निगम का बोर्ड लगाकर घूम रहा था। जब इसने उसकी कार का विडियो लिया और उस बंदे से सवाल-जवाब किया तो उसने झूठ बोला कि वह नगर निगम का कर्मचारी है। साथ ही उसने अख़बार के संपादक का हवाला भी दिया कि वह उनके परिचित हैं। उनसे फ़ोन पर बात भी करवाई। संपादक जी ने इससे कहा कि यह व्यक्ति हमारा सोर्स है और इसपर स्टोरी नहीं करें। वह स्टोरी नहीं हुई लेकिन वह घटना संभवतः ताबूत की अंतिम कील साबित हुई।

मैंने उससे पूछा, आगे क्या करोगे? उसने कहा, कुछ सोचा नहीं है। लेकिन इतना तय है कि दलाली नहीं करेंगे। रूँधे गले से वह बोला, सर, पीसीएस की नौकरी छोड़कर पत्रकारिता करने आए थे। अगर ईमानदारी से पत्रकारिता नहीं कर पाए तो पत्रकारिता ही छोड़ देंगे।

(नवभारत टाइम्स डॉट कॉम के पूर्व संपादक नीरेंद्र नागर के सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल से साभार)

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