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कोरोना संक्रमण से बेखबर कौशाम्बी बस डिपो की दिल दहला देने वाली तस्वीरें

ये कौशाम्बी बस डिपो (आनंद विहार) की तस्वीर है. #कोरोना से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल डिस्टेंस और #लॉकडाऊन का आह्वान किया. यहां सबकी वॉट लग गई. इनमें 1-2 भी संक्रमण का शिकार होगा, तो हालात भयावह हो सकते हैं. देखे तस्वीरे – दिल्ली से बाहर जाने की जद्दोजहद में मजदूर (तस्वीरें – सूरज सिंह से साभार)

बिना सोशल डिस्टेंस, बिना मेडिकल चेकअप के ये जिस तरह कुम्भ का मेला लगाए हुए हैं। कही कोरोना को महामारी बनाने में बड़ा कारक न बन जाये। जिनसे मिलने को ये मरे जा रहें हैं कहीं उन्हें ही कोरोना गिफ्ट न कर दें !

कोरोना के जानलेवा संक्रमण से कई गुना ज्यादा भयावह खतरे

कोरोनावायरस के कारण भारत में 21 दिनों का लॉकडाउन चल रहा है. इसका असर यूं तो पूरे हिन्दुस्तान पर पड़ा है लेकिन सबसे ज्यादा मार मजदूरों पर पड़ी है जो दूर दराज के राज्यों से दिल्ली – मुंबई या दूसरे प्रान्तों में कमाने आए थे. लॉकडाउन की वजह से उनके सामने रोजी -रोटी की समस्या पैदा हो गयी. डर का माहौल ऐसा बना कि कोरोना के डर को भी धत्ता बताकर वे पैदल ही अपने – अपने घरों की और निकल गए. इसी समस्या और सरकारी व्यवस्था की नाकामी पर वरिष्ठ पत्रकार प्रणव प्रियदर्शी की टिप्पणी –

व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में पहले भी ऐसे एकाधिक मौके आए हैं जब यह तय करना मुश्किल था कि ऐसा करना उचित होगा या वैसा करना. आज पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर वैसी ही दुविधा दिख रही है. जिन शहरों में लोग बरसों से मेहनत कर रहे हैं, आजीविका कमा रहे हैं, बच्चों को पढा रहे हैं, परिवार पाल रहे हैं वे शहर भी इस त्रासदी के दौरान उनमें भरोसा नहीं जगा पा रहे. खासकर जो आर्थिक रूप से कमजोर तबकों में आते हैं, वे अपनी सरकार पर, सरकारी एजेंसियों पर, उनके दावों पर, उनके वादों पर भरोसा नहीं कर पा रहे. खतरे का एहसास होते ही छटपटा उठते हैं उसी जगह पर वापस जाने को जहां से बेहतर जीवन की तलाश में इन बडे शहरों को आए थे.

सरकार ने बसें और ट्रेनें बंद करवा दीं तो पैदल निकल पड़े, सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने गांव की ओर. जानते हैं कि वहां भी कोई खजाना नहीं रखा. वहां गरीब और मजबूर माँ बाप होंगे, वहां बेबसी और लाचारी होगी. बस इसी आस में जा रहे हैं कि कुछ भी हो वहां अपने लोग हैं. मरना भी होगा तो अपने लोगों के बीच होगा, ऐसे लोग जो हमें जानते हैं, मानते हैं, हमारी परवाह करते हैं. तो इस अपनत्व तक पहुंचने के लिए वे जान पर खेल रहे हैं. सपरिवार कूद पड़े हैं अनिश्चितता के महासागर में कि उसे तैर कर पार कर जाएंगे.

सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल तय करेंगे, रास्ते में खाने पीने आराम करने का कोई ठिकाना नहीं, लुटने पिटने का डर अलग. कोरोना के जानलेवा संक्रमण से कई गुना ज्यादा भयावह खतरे. पर फिर भी इसे चुन रहे हैं क्योंकि इस आग के दरिया के उस पार अपने हैं. यहाँ इन शहरों में, सरकार में, सरकारी एजेंसियों में कहीं कोई अपनापन नहीं. हमारे लोकतंत्र की इससे बड़ी विफलता क्या होगी.

पर हद यह नहीं, यह है कि इस भीषण पराक्रम का परिचय दे रहे लोगों को अपनी सरकार से उसकी एजेंसियों से इतनी भी मदद नहीं मिल रही जितनी मदद हवा कर देती उनकी गति की दिशा में बहकर. उलटे कहीं पुलिस थक कर चूर हुए लोगों को घुटनों पर चलने को मजबूर करती है तो कहीं बीच राह में जबरन रोक कर वापस उन्हीं शहरों में लौटने को मजबूर करती है.

इन सबसे ज्यादा त्रासद यह है कि बतौर नागरिक मैं यह भी नहीं तय कर पा रहा कि इन लोगों की राह रोक लेने का यह फैसला सही है या गलत. मेरे पास जरूरी सूचनाएं नहीं हैं, कि मैं समझ सकूं बीमारी और वायरस के फैलाव की क्या स्थिति है, सरकार की क्या तैयारियां हैं, उसकी क्या रणनीति है, वह इन लोगों को जहां वे हैं वहां बेहतर सुरक्षा और रखरखाव का भरोसा दे सकती है या नहीं, उन्हें उनके गंतव्यों तक पहुंचा कर वहीं आइसोलेशन में रखवाने की व्यवस्था कर सकती है या नहीं, नहीं तो क्यों नहीं?

अब ये सूचनाएं नहीं हैं तो इनमें से किसी भी कार्रवाई को सही या गलत कहने की मेरी स्थिति भी नहीं है. सो मैं कुछ नहीं कर सकता. बस अपने उन देशवासियों की दुर्दशा को देख और महसूस कर सकता हूं, उस पर दुखी हो सकता हूं, बेबसी में हाथ पैर पटक सकता हूं और यह उम्मीद कर सकता हूं कि सरकारी तंत्र वही कर रहा हो जो आज के हालात में सबसे उपयुक्त है. अगर ऐसा न कर रहा हो तो जल्द से जल्द अपनी भूल सुधार कर वैसा करने लग जाए. (वरिष्ठ पत्रकार Pranava Priyadarshee के एफबी वॉल से साभार)

आजतक के पत्रकार सुजीत झा ने दिखाया लॉकडाउन का पटना जंक्शन

लॉकडाउन की वजह से पूरे देश में सन्नाटा पसरा हुआ. बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन सूनसान पड़े है. कहीं न आदमी न आदमी की जात. भीड़-भाड़ वाले पटना जंक्शन का भी कुछ ऐसा ही हाल है. आजतक के वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुजीत झा ने इसी सूने पटना जंक्शन की तस्वीरे शेयर करते हुए लिखा –

Lock Down patna Junction
पटना जंक्शन का ऐसा दृश्य जिसकी कल्पना नही की जा सकती थी।

sujit jha patna junction

रामायण देखने के लिए जब हिन्दुस्तान के साथ-साथ लाहौर की गलियां भी सूनी हो जाती थी

राजीव गांधी चाहते थे कि दूरदर्शन पर रामायण शुरू हो : रामानंद सागर ने मेरी बात सुनकर सपाट ढंग से कहा- मैं ये सब सिर्फ इसलिए कर रहा हूं क्योंकि सरकार ऐसा चाहती है. ये वो चिठ्ठी है जिसमें कि गिल साहब ( एस.एस.गिल सेक्रेटरी, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार ) ने मुझे इस तरह का सीरियल बनाने कहा है. मैंने इन एपिसोड पर बहुत पैसे खर्च कर दिए हैं.

भास्कर घोष जो कि दूरदर्शन के मशहूर डीजी हुए. हम और आप उन्हें फ्रंटलाइन पत्रिका में लगातार पढ़ते आए हैं, दूरदर्शन और सरकार के साथ टेलिविजिन को लेकर किए गए काम और अनुभव को लेकर एक किताब लिखी है- दूरदर्शन डेज. विकिंग( पेंग्विन बुक्स, नई दिल्ली ) से छपी ये किताब मीडिया के उन तमाम छात्रों, शोधार्थियों और देश की राजनीति में दिलचस्पी रखनेवाले लोगों के लिए यह बेहद जरूरी और दिलचस्प किताब है. इस किताब के ज़रिए वो समझ सकेंगे कि जिस टेलिविजन को देश के करोड़ों नागरिक लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और उनके कार्यक्रमों को देश की संस्कृति का पर्याय मानकर देखते हैं, राष्ट्र राज्य ( नेशन स्टेट ) इस माध्यम का इस्तेमाल कैसे अपनी मशीनरी के तौर पर करता है. किताब का दूसरा अध्याय है- Epic Serials and Serial Epics. इस किताब में भास्कर घोष दूरदर्शन और भारतीय टेलिविजन पर सोप ओपेरा जिसे कि बोलचार की भाषा में टीवी सीरियल कहा जाता है, के शुरू होने की कहानी की विस्तार से चर्चा करते हैं.

भास्कर घोष की पहचान बेहतरीन आइएएस ऑफिसर की रही है. बंगाल कैडर में तैनात वो ज्योति बसु के पसंदीदा अधिकारियों में से रहे हैं. सागरिका घोष को अपने इस पिता से मीडिया, राजनीति और भाषा के स्तर पर काफी कुछ सीखने को मिला. अपने काम और मेहनत से उन्होंने जो पहचान बनायी, उसका असर ये हुआ कि सीधे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें दूरदर्शन की स्थिति सुधारने के लिए दिल्ली बुला लिया. राजीव गांधी से अपनी यादगार मुलाकात के बारे में वो लिखते हैं कि मैं दूरदर्शन को लेकर बहुत चिंतित हूं. मैं सोचता हूं कि इसमें मूलचूल परिवर्तन की जरूरत है. हमें ऐसा कार्यक्रम बनाना चाहिए जो कि आकर्षक और समाज में नया अर्थ पैदा करनेवाला हो.

भास्कर घोष ने जब दूरदर्शन ज्वॉयन किया, उस वक्त उन्हें इस माध्यम का बहुत ज्यादा अनुभव नहीं था लेकिन इस मुलाकात के बाद वो समझ गए थे कि देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी पब्लिक ब्रॉडकास्टर के तौर पर दूरदर्शन को क्या शक्ल देना चाहते हैं ? इस चिठ्ठी में यह बताया गया था कि दूरदर्शन किस तरह के कार्यक्रमों का प्रसारण करे जिससे कि यहां की परंपरा, संस्कृति एवं मूल्यों का लोगों तक विस्तार हो सके. इस दृष्टि से रामायण और महाभारत पर सीरियल बनाने की बात कही गयी थी. उसके बाद ही जब औपचारिक तौर पर मंत्रालय से चिठ्ठी आयी तो इस पर काम करना शुरू कर दिया.

भास्कर घोष जिस अंदाज में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सेक्रेटरी एस.एस. गिल की चर्चा करते हैं, उनके हिसाब से वो एक ऐसे व्यक्ति रहे हैं कि न खाता, न बही, जो गिल कहें, वही सही. रामायण के लिए रामानंद सागर और महाभारत के लिए बी. आर. चोपड़ा से संपर्क करने की बात की गयी तो गिल साहब का यह नज़रिया स्पष्ट हो गया. उन्होंने इनके अलावा विधिवत रूप से न तो बाकी नामों की शॉर्टलिस्टिंग की और न ही किसी तरह की बाकी योग्यता पर विचार किया. इसका असर ये हुआ कि रामानंद सागर गिल साहब के अलावा किसी की सलाह मानने को तैयार न थे और उनका भरोसा था कि उनकी बातचीत सीधे सरकार से हो रही है. लेकिन भास्कर घोष ने रामानंद सागर के रामायण एपिसोड को लेकर न केवल असहमति जतायी बल्कि उसे अपने तरीके से बनवाने में कामयाब भी हुए. रामानंद सागर ने राम और लक्ष्मण के तौर पर जिन बाल कलाकारों को शामिल किया था, वे बेहद कमजोर दर्शकों पर असर पैदा करनेवाले नज़र नहीं आए. रामानंद सागर ने इसमें बदलाव करने में आनाकानी की. किताब में इसे लेकर लंबी चर्चा है जिसका सार यह है कि भास्कर घोष रामायण को भव्य, आकर्षक और भारतीय सिनेमा की तरह थोड़ा ग्लैमरस बनाना चाहते थे जबकि रामानंद का जोर इसे धार्मिक-पौराणिक कथा के तौर पर रामलीला की टेलिविजन प्रस्तुति देने भर की रही. दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण जिस शक्ल में किया गया, वो रामानंद सागर की मेहनत और नाम के बावजूद भास्कर घोष की सलाह की परिणति था.

दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण की लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि रविवार की सुबह हिन्दुस्तान के साथ-साथ लाहौर की गलियां सूनी पड़ जाने लगी. रामायण की लोकप्रियता लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा. बच्चों के खिलौने से लेकर पोशाक तक रामायण के चरित्रों से पट गया. अरूण गोविल राम की तरह पूजे और देखे जाने लगे. दूरदर्शन पर इस दौरान विज्ञापन की स्लॉट आगे कई-कई महीने के लिए बुक होने लग गए.

इसी बीच बुद्धिजीवियों के बीच इस बात की भी चर्चा शुरू हुई कि रामायण की लोकप्रियता से विश्व हिन्दू परिषद, बीजेपी, दक्षिणपंथी राजनीति को फलने-फूलने का मौका मिल गया है. रामायण के प्रसारण ने अयोध्या मामले को नए सिरे से जिंदा किया है. भास्कर घोष ने किताब में इन प्रसंगों की भी चर्चा की है.

इस दृष्टि से एम के दिनों में मैं जब मीडिया की पढ़ाई कर रहा था, अरविंद राजगोपाल की किताब Politics after Television: Hindu Nationalism and the Reshaping of the Public in India से गुज़रा. माध्यम और मतदान आधारित राजनीति, राष्ट्रवाद और भावुकता आधारित जनतंत्र की निर्मिति के रेशे को समझने की दृष्टि से यह एक जरूरी किताब है.

रामायण और महाभारत की लोकप्रियता का आलम यह रहा कि दूरदर्शन ने हाल-हाल तक रविवार के सुबह आठ से दस की स्लॉट को रिकॉल वैल्यू के तहत इस्तेमाल करना चाहा. हाल ही में उपनिषद् गंगा ( डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी निर्देशित ) का प्रसारण इसी रणनीति का हिस्सा रहा है.

देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ट्वीट करके बताया है कि सोशल मीडिया पर लोगों की मांग को ध्यान में रखते हुए हमने फैसला लिया है कि दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण फिर से किया जाय. मुझे नहीं पता कि कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लॉकडाउन के तहत इंटरनेट, नेटफ्लिक्स और सैकड़ों वेब सीरीज और मुफ्त की फिल्मों के बीच जी रही देश की आबादी के बीच यह फिर से कितना देखा जा सकेगा ? वैसे देखा जाय तो रिकॉल वैल्यू के तहत हर बडे मनोरंजन चैनल के रामायण के अपने संस्करण हैं. संभवतः वो सब भी मैंदान में उतरें. लेकिन

मीडिया और टेलिविजन के छात्रों के लिए यह बेहतर समय है कि वो इसी बहाने दूरदर्शन, उसके कार्यक्रम और उसकी लोकप्रियता और इन सबके बीच राष्ट्र राज्य ( नेशन स्टेट ), जनक्षेत्र( पब्लिक स्फीयर ) और राज्य के औजार ( स्टेट एपरेटस ) को भी पढ़ते चलें. इससे उन्हें एक साथ कई बातें समझने में मदद मिलेंगी. (लेखक के फेसबुक वॉल से साभार)

रामायण का दूरदर्शन पर फिर से होगा प्रसारण, लॉकडाउन में जय श्रीराम!

सिद्ध रामायण धारावाहिक का एक बार फिर दूरदर्शन नेशनल पर प्रसारण

देश में वर्तमान कोरोना वायरस की स्थिति और 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान घर में रहने वाले लोगों के हितों को ध्‍यान में रखते हुए, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और प्रसार भारती ने शनिवार, 28 मार्च 2020 से रामानंद सागर के रामायण धारावाहिक का दूरदर्शन पर एक बार फिर प्रसारण करने का फैसला किया है।

केन्‍द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह घोषणा करते हुए खुशी जाहिर की कि रामायण का एक बार फिर प्रसारण किया जा रहा है।

प्रसारण रोजाना 2 स्लॉट् में होगा, सुबह 9 बजे से सुबह 10 बजे तक और रात 9 बजे से रात 10 बजे तक। शाम के स्लॉट में श्रृंखला का अगला एपिसोड दिखाया जाएगा।

इस धारावाहिक में लोगों की भारी रुचि और इसके दोबारा प्रसारण की जनता की मांग को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय किया गया है। प्रसार भारती के सीईओ श्री शशि शेखर वेम्पति ने दूरदर्शन की टीम को बधाई दी जिसने इसके लिए युद्ध स्तर पर काम किया। श्री वेम्पति ने सागर परिवार को दूरदर्शन के लिए सामग्री उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद दिया।

प्रसार भारती कोविड-19 के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए विशेष प्रयास कर रहा है। समाचार सेवा प्रभाग हिंदी और अंग्रेजी में सुबह 8 से 9 बजे और शाम 8 बजे से 9 बजे तक विशेष बुलेटिन प्रसारित कर रहा है। डीडी न्यूज और डीडी इंडिया द्वारा अनेक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं।

रामायण दिखाने की मांग –
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों कोरोनावायरस के कारण 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की थी तो भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय सहित तमाम लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के प्रसारण की मांग उठाई थी। इसके बाद प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर ने बीते 26 मार्च को फिर से प्रसारण के संकेत दिए थे।

रामायण की लोकप्रियता –
‘रामायण’ का लेखन से लेकर निर्देशन रामानंद सागर ने किया था। इसलिए इस टीवी सीरीज को ‘रामानंद रामायण’ भी कहा जाता है। कुल 78 एपिसोड वाले इस धारावाहिक का देश मे पहली बार मूल प्रसारण 25 जनवरी, 1987 से लेकर 31 जुलाई, 1988 तक हुआ था। इस दौरान हर रविवार को सुबह साढ़े नौ बजे यह धारावाहिक टीवी पर आता था। तुलसीदास के ‘रामचरित मानस’ पर आधारित इस धारावाहिक का जब पहली बार देश में प्रसारण होना शुरू हुआ तो इसके प्रसारण के समय मानो देश ठहर जाता था। लोग कामकाज छोड़कर सुबह साढ़े नौ बजे ही टीवी से चिपक जाते थे। हालांकि उस वक्त बहुत कम घरों में टेलीविजन थे, तो जिनक घर सुविधा होती थी वहां पड़ोसियों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। 1987 से 1988 तक चले प्रसारण के दौरान ‘रामायण’ देश ही नहीं दुनिया में सबसे अधिक देखा जाने वाला धारावाहिक बन गया था। जून 2003 तक लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में यह विश्व के सर्वाधिक देखे जाने वाले पौराणिक धारावाहिक के रूप में दर्ज रहा।

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