उत्तराखंड में राजनीतिक संकट गहरा गया है।कांग्रेस के बागी विधायकों की वजह से हरीश रावत की सरकार संकट में है और अपनी सरकार बचाने के लिए कांग्रेस कुछ भी करने के लिए तैयार है।इसी सिलसिले में क्षेत्रीय चैनलों की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुकी ‘समाचार प्लस’ ने उत्तराखंड में सरकार बनाने-बिगाड़ने की कोशिश में चल रहे ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ का पर्दाफाश किया है
समाचार प्लस ने एक स्टिंग किया है जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत अपने ही विधायकों का मोल-तोल कर रहे हैं। ये स्टिंग समाचार प्लस के एडिटर इन चीफ उमेश कुमार ने किया. देखें पूरा वीडियो.
जेएनयू मामले में अपनी भूमिका को लेकर ज़ी न्यूज़ सवालों के घेरे में है. इसी क्रम में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने ज़ी न्यूज़ और उसके संपादक सुधीर चौधरी पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया की खबर के मुताबिक़ निवेदिता मेनन ने कहा है कि ज़ी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी का आपराधिक इतिहास रहा है और सुधीर चौधरी जेएनयू मामले में वहां के छात्रों के साथ-साथ अध्यापकों को निशाना बना रहे हैं और उनके बारे निराधार ख़बरों का प्रसारण कर रहे हैं.
प्रो.निवेदिता मेनन ने ये बाते काफिला नाम की वेबसाईट पर एक लेख लिखकर व्यक्त की. न्यूज़ वर्ल्ड की पूरी रिपोर्ट देखें.
शशि थरूर को कोसने और ट्रॉलिंग माल ठेलने से पहले इंडिया कॉन्क्लेव में स्वयं कन्हैया ने क्या कहा- उसे ध्यान से सुनने की जरूरत है. कन्हैया ने कहा कि यदि सरकार अंग्रेज बनना चाहती है तो हम भगत सिंह, भगत सिंह के सिपाही बनने को तैयार हैं.
असल में समय के साथ-साथ हम इतने सपाट होते चले जा रहे हैं कि किसी भी बात का सफारी सूट टाइप सा मतलब निकालने लग जाते हैं कि उपर का रंग ग्रे है तो नीचे फुपैंट भी उसी रंग की होगी. ऐसी बातों को तूल दिए जाने का सीधा मतलब है कि हम भाषा के स्तर पर बेहद दरिद्र होते जा रहे हैं और पूरी बात सुनने का धैर्य तो छोड़ ही दीजिए.
रही बात जी न्यूज की तो पूरी तरह बैकफुट पर आ जाने के बीच उसे किसी न किसी को तो राष्ट्रद्रोही साबित करना ही है. उसे तो मार्केटिंग के लोगों की तरह टार्गेट मिला है- हर सप्ताह कम से कम एक राष्ट्रद्रोही की तलाश करो.
वेद विलास उनियालउत्तराखंड का भला कैसे होगा। 700 से ज्यादा अखबार निकल रहे हैं। दो हजार से ज्यादा पत्रकार केवल देहरादून में घूम रहे हैं। कौन है कहां के हैं क्या करते हैं किसी को नहीं पता। बस सचिवालय मंत्रालयों में घूमते हैं। इनके अखबार पत्रिकांएं भी नजर नहीं आते।
और मजे की बात ये है कि इनमें कई मान्यता प्राप्त पत्रकार बने हुए हैं। हर तरह शासकीय सुविधा उठा रहे हैं। पत्रकारिता की आड में ये उत्तराखंड को दिवालियां बना रहे हैं। पूरे उत्तराखंड में ऐसे पत्रकार घूम रहे हैं। लेकिन देहरादून में तो इन फर्जी पत्रकारों की भरमार है। जरा मंत्रालय सचिवालय के आसपास चले जाइए। आपको ये मिलेगें। हो सकता है कि इस नाम से – बहती रहे गंगा, करवट बदलता समाज, कहिए जनाब, चिंगारी जो भड़की, मधुर हिमालय, हम से है जमाना। या कुछ ऐसे ही नामों से। इनमें एक पत्रकार तो मछली बेचता है। पत्रकारिता से उसका कोई लेना देना नहीं।
सूचना विभाग इस तरफ ध्यान नहीं देता है। बहुत अनाप शनाप ढंग से पत्रकारिता की सेवा कर रहे हैं। इनमें ज्यादा लोग पत्रकार के वेश में दलाल है। सूचना विभाग का दायित्व होना चाहिए कि इसकी पड़ताल करे। ये पत्रकार लाइजनिंग तो करते ही है, इन्हें अपने अखबार पत्रिका ( जो शायद बीस पच्चीस की संख्या में छपती है सूची बनाने के लिए) सरकार से अच्छा खासा पैसा लेते हैं। कहीं इनहें पढा नहीं जाता, कहीं इन्हें देखा नहीं जाता।