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अर्णब गोस्वामी के नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू के बाद जागा बीबीसी !

मनमोहन भारत के प्रधानमंत्री थे तो इंटरव्यू के सवाल और जवाब यही तक सिमटते थे कि राहुल आएंगे तो पद खाली कर दूंगा या उन्हें मंत्रीमंडल में आकर अपने अनुभव का लाभ देश को देना चाहिए। बीबीसी ने कभी उन इंटरव्यू पर गौर नहीं किया जो राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त के जरिए लिए जाते थे।

वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार

वेद विलास उनियाल
वेद विलास उनियाल

बीबीसी का मानना है कि वह पत्रकारिता में निरपेक्षता उत्तरदायित्व स्वतंत्रता को अहमियत देता है। इसी नाते बीबीसी ने कारवां के राजनीतिक संपादक श्री हरतोष बल से बातचीत के आधार पर एक आलेख बनाया। क्या यह आलेख भी अपने आप में प्रोयोजिहत नहीं लगता। इससे पहले बीबीसी ने कभी ऐसी पहल की है किप किरससि प्रधानमंत्री से पूछे गए प्रश्न कैसे थे। हम इसे कारवां के एडिटर के आलेख नहीं बल्कि बीबीसी के एक आलेख के तौर पर ही पढ रहे हैं। क्योकि साफ लगता है कि यह लेख लिखवाया है और बीबीसी की भावनाओं के अनुरूप इसमें बातें कही गई है। उन्होंने बीबीसी डाट काम में कहा है कि टाइम्स नाऊ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अर्नव ने कुछ कठिन सवालों को छोड़ दिया। लगता है कि जैसे इंटरव्यू पहले से तैयार हो। कुछ सवालों के परिप्रेक्ष्य में ऐसा हो सकता है । बीबीसी इस इंटरव्यू के प्रसारित होते ही जिस तरह जाग उठा, वह भी अचरच भरा है। बीबीसी की अपनी खुद की कार्यप्रणाली में कदम कदम पर झोल दिखते हैं। हां, मार्क टुली की बात कुछ और थी।

1- बीबीसी की लंबी पारी में आज तक नहीं देखा कि जब ये सवाल उठा हो कि किस पत्रकार को क्या पूछना चाहिए था या क्या छूट गया। बीबीसी ने जो बातें उठाईं हैं वो उनके अपने मापंदडों में भी खरी नहीं उतरती। जब श्री मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे तो इंटरव्यू के सवाल और जवाब यही तक सिमटते थे कि राहुल गांधीजी आएंगे तो पद खाली कर दूंगा या उन्हें मंत्रीमंडल में आकर अपने अनुभव का लाभ देश को देना चाहिए। बीबीसी ने कभी उन इंटरव्यू पर गौर नहीं किया जो राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त आदि के जरिए लिए जाते थे। बेशक सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं थी, या प्रियंका राजनीति में नहीं थी। लेकिन एनएसी के बतौर किस तरह सोनिया गांधी का वर्चस्व प्रधानमंत्री से उपर था , देश से छिपा नहीं। बीबीसी की अपनी क्या भूमिका थी। जब प्रश्न यह भी होते थे कि सोनियाजी क्या खाना पसंद करती है। जवाब अरहल की दाल ही मिलना था। जहां प्रियंका गांधी से सवाल होता है कि स्व इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व के ज्यादा निकट कौन है आप या राहुल । जाहिर है जवाब यही मिलता कि राहुल गांधी क्योंकी चुनाव में राहुल गांधी को ही लोगों के समक्ष खड़ा होना था। भारत में सुविधाजनक सवालों की शैली प्रधानमंत्री तक ही नहीं आती, वह मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेताओं तक भी आती है। लेकिन बीबीसी नहीं बता पाया कि अरविंद केजरीवाल के संसदीय सचिव केकिस्से और तीन बड़े घोटालों के आरोपों के बीच उसने प्रश्नों की कोई सूची तैयार की है या नहीं। निरपेक्ष पत्रकारिता का दंभ भरने वाली बीबीसी ने अरविंद केजरीवाल के संदर्भ में जब देश संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर बहस कर रहा था तब एक छोटी सी खबर बना कर टाल दिया। बीबीसी पूछ पाई अरविंद केजरीवाल से जिन चीजों की आलोचना करते हुए आप पार्टी को खडा किया गया था, राजनीति के वही सस्ते और भद्दे नुस्खे आपने भी क्यों अपना लिए।

2- बीबीसी की निरपेक्ष पत्रकारिता नहीं बता पाएगी कि मुलायम सिंह या अखिलेश से कोई ऐसा इंटरव्यू कर पाए हैं कि जिसमें पूछा जाता कि परिवार के 28 लोगों को सुख देना ही क्या समाजवाद है। न हीं बिहार मे नितिश के सत्ता संभालने के बाद के बिखरते राजकाज और माहौल पर कोई धारदार इंटरव्यू की तैयारी बीबीसी कर पाया। क्या स्वतंत्र पत्रकारिता की बात करने वाले बीबीसी ने कभी मायावती के सत्ता में रहते कोई इंटरव्यू लेने की कोशिश की।

3- बीबीसी डाट काम में कहा गया प्रधानमंत्री को एनएसजी पर चीन केसामने गिड़गिड़ाना पड़ा। क्या बीबीसी जैसा स्थापित संस्थान एनएसजी के सदस्य देशों के प्रावधानों से अंजान है। क्या बीबीसी को नहीं लगता कि भारत को एनएसजी में शामिल होने के लिए ऐसे माहौल को बनाना ही पड़ेगा। उसमें हर सदस्य की अपनी अहमियत है फिर चीन का तो बीत ही अलग। क्या वार्ता के बजाय भारत के प्रधानमंत्री को चीन के प्रमुख से आंख तरेर कर कहना चाहिए था कि एनएसजी में उनकी सदस्यता पर रोड़े अटकाए तो लाल सागर के पास निपट लेंगे। अजब इसी युद्ध के डेढ दशक बाद राजीव गांधी की चीन यात्रा पर गए तो इसी बीबीसी ने कहा था कि जमी बर्फ टूटी है। आखिर कहीं से तो कोशिश करनी पडेगी। तब बीबीसी को राजीव गांधी गिड़गिडाने वाले प्रधानमंत्री नजर नहीं आए।

4- सोनियाजी ने प्रेस को आज तक समय नहीं दिया है। वह हमेशा राजपरिवारों की तरह टीवी मीडिया के माइक सामने लाने पर दो तीन लाइन का कोई व्यक्तत्व देकर आगे बढ जाती थी। उनकी डेढ़ दशक की राजनीति में क्या किसी बड़ी प्रेस काफ्रेस की याद है बीबीसी को। क्या बीबीसी ने अपने निरपेक्ष स्वतंत्र पत्रकारिता के नाते कभी यह सवाल उठाया। उठाया होता तो आज उनकी बात और अच्छी लगती। लेकिन अचानक उन्हें बोध कैसे हुआ कि कोई पत्रकार क्या पूछे और क्या नहीं।

5- बीबीसी डाट काम को लगता है कि अर्णव गोस्वामी को रिर्जव बैंक के गर्वनर मुक्त प्रशसा होने पर दूसरी पारी न दिए जाने पर सवाल करना चाहिए था। बेशक सवाल हो सकता है। लेकिन मुक्त प्रशंसा तो भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा अब्दुल कलाम की भी हुई थी। क्या बीबीसी ने इसपर किसी कांग्रेसी नेता का साक्षात्कार लेने की जरूरत समझी कि प्रखर वैज्ञानिक और चिंतक को राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी एक बार और क्यों नहीं सौंपी गई।

6- बीबीसी पत्रकारिता की जिम्मेदारी की बात करती है लेकिन लालू यादव के प्रसंग पर बीबीसी में ज्यादातर चुटकीले, हास परिहासों , जुमलों के आसपास बीबीसी की खबरे घूमती रही । बिहार के लोगों की दिक्कत मुश्किले और सत्ता के अपने तिकडम चालाकियां ये बीबीसी के लिए खबर नहीं बने। यहां तक कि बिहार के लोग मुंबई में कह कह कर अपनानित होते रहे लेकिन बीबीसी ने कभी रिपोर्ट नहीं दी कि किस अदूरदर्शी अयोग्य नेतृत्व के चलते बिहार को ऐसा सहना पडा। क्या कभी बिहार की सत्ताओं के तौर तरीकों पर बीबीसी सवाल उठा पाया। कया लालू से पूछा कि परिवार के हर सदस्य को संसद विधानसभा में लाकर लोहिया और जयप्रकाश नारायण को किस तरह याद कर पाते हो। जिन्होंने कहा था सिंघासन खाली करो कि जनता आती है। क्या बीबीसी लालू के परिवार को ही भारत की जनता मानती है।

7- बीबीसी डाट काम में कहा गया है कि कि आखिर सुब्रमण्यम स्वामी को राज्यसभा में नरंद्र मोदी तो लेकर आए हैं। बेशक लाए हैं लेकिन देश का प्रधानमंत्री ने सीधे टिप्पणी भी तो की है कि प्रचार के लिए गलत संवाद न किया जाए। हां स्वामी उनकी बात न माने तो अगले इंटरव्यू में ये पूछा जा सकता है कि प्रधानमंत्रीजी आपकी बात पर गौर नहीं हुआ। लेकिन यह प्रश्न क्या कि लाएतो आप ही थे। क्या स्वामी किसी अपराधिक मामले से जुड़े हैं कि प्रधानमंत्री पर सवाल हो कि आप उन्हें राज्यसभा में लाए थे।

8- बीबीसी ने यब बात उठाई है कि राहुल गांधी के समय अर्णव गोस्वामी बहुत अलग तेवर में थे, जबकिउस समय राहुल गांधी की पार्टी सत्ता में थी। क्या बीबीसी को उस समय और हालातों का पता नहीं । एक के बाद एक 36 घोटालों से देश में गहरा आक्रोश दिखता था। प्रधानमंत्री एकदम मौन थे। अन्ना हजारे ने हुंकार भरी थी। ऐसे में बीबीसी क्या अपेक्षा करता है कि अर्णव के सवाल कैसे होने चाहिए थे।

9 – क्या बीबीसी को तब सहज और अनुकूल लगता कि अर्णव की जगह आकार पटेल टाइम्स नाऊ में राहुल गांधी का साक्षात्कार लेते। अर्णव ने सभी महत्वपूर्ण सवालों को उठाया। यह अलग बात है कि विपक्ष में होने पर भी कांग्रेस की स्थिति ऐसी बनी है कि तब भी प्रहार उसी पर हो रहे हैं। बीबीसी को जानना चाहिए कि इसकी वजह क्या है। लगातार एक परिवार की निष्ठा से भरी पत्रकारिता के चलते बीबीसी की साख गिरी है। ऐसा दूसरेमाध्यमों को अब भाजपा के साथ भी नहीं करना चाहिए। पत्रकारिता को वास्तव में निरपेक्ष रहना चाहिए। कम से कम आज बीबीसी यह समझाने की स्थिति में नहीं है कि निरपेक्ष पत्रकारिता किसे कहते हैं। कुछ नहीं तो आकार पटेल के ही पिछले पांच दस लेख पढ लीजिए। लगता है कि जैसे हाथ में ओले लेकर एकतरफा प्रहार करने की मंशा हो। वायस्ड पत्रकारिता विश्वास खोती है। फिर चाहे आकार पटेल हों या आशीष खेतान या दीपक चौरसिया । बीबीसी का मौजूदा ढांचे में निरपेक्ष पत्रकारिता की बात नहीं कर सकते। यह अपने ढंग के थोपे विचारों की दुकान चलाने जैसा है।

सोशल मीडिया एजेंडा पत्रकारिता के लिए हाइजैक हो गया है – के जी सुरेश

मीडिया खबर कॉनक्लेव

मीडिया खबर के मीडिया कॉनक्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान की रिपोर्ट : #हैशटैग पत्रकारिता और ख़बरों की बदलती दुनिया

हैशटैग पत्रकारिता व्यक्ति की वस्तुनिष्ठता को प्रतिबिंबित नहीं करता – राहुल देव
सोशल मीडिया एजेंडा पत्रकारिता के लिए हाइजैक हो गया है – के जी सुरेश
हैशटैग से ज्यादा खतरनाक चीज ‘कीबोर्ड’ है – नीरेंद्र नागर
हैशटैग जर्नलिज्म से लोकतंत्र का विस्तार होता है – अनुराग बत्रा
सोशल मीडिया की आड़ में पत्रकार ही पीआर कर रहे हैं – सतीश के सिंह
तीन करोड़ ट्विटर अकाउंटधारी सवा सौ करोड़ की आबादी की आवाज नहीं- सईद अंसारी

मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016

दिल्ली. भारत में आधुनिक टेलीविजन पत्रकारिता के जनक और आजतक के संस्थापक संपादक स्वर्गीय सुरेन्द्र प्रताप सिंह (एसपी सिंह) की याद में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 26 जून की शाम को मीडिया खबर कॉनक्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह आयोजन मीडिया खबर डॉट कॉम द्वारा किया गया। मीडिया कॉनक्लेव में मीडिया जगत के दिग्गजों ने भाग लिया।इस मौके पर हैशटैग की पत्रकारिता और ख़बरों की बदलती दुनिया पर एक परिचर्चा का आयोजन भी किया गया जिसमें राहुल देव(वरिष्ठ पत्रकार), केजी सुरेश (डायरेक्टर,आईआईएमसी), नीरेंद्र नागर (संपादक,नवभारतटाइम्स.कॉम), सतीश के सिंह (ग्रुप एडिटर,लाइव इंडिया), मुकेश कुमार(वरिष्ठ पत्रकार), सईद अंसारी(न्यूज़ एंकर,आजतक), बियांका घोष (चीफ कंटेंट ऑफिसर,एचसीएल टेक्नोलॉजी) और अनुराग बत्रा (एडिटर-इन-चीफ,बिज़नेस वर्ल्ड) ने अपनी बात रखी।

मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016

वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने सोशल मीडिया के संदर्भ में कहा कि हैशटैग की बड़ी दिक्कत है कि यह व्यक्ति की वस्तुनिष्ठता को प्रतिबिंबित नहीं करता . लेकिन यदि सचेत होकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाए तो ये उपयोगी सिद्ध होगा. लेकिन नवभारत टाइम्स.कॉम के संपादक नीरेंद्र नागर ने हैशटैग को पत्रकारिता के लिए खतरनाक मानते हुए कहा कि ट्विटर ने पत्रकारों को निकम्मा बना दिया है. इसका असल इस्तेमाल तो राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं. वैसे हैशटैग से ज्यादा खतरनाक चीज ‘कीबोर्ड’ है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने कहा कि हैशटग जर्नलिज्म कोई अलग जर्नलिज्म नहीं है. दरअसल जिस जर्नलिज्म की हम चर्चा करते आए हैं, यह उसी का एक हिस्सा है. अहम सवाल ये नहीं है कि सोशल मीडिया अच्छा है या बुरा. बड़ा सवाल ये है कि इसे कौन और कैसे इस्तेमाल कर रहा है? लेकिन सच्चाई ये है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल समृद्ध और पावरफुल लोग कर रहे हैं. वास्तव में हैशटैग मुख्यधारा की पत्रकारिता का एक्सटेंशन है.

भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक के जी सुरेश ने हैशटैग पत्रकारिता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मैं खुद सोशल मीडिया का समर्थक हूं और उसपर सक्रिय भी हूँ. लेकिन जिस संस्थान (भारतीय जनसंचार संस्थान) के महानिदेशक का पद मिला वहां डिजिटल मीडिया का कोई कोर्स ही नहीं था, अब जाकर वहां नयी मीडिया का विभाग शुरू हुआ. लेकिन हैशटैग पत्रकारिता ऐसी निरर्थक बहस को भी बढ़ावा देता है और दो लोगों की बेमतलब की बहस को राष्ट्रीय बहस में तब्दील कर देता है. मुझे कभी कबी ताज्जुब होता है कि हम किसका एजेंड़ा सर्व कर रहे हैं. सोशल मीडिया एजेंडा पत्रकारिता के लिए हाइजैक हो गया है और ये एक खतरनाक स्थिति है. सोशल मडिया को वापस सोसाइटी के हाथ में जाना चाहिए.

लेकिन बिजनेस वर्ल्ड के संपादक अनुराग बत्रा ने सोशल मीडिया और हैशटैग जर्नलिज्म का पक्ष लेते हुए कहा कि हैशटैग जर्नलिज्म खतरा नहीं,समाज के लिए एक अवसर है. इससे लोकतंत्र का विस्तार होता है. वही एचसीएल की कंटेंट हेड बियांका घोष ने कहा कि आज की तारीख में ब्रांडेंट कंटेंट और एडीटोरियल के बीच की विभाजन रेखा पूरी तरह से खत्म हो गई है.हैशटैग पत्रकारिता को मैं पसंद नहीं करती,लेकिन इससे आप इंकार भी नहीं कर सकते.

लाइव इंडिया के ग्रुप एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह ने कहा कि सोशल मीडिया के संदर्भ में कहा कि आजकल सोशल मीडिया की आड़ में पत्रकार ही पीआर कर रहा है.पीआर कंपनियों के लिए कुछ बचा नहीं. ये बहुत ही खतरनाक स्थिति है.

मीडिया कॉनक्लेव में अपनी आ रखते सईद अंसारी
मीडिया कॉनक्लेव में अपनी आ रखते सईद अंसारी

सबसे अंतिम वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए आजतक के मशहूर न्यूज़ एंकर सईद अंसारी ने कहा कि क्या ट्विटर के स्टेटस किसी भी व्यक्ति के विचार को व्यक्त करे के लिए पर्याप्त है? क्या तीन करोड़ ट्विटर अकाउंटधारी सवा सौ करोड़ की आबादी की आवाज बन पा रहे हैं? यदि आवाज़ है तो किसी व्यक्ति का स्टेटस क्यों ट्रेंड नहीं करता. दरअसल ये बहुत ही एलीट, सिलेब्रेटी का माध्यम है. हालाँकि हम इसकी जरूरत को नकार नहीं सकते. बुलेटिन के बीच में हमें भी कई बार किसी की ट्वीट को शामिल करना होता है और खबरें वहां से दूसरी दिशा में मुड़ती है. ट्विटर पर जो ट्रेंड हो रहा है, वो मेनस्ट्रीम मीडिया में बतौर खबर शामिल किया जा रहा है लेकिन कभी आपने देखा है कि किसी सामान्य व्यक्ति की कोई खबर ट्रेंड कर रही हो? आप लाख तर्क देते रहिए कि इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही है लेकिन क्या ये सचमुच इतना मासूम माध्यम है ?

एसपी की याद में मीडिया कॉनक्लेव में बड़ी संख्या में पत्रकार और बुद्धिजीवी शामिल हुए. वक्ताओं का स्वागत ओम प्रकाश,ब्रजेश कुमार,चंदन कुमार और आशुतोष कुमार ने किया और स्वागत भाषण मीडिया खबर के संपादक पुष्कर पुष्प ने दिया.मंच संचालन निमिष कुमार ने किया जबकि विषय परिचय मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने दिया. कार्यक्रम के अंत में मीडिया कॉनक्लेव का अगला चैप्टर मुजफ्फरपुर(बिहार) में करने की घोषणा की गयी. इस कॉनक्लेव में बिहार के साथ-साथ देशभर के पत्रकार,बुद्धिजीवी और साहित्यकार शिरकत करेंगे. बिहार के कई पत्रकारों को इस मौके पर सम्मानित भी किया जाएगा.

मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान 2016

तीन करोड़ ट्विटर अकाउंटधारी, सवा सौ करोड़ की जुबान नहीं बन सकतेः सईद अंसारी, एंकर,आजतक

मीडिया कॉनक्लेव में अपनी आ रखते सईद अंसारी
मीडिया कॉनक्लेव में अपनी आ रखते सईद अंसारी

मीडिया खबर के मीडिया कॉनक्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान में आजतक के प्रख्यात एंकर सईद अंसारी ने हैशटैग पत्रकारिता और ख़बरों की बदलती दुनिया पर प्रकाश डाला.उनके वक्तव्य पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की प्रतिक्रिया (मॉडरेटर)

मीडिया कॉनक्लेव में अपनी आ रखते सईद अंसारी
मीडिया कॉनक्लेव में अपनी आ रखते सईद अंसारी

आजतक के प्राइम टाइम एंकर सईद अंसारी ट्विटर पर सक्रिय नहीं है, फेसबुक पर भी नहीं और न ही व्हॉट्स अप को बहुत एन्ज्वॉय करते हैं. उनकी अपनी समझ है कि जो मजा ऑफलाइन रिश्ते-दोस्ती में है वो वर्चुअल स्पेस पर बनी दोस्ती में नहीं है. लोगबाग मिलते हैं और सीधा कहते हैं- हमदोनों फेसबुक फ्रेंड हैं. क्या सिर्फ एक ये बात हमारे आत्मीय होने की वजह हो सकती है ? ये तो फिर भी ठीक है लेकिन जिसे आप जानते तक नहीं, जो आपके सामने तक नहीं आता लेकिन मार गंदी-गंदी गालियां दिए जा रहा है. आप क्यों झेंलेगे ये गालियां, किसके लिए झेलेंगे ? लेकिन इन सबके बावजूद वो सोशल मीडिया कंटेंट को लेकर अपडेट रहते हैं. उन्हें हर किसी की ट्वीट, पोस्ट और एफबी स्टेटस की जानकारी होती है.




सईद अंसारी के सोशल मीडिया के किसी भी मंच पर न होने और हैशटैग पत्रकारिता ( मीडियाखबर कॉन्क्लेव एवं एस पी सिंह स्मृति व्याख्यायन 2016, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली ) पर बतौर वक्ता अपनी बात रखने को लेकर डीडी न्यूज के मीडियाकर्मी आलोक श्रीवास्तव ( जो पहले आजतक में रहे हैं) ने अपनी तरफ से भरपूर घेरने की कोशिश की. वो अपने सवाल को भरसक नैतिकता के सवाल की तरफ ले जाना चाह रहे थे लेकिन अभिषेक श्रीवास्तव का नैतिक आग्रह से पूछा गया ये सवाल पीछे रह गया जब सईद अंसारी ने सोशल मीडिया पर न होने की वजह व्यक्तिगत इच्छा बताते हुए मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए इसे अनिवार्य बनते जा रहे माध्यम के तौर पर परिभाषित करना शुरू किया.

सईद अंसारी से सवाल करते आलोक श्रीवास्तव
सईद अंसारी से सवाल करते आलोक श्रीवास्तव

सईद अंसारी ने बहुत ही साफ तौर पर कहा कि बुलेटिन के बीच में हमें किसी की ट्वीट को शामिल करना होता है, खबरें वहां से दूसरी दिशा में मुड़ती है. हम इसकी जरूरत को नकार नहीं सकते. लेकिन इन सबके बावजूद असल सवाल है कि क्या तीन करोड़ ट्विटर अकाउंटधारी सवा सौ करोड़ की आबादी की आवाज बन पा रहे हैं, बन सकेंगे ? आप लाख तर्क देते रहिए कि इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही है, अब सामान्य लोग भी इसके जरिए अपनी बात रख रहे हैं लेकिन क्या ये सचमुच इतना मासूम माध्यम है ?

ट्विटर पर जो ट्रेंड हो रहा है, वो मेनस्ट्रीम मीडिया में बतौर खबर शामिल किया जा रहा है लेकिन कभी आपने देखा है कि किसी सामान्य व्यक्ति की कोई खबर ट्रेंड कर रही हो या फिर जब तक उसमे सिलेब्रेटी शामिल नहीं हुए हों. मैं अपने निजी कारणों( खासकर वेवजह गालियों की संभावना और रिश्तों में गर्माहट नहीं) से यहां नहीं हूं लेकिन जो लोग हैं और स्टारडस्ट नहीं है, उनकी बातें, उनके हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं ?

आज से सात-आठ साल पहले जब मीडिया इन्डस्ट्री के लोग सोशल मीडिया पर नहीं हुआ करते थे, घबराते थे या तकनीक के स्तर पर लद्दड हुआ करते थे तो हम उन्हें किसी न किसी तरह प्रोवोक किया करते थे कि वो इस पर आएं. मीडियाखबर, मोहल्लालाइव, भड़ास, विस्फोट जैसे पोर्टल और वेबसाइट ने इन पर लिख-लिखकर सोशल मीडिया के प्रति दिलचस्पी पैदा की और वो धीरे-धीरे इस पर आने लगे. उनके संस्थान अपने शुरुआती दौर में यहां आने से रोकते रहे. फेसबुक, ट्विटर अकाउंट एक्सेस करने तक की इजाजत नहीं हुआ करती थी और इन सबके बीच जो मीडियाकर्मी ऐसा कर पाता था वो हमारा आदर्श हुआ करता.

sayeed mk guestआज स्थिति बदली है. मेनस्टरीम मीडिया को सीधे तौर पर इसमे अपने व्यावसायिक हित और भविष्य दिख रहा है. लिहाजा अब मीडियाकर्मी पर दवाब है कि ज्यादा से ज्यादा बज्ज क्रिएट करे, डिजिटल मीडिया पर अपनी उपस्थिति और पकड़ मजबूत करे. ऐसे में सईद अंसारी सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं है और सक्रिय न होने के पीछे एक ठोस वजह है तो अब हमारा तर्क बदल जा रहा है. अब मेनस्ट्रीम मीडिया में काम कर रहे लोगों के लिए बड़ी चुनौती है कि अपनी इस इच्छा और फैसले पर कब तक कायम रह सकते हैं. ऐसा इसलिए भी कि उनकी इस इच्छा में चैनल, अखबार के राजस्व के स्तर पर घाटा होने की संभावना है. बहरहाल जब तक सईद अंसारी अपनी इच्छा को बचा ले जाते हैं, हम उन्हें इस बात की बधाई तो दे ही सकते हैं.

इसी कड़ी में उन्होंने जब खबरों की बदलती दुनिया पर अपनी बात रखी तो उनमे जो तर्क थे वो सवालों की शक्ल में थे. मसलन किसको, किस बात से कितना फर्क पड़ रहा है..कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिसे हम सोशल मीडिया कह रहे हैं वो भी चंद लोगों की गिरफ्त में जाकर रह गया है और वहीं कन्सेंट मैनुफैक्चरिंग का काम कर रहे हैं..




तो ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि इसके पीछे जो बाजार की ताकतें और उसका मायाजाल काम कर रहा है, उस पर बात हो. ट्रेंड कराने, शेयर और हिट्स बढ़ाने का काम जो पैसे ले-देकर किए जा रहे हैं, वो सारी चीजें लोगों के सामने आए. नहीं तो उपरी तौर पर सोशल मीडिया हमें जितना व्यापक दिख रहा है, उसके भीतर खबरों और जानकारियों का दायरा उतना ही अधिक सिमटता चला जाएगा ? क्या दूरदर्शन पर एक भी ऐसी खबर परसारित नहीं होती और एक भी ऐसा पत्रकार काम नहीं कर रहा जो ट्विटर पर ट्रेंड कर सके, उसे सम्मानित किया जा सके ? लेकिन नहीं, ले-देकर वही चार-छह चैनलों की बात पूरी मीडिया की बात और कंटेंट बातकर लोगों के बीच है.

सच पूछिए तो जिस तेवर के साथ जो बातें वो कह रहे थे, हमें उनसे उम्मीद नहीं थी. हम सैडिस्ट नहीं हैं लेकिन मीडिया के काम करने के तरीके और उसकी व्यावसायिक हरकतों को जितना जान-समझ पाते हैं, उन सबके बीच काम करते हुए सईद अंसारी क्या, किसी के लिए भी बोलना आसान नहीं है. लेकिन सुनकर अच्छा लगा कि एक ऐसे संस्थान का प्राइम टाइम एंकर ये सब कह रहा है जहां सबसे तेज के नाम पर वही सारी हरकतें की जाती हैं, जिसे सईद अंसारी पत्रकारिता का हिस्सा नहीं मानते. जिसे वो नए किस्म की गुलामी मानते हैं. कुछ नहीं तो कम से कम कुछ घंटे के लिए ही सही, डिलिवर और रिसिवर की संवेदना की जमीन एक होती हुई तो जान पड़ती ही है..
‪#‎mediakhabar16‬

#हैशटैग पत्रकारिता पर बड़ी बहस,जरूर आएं

bannerऑनलाइन मीडिया के आने के बाद पत्रकारिता का स्वरुप बदल गया है.पत्रकारिता का पारम्परिक स्वरुप ढह गया है और उसकी जगह #हैशटैग की पत्रकारिता ने ले ली है. खास बात ये है कि इस पत्रकारिता को सिर्फ पत्रकार नहीं बल्कि आम और खास लोग भी कर रहे हैं. #हैशटैग की पत्रकारिता ही नहीं,बल्कि पॉलिटिक्स भी हो रही है. इसी पर कल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक बड़ी बहस होने वाली है जिसमें दिग्गज पत्रकार शामिल होंगे. यह आयोजन मीडिया खबर डॉट कॉम आधुनिक टेलीविजन पत्रकारिता के जनक एसपी सिंह की स्मृति में कर रहा है.आयोजन का ये आठवाँ वर्ष है. इस बार की बहस में राहुल देव(वरिष्ठ पत्रकार), शैलेश (वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज़ नेशन और न्यूज़ वर्ल्ड के पूर्व एडिटर-इन-चीफ), अनुराग बत्रा (एडिटर-इन-चीफ,बिज़नेस वर्ल्ड), केजी सुरेश,डायरेक्टर,आईआईएमसी), नीरेंद्र नागर(संपादक,नवभारतटाइम्स.कॉम), सतीश के सिंह(ग्रुप एडिटर,लाइव इंडिया), मुकेश कुमार(वरिष्ठ पत्रकार), सईद अंसारी(न्यूज़ एंकर,आजतक),बियांका घोष (चीफ कंटेंट ऑफिसर,एचसीएल टेक्नोलॉजी), दिलीप मंडल(इंडिया टुडे के पूर्व मैनेजिंग एडिटर).

मीडिया खबर के मीडिया कॉनक्लेव और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान के वक्ता :

राहुल देव, वरिष्ठ पत्रकार
राहुल देव, वरिष्ठ पत्रकार
शैलेश
शैलेश,वरिष्ठ पत्रकार
अनुराग बत्रा,एडिटर-इन्-चीफ, बिज़नेस वर्ल्ड
अनुराग बत्रा,एडिटर-इन्-चीफ, बिज़नेस वर्ल्ड
के जी सुरेश
के जी सुरेश,महानिदेशक,आईआईएमसी
नीरेंद्र नागर
नीरेंद्र नागर,संपादक,नवभारत टाइम्स.कॉम
सतीश के सिंह,ग्रुप एडिटर,लाइव इंडिया
सतीश के सिंह,ग्रुप एडिटर,लाइव इंडिया
मुकेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
डॉ.मुकेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
सईद अंसारी
सईद अंसारी,एंकर,आजतक
बियांका घोष
बियांका घोष,चीफ कंटेंट ऑफिसर,एचसीएल टेक्नोलॉजी
दिलीप मंडल
दिलीप मंडल

मीडिया खबर के मीडिया कॉनक्लेव में आप सादर आमंत्रित हैं. आमंत्रण पत्र (हिंदी/अंग्रेजी) नीचे है. क्लिक करके आप डाउनलोड कर सकते हैं.
Invitation-2016invitation-final

अरविंद केजरीवाल ने अर्णब गोस्वामी को कहा मोदी का चमचा

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राजनीति में भाषाई मर्यादा लगभग खत्म हो चुकी है. हरेक पार्टी के नेताओं का यही हाल है. जिसके मुंह में जो आ रहा है,वो वही बोल रहा है. साफ़-सुथरी राजनीति का वायदा कर सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी के नेता तो इस मामले मे अव्वल नंबर पर चल रहे हैं और क्यों न चले जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही इसमें अग्रणी हो. हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके प्रधानमंत्री मोदी के तथाकथित चमचों की लिस्ट जारी की.इसमें मोदी के मंत्री और भाजपा समर्थक सेलिब्रिटीज के नाम के साथ-साथ टाइम्स नाउ के अर्णब गोस्वामी का नाम लिखकर सबको आश्चर्य में डाल दिया.ट्वीट करते हुए केजरीवाल लिखते हैं – “मोदी जी ने चुन-चुन के चमचो की फ़ौज जमा की है- गजेन्द्र चौहान,चेतन चौहान,पहलाज निहलानी,अर्णब गोस्वाई,स्मृति ईरानी.

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