P7 न्यूज़ चैनल के मीडियाकर्मी आमरण अनशन पर बैठे हैं. उन्हें महीनों से उनका हक़,उनकी सैलरी नहीं मिली है. ये वही चैनल है जिसने हिंदी मीडिया में चमक,ग्लैमर और प्रोफेशनलिज्म पैदा करने के लिए दिल्ली के होटल में अपने एंकरर्स को रैंप पर कैट वॉक करवाए..अनाप-शनाप पैकेज पर मीडिया महन्तों को रखा और वो सब माल-मलाई चाटकर कट लिए..जिनका कहीं जोर-जुगाड़ हो सकता था,वो भी निकल लिए..बाकी की हालत सबके सामने है. लेकिन मीडियाकर्मी के धरने पर बैठते ही जो लड़ाई मालिक बनाम मीडियाकर्मी के हक़ की दिखाई देती है उसमे एक पेंच और है..जिसका सीधा सम्बन्ध मीडिया के महन्तों की कारगुजारियों से है.
ये महंत एक तरफ तो मालिक को साख की पत्रकारिता सहित मुनाफे का फार्मूला समझाते हैं,कुछ मालिकों के लिए ये मदर बिज़नेस के लिए मीडिया पर्दे कअ धंधा है तो वो मुनाफा से ज़्यादा चैनल स्टैब्लिश करने पर जोर देते हैं..
दूसरी तरफ ये मीडिया महंत मीडिया के नए और थोड़े पुराने लोगों को सच्ची पत्रकारिता और बेहतर पैकेज के वादे के साथ तोड़कर ले जाते हैं. चूँकि इन महन्तों को चैनल की अंदरुनी हालत का अंदाज़ा होता है इसलिए ताला लगने के पहले ही कट लेते हैं जबकि ये मीडियाकर्मी अटक जाते हैं.
आप इंडस्ट्री में इन महन्तों की एक से एक वीरगाथा सुनेंगे कि किस-किस को ब्रेक दिया,एंकर बनाया लेकिन मीडियाकर्मी की नाज़ुक हालत होने पर कब साथ खड़े हुए के सवाल पर जाएँ तो लगेगा ये मालिक से रत्तीभर भी कम बड़ेवाले….नहीं हैं.
मीडिया संस्थान के मालिकों के खिलाफ जला दो,मिटा दो..ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाकर हम जो अपना हक़ पा लेने की उम्मीद रखते है और कई बार आंशिक रूप से सफल भी होते हैं..दरअसल मीडिया महन्तों के लिए सेफजोन तैयार करते हैं कि आप मलाई चाटकर कटते रहो,हम सारी लड़ाई मालिक से लड़ लेंगे.
सवाल बहुत साफ़ है कि जो मीडिया महंत अपने मीडियाकर्मी के हक़ के लिए खड़ा नहीं हो सकता,आपको लगता है कि वो अपने दर्शकों के लिए खड़ा होगा..इसके लिए तो एक नहीं,कई मालिकों से लड़ना होगा.#मीडियामंडी