फारवर्ड प्रेस के मुख्य संपादक आयवन कोस्का और सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन को नई दिल्ली के पटियाला हाऊस कोर्ट ने गुरुवार को अग्रिम जमानत दे दी। आदालत में संपादकों का पक्ष रखते हुए ख्यात नारीवादी लेखक व अधिवक्ता अरविंद जैन, साइमन बैंजामिन तथा अमरेश आनंद ने कहा कि फारवर्ड प्रेस पर पुलिस की कार्रवाई अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। यहां तक कि संपादकों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (अ) , 295 (अ) आज की तारीख में निरर्थक हो गये हैं तथा इसका उपयोग राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है। जमानत के बाद सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में मौजूद महिषासुर (जिन्हें भैसासुर के नाम से भी जाना जाता है ) की तस्वीरें जारी करते हुए कहा कि फारवर्ड प्रेस में कोई भी सामग्री सामग्री आधारहीन नहीं है। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित भी है। ऐसे सैकडों भौतिक साक्ष्य उपलब्ध हैं, जो यह साबित करते हैं कि ‘दुर्गा-महिषासुर’ का बहुजन पाठ अलग रहा है। उन्होंने कहा कि पत्रिका का इन पाठों को प्रकाशित करने का मकसद अकादमिक रहा है। इसके अलावा इस पाठों के माध्यम से हम चाहते हैं कि विभिन्न समुदाय एक दूसरे की भावनाओं, परंपराओं को समझें तथा एक-दूसरे करीब आएं। फारवर्ड प्रेस का कोई इरादा किसी समुदाय की भावना को आहत करने का नहीं रहा है।
गौरतलब है कि इसके पूर्व उदय प्रकाश, अरुन्धति राय, शमशुल इस्लाम,शरण कुमार लिंबाले, गिरिराज किशोर, आनंद तेल्तुम्बडे, कँवल भारती, मंगलेश डबराल, अनिल चमडिया, अपूर्वानंद, वीरभारत तलवार, राम पुनियानी, एस.आनंद समेत 300 से हिंदी, मराठी व अंग्रेजी लेखकों ने फारवर्ड प्रेस पर कार्रवाई की निंदा की थी।