इंडिया टुडे (हिंदी) में दिलीप मंडल की स्थिति और अधिक मजबूत हो गयी है. उन्हें पदोन्नति देकर मैनेजिंग एडिटर बना दिया गया है. इसके पहले वे बतौर कार्यकारी संपादक काम कर रहे थे. उनके प्रोमोशन से उन गॉसिप पर विराम लग गया है जिसमें कहा जा रहा था कि दिलीप मंडल की इंडिया टुडे में बेहद कमजोर स्थिति हो गयी है और वहां से उनकी विदाई भी हो सकती है. लेकिन इसके उलट उनकी पदोन्नति हो गयी.
इंडिया टुडे ज्वाइन करने से पहले दिलीप मंडल कुछ समय तक मेनस्ट्रीम मीडिया से अलग थे और खुलकर मेनस्ट्रीम मीडिया की खिलाफत कर रहे थे. इसी संदर्भ में उनकी दो किताबें ‘मीडिया का अंडरवर्ल्ड’ और ‘कॉरपोरेट मीडिया-दलाल स्ट्रीट’ नाम से भी आयी. फेसबुक एक्टिविस्ट के नाम से भी वे मशहूर हुए. लेकिन अचानक जब इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक के रूप में मेनस्ट्रीम मीडिया में वापसी हुई तो सोशल मीडिया में जबरदस्त विरोध हुआ. उसी समय से ये कयास लगाया जाने लगा कि वे ज्यादा दिन तक इंडिया टुडे में नहीं टिक पायेंगे. लेकिन इन सब कयासो को धत्ता बताते हुए दिलीप मंडल टिके और अब तो उनकी पदोन्नति भी हो गयी.
इंडिया टुडे ग्रुप से जुड़ने के पहले दिलीप मंडल ईटी हिंदी.कॉम, सीएनबीसी – आवाज़ और स्टार न्यूज़ जैसे बड़े संस्थानों के साथ भी काम कर चुके हैं. इंडिया टुडे के साथ उनकी यह दूसरी पारी है. ईटी हिंदी.कॉम से इस्तीफा देने के बाद वे स्वतंत्र लेखन के अलावा आईआईएमसी में अध्यापन कार्य भी किया. वर्ष 2009 में उन्हें भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्हें यह पुरस्कार ‘कारपोरेट लोकतंत्र और पेड न्यूज़’ किताब के लिए मिली.