@ एम के वेणु
वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के नकारात्मक प्रभाव से भारत अछूता नहीं रह सकता। भारत ने 8.5 फीसदी की ऊंची विकास दर केवल तभी दर्ज की थी, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था 4.5 फीसदी की दर से विकास कर रही थी। मगर अभी वैश्विक अर्थव्यवस्था करीब 2.5 फीसदी की दर से विकास कर रही है, ऐसे में भारत की विकास दर का 5.5 फीसदी से छह फीसदी से ज्यादा होना संभव नहीं है।
इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली को अपने पहले पूर्ण बजट में वैश्विक कारकों को गंभीरता से ध्यान में रखना होगा, क्योंकि महज 20 खरब डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था 770 खरब डॉलर की वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिहाज से बहुत छोटी है। भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के तीन फीसदी से भी कम है। सौ खरब डॉलर की चीन की अर्थव्यवस्था हमारी अर्थव्यवस्था से पांच गुना है। इसलिए यदि विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक, भारत की विकास दर 2016 में चीन की विकास दर से ज्यादा होती है, तो इस पर खुश होने का कोई कारण नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर चीन ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है, जो उच्च विकास दर हासिल करने की तुलना में कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। स्वाभाविक रूप से छोटे आधार वाली अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर ऊंची रहनी चाहिए। एक बार जब अर्थव्यवस्था का आकार सौ खरब डॉलर से बड़ा हो जाता है, तो ऊंची विकास दर को बनाए रखना मुश्किल होता है, जैसा कि चीन के साथ हो रहा है। इसलिए झूठी संतुष्टि के भ्रम में फंसने के बजाय हमें देश के गरीबों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।