दूसरे न्यूज चैनलों में भी आईबीएन7और सीएनएन-आईबीएन जैसे हालात

न्यूज़ चैनलों में सुरक्षित कैसे होगी नौकरी ?
लेखक : अरुणेश कुमार द्विवेदी

चैनल के दफ्तर के सामने प्रदर्शन
चैनल के दफ्तर के सामने प्रदर्शन
टीवी चैनलों में काम करने वाले पत्रकार आज के दौर में संक्रमण काल से गुजर रहे हैं…टीवी टुडे नेटवर्क द्वारा संचालित चैनल आज तक से कुछ महीने पहले ही लगभग 150 से पत्रकार एक झटके में निकाले गए हो गए…और अब नेटवर्क 18 के दो प्रमुख न्यूज चैनलों आईबीएन 7 और सीएनएन –आईबीएन में एक साथ 350 पत्रकारों पर गाज़ गिरी है…इससे पहले भी सीएनईबी और महुआ यूपी जैसे कई चैनल बंद होने से सैकड़ों पत्रकार सड़क पर आ गए….ऐसे में सवाल उठता है कि बड़ा चैनल हो या छोटा चैनल कमोबेश सब जगह एक जैसे हालात क्यों है …इस देश में पत्रकारों की पीड़ा समझने वाला कौन है..?

न्यूज चैनलों में अपना करियर बनाने के लिए सैकड़ों छात्र हर साल किसी न किसी मीडिया संस्थान से ट्रेनिंग लेते हैं…चैनलों में मीडिया शिक्षा को भी फायदे का धंधा बना दिया है…न्यूज 24, एनडीटीवी औऱ आज तक जैसे कई चैनलों के अपने मीडिया इंस्टीट्यूट हैं जहां पर छात्रों से लाखों रूपए वसूल करके उन्हें एंकर और रिपोर्टर बनने के सपने दिखाए जाते हैं..लेकिन हकीकत में जब ये सपने टूटते हैं तो मीडिया में बेरोजगारी की एक नई फौज हर साल तैयार हो जाती है…सिर्फ चैनलों में ही नहीं दूसरे भी कई ऐसे मीडिया एजुकेशन देने वाली दुकानें खुल गई हैं जहां छात्रों को खुले आम बड़े सपने दिखाकर बड़े पैसे लिए जाते हैं जबकि ऐसे इंस्टीट्यूट्स के पास न तो इंफ्रास्ट्रक्चर है औऱ न ही योग्य मीडिया फैकल्टी…ऐसे में सरकार को एक मीडिया प्राधिकरण बनाने की जरूरत है जो क्वालिटी मीडिया एजुकेशन पर नज़र रखे और गली गली खुल गई मीडिया की दुकानों को बंद कराए…..जब कई वर्षों से काम कर रहे सीनियर पत्रकारों की नौकरी चैनलों में सुरक्षित नहीं है तो फिर पत्रकारिता के नए छात्र छात्राओं को चैनलों की चक्की में पिसने से बचाने की पहल होनी चाहिए….

आज के दौर में मोटी पगार पाने वाले और मालिकों की गुलामी करने वाले संपादकों को छोड़कर किसी भी योग्य पत्रकार की नौकरी सुरक्षित क्यों नहीं है…हर पत्रकार भय, भूख और भ्रष्टाचार से जूझ रहा है… ये किस तरह का प्रोफेशनलज्म है जहां न्यूज़ चैनलों में नौकरी सुरक्षित क्यों नहीं है….?

दरअसल आज जरूरत इस बात की है कि पत्रकारों के द्वारा पत्रकारों के लिए आर पार की लड़ाई लड़ी जाय ताकि मीडिया मालिकों के मनमानेपन पर लगाम लगाया जा सके…लेकिन बिना संगठित हुए ये लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी..ये बड़ा सवाल है…क्योंकि मीडिया एक ऐसा दिया है जिसके तले अंधेरा ही अंधेरा है… मारुति के मानेसर प्लांट में मजदूरों के निकाले जाने पर मैनेजमेंट के खिलाफ हंगामा होता है तो चैनलों में खबर बनती है.. जेट एयर वेज या फिर एयर इंडिया में पायलट हड़ताल करते हैं या निकाले जाते हैं तो ये खबर चैनलों में खूब चलती है, लेकिन कोई चैनल बंद होता है या फिर चैनल द्वारा एक साथ सैकड़ों पत्रकारों को निकाला जाता है तो ये खबर किसी चैनल में नहीं चलती है..इसका मतलब साफ है कि प्रताड़ित और पीड़ित पत्रकारों की आवाज उनके अपने ही बिरादरी के लोग नहीं उठाते.

दूसरी ओर जिन पत्रकारों को सामूहिक रूप से बेरोजगार बना दिया जाता है वो संगठित होकर अपने हक़ की लड़ाई नहीं लड़ते..ऐसे में चैनल मालिकों का हौसला बढ़ता है इसलिए वे जब चाहें जिसे चाहें नौकरी से निकाल दें… क्योंकि पिछले 5 साल के न्यूज चैनलों का इतिहास देखें तो साफ होता है कि एक साथ नौकरी से निकाले जाने वाले पत्रकारों की संख्या सैकड़ों में है….सीएनईबी, महुआ यूपी बंद हुए तो सैकड़ों पत्रकार बेरोजगार हुए…..कुछ को दूसरे चैनलों में नौकरी नसीब हुई तो कुछ का मीडिया से मोहभंग हुआ तो दूसरे फील्ड में चले गए.

दरअसल आज की मीडिया में खासतौर पर न्यूज चैनलों के संचालन में ऐसे बिजनेस घराने आ गए हैं जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है, वे तो बस मीडिया के माध्यम से अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं…ये कहना भी पूरी तरह से सही नहीं होगा कि मीडिया घरानों में पत्रकारों की स्थिति बहुत अच्छी है…कुछ समय पहले एनडीटीवी ने अपने मुंबई और दिल्ली ब्यूरो से एक साथ कई लोगों की छंटनी की थी….इसके अलावा हाल ही में टीवी टुडे नेटवर्क (आज तक) से एक साथ लगभग 150 लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया ..अब एनडीटीवी और टीवी टुडे ग्रुप का संबंध तो ग़ैर मीडिया घरानों से नहीं है फिर भी नौकरी सुरक्षित नहीं है….इन बड़े चैनलों को इनकी इच्छानुसार लाभ नहीं मिल पा रहा इसलिए कास्ट कटिंग के नाम पर पत्रकारों की नौकरी ली जा रही है…सूत्रों की मानें तो टीवी टुडे ग्रुप का सालाना लाभांश घट रहा है इसलिए लोगों को निकाला जा रहा है.. यहां ध्यान देने की बात है कि आज तक का संचालन करने वाली कंपनी घाटे में नहीं है फायदे में है, लेकिन कंपनी लाभांश घटने की बात कहकर पत्रकारों को बेरोजगार कर रही है…अब अगर बड़ी बड़ी मीडिया कंपनियां अपने कर्मचारियों के साथ ऐसा करेंगी तो फिर क्या होगा पत्रकारों का और पत्रकारिता का…?

नोएडा के पत्रकारों को पश्चिम बंगाल के शारदा मीडिया समूह के पत्रकारों से सीख लेनी चाहिए.. दरअसल पश्चिम बंगाल और असम में शारदा मीडिया समूह के सेवन सिस्टर्स पोस्ट, बंगाल पोस्ट, सकालबेला, आझाद हिंद, तारा न्यूज, तारा मुझिक और तारा बांग्ला इन समाचारपत्रों में काम करने वाले करीब 1200 पत्रकारों पर बेरोजगारी की गाज गिरी है… कोलकाता के प्रेस क्लब में विभिन्न पत्रकार संगठनों के तत्वावधान में शारदा समूह के बंद हुए चैनलों और अखबारों के तमाम पत्रकार एकजुट होकर अपनी लड़ाई लड़ी और उसमें काफी हद तक सफल हुए… इस बैठक में शारदा मीडिया समूह से अपना बकाया वसूलने के लिए राज्यपाल और मु्ख्यमंत्री से आवेदन करने का फैसला हुआ.

दरअसल मुख्य समस्या बकाया की नहीं है बल्कि वैकल्पिक रोजगार की है..महुआ यूपी, सीएनईबी, एनडीटीवी आज तक और आईबीएन 7 जैसे कई चैनलों से निकाले गए बेरोजगार पत्रकारों को शारदा ग्रुप के पत्रकारों से सीख लेना चाहिए…..इसके लिए बस दूसरों के हक के लिए आवाज उठाने वाले पत्रकार बंधुओं को अब अपने उत्पीड़न के खिलाफ अपने हक़ के लिए संगठित होकर आवाज उठानी होगी.

अब वो समय आ गया है जब पत्रकार संगठनों को एक जुट होना होगा…जिन पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है दूसरे चैनलों में कार्यरत उनके साथी पत्रकारों को भी इस आंदोलन में आगे आना होगा क्योंकि उनको इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि उनके चैनल में नौकरी सुरक्षित है.. आज तक चैनल से पत्रकारों के निकाले जाने के बाद ये साफ हो चुका है कि अब किसी भी चैनल के किसी भी बड़े या छोटे पत्रकार पर गाज़ गिर सकती है…इसलिए सभी पत्रकारों को मिल जुल इस विकट समस्या का समाधान निकालना होगा.

एनबीएसए, एडिटर्स गिल्ड और पत्रकारों के हित में काम करने वाले अन्य संगठनों को आगे आकर सरकार से गुजारिश करनी होगी कि पत्रकारों को भी अन्य पेशेवरों की तरह काम करने की स्वतंत्रता, नौकरी की सुरक्षा और वेज बोर्ड जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए…संगठित पत्रकार बंधु ही मीडिया मालिकों के तेवर और कलेवर को बदल सकते तभी न्यूज चैनलों में नौकरी सुरक्षित हो सकती है…अन्यथा पत्रकारों की पीड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ती रहेगी और मीडिया से उनका मोहभंग हो जाएगा…अगर ऐसा हुआ तो वो दिन दूर नहीं होगा जब मीडिया में सिर्फ निहित स्वार्थी तत्वों का एकछत्र राज्य होगा, योग्य पत्रकार और संपादकों का अभाव होगा और पत्रकारिता की पवित्रता सरेआम बाजर में नीलाम होगी…. इसलिए पत्रकारों…उठो, जागो और अपना हक़ लेकर रहो.

(लेखक अरूणेश कुमार द्विवेदी ईटीवी न्यूज, साधना न्यूज, सीएनईबी न्यूज, ज़ी न्यूज यूपी और आकाशवाणी में काम कर चुके हैं. वर्तमान में वे मंगलायतन विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रवक्ता हैं. इनसे संपर्क के arundubey 101@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.)

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