वेद विलास उनियाल
टीवी चैनलों पर लंबी लंबी बातें , लंबी लंबी बहसे। तर्क कुतर्क । लगता है कि मानों राजनीति इसी टीवी के पर्दे से चल रही हो।
मगर
1- एक भी चैनल नहीं बता पाया कि किरण बेदी भाजपा में शामिल हो सकती हैं।
2- शामिल होने के बाद एक भी चैनल नहीं बता पाया कि वह किस सीट से लड़ सकती हैं।
3- किसी चैनल को दूर दूर तक इसका पता नहीं लगा कि किरण बेदी ही नहीं कृष्णा तीरथ भी भाजपा में आने का मन बना चुकी है।
4- एक भी चैनल यह नहीं बता सका कि लवली गांधी नगर से चुनाव लड़ने से इंकार कर सकते हैं।
5- एक भी चैनल यह नहीं बता सका कि कांग्रेस इस बार चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी माकन को सौंपने वाली है।
6 एक भी चैनल ने तीन दिन पहले नुपुर के बारे में कुछ नहीं कहा। आज नुपुर का इंटरव्यू इस तरह लिए जा रहे हैं मानों नुपुर ने इन्हें एक महीने पहले बता दिया हो कि केजरीवाल के खिलाफ मैं ही लड़ूगी।
फिर ये कैसी पत्रकारिता। केवल बातें । केवल बहस।
अब ये पांचों बात पता चल गई हैं तो फिर देखिए लंबी लंबी बहस।
वास्तव में टीवी पत्रकारिता में अब कुछ नया पता करने की बहस, तर्क बयान यही बातें रह गई हैं। टीवी पत्रकारिता कोई नई जानकारी नहीं दे पाती। उनके चार पांच विशेषज्ञ जो कुछ कहते हैं वो लोग पहले से ही जानते हैं। कुछ ही पत्रकार होते हैं जो काम की बातें कह पाते हैं। टीवी के रिपोर्टर वही बताते हैं जो लोग जानते हैं। उसमें बहुत कम बार कोई नई बात होती है।
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