कुमार कृष्णन
आम जीवन की बेबाकी से जिक्र करना और इसकी विसंगतियों की सारी परतें खोल देना यह विवेक और चिंता की उंचाईयों का परिणाम होता है। आज जो साहित्य रचा जा रहा है,वह लेखन की कई शर्तों को अपने साथ लेकर चल रहा है। एक तरफ जिन्दगी की जहां गुनगुनाहट है,वहीं दूसरी तरफ जवानी को बुढ़ापे में तब्दील होने की जिद्द भी है,इन्हीं सब शर्तों की अनेक रंगों को अपनी ग़ज़लों में पिरोने का साहस डॉ. मालिनी गौतम ने किया है। यूं तो डॉ. मालिनी गौतम साहित्य की अनेक विधाओं में लिखती हैं, लेकिन हाल ही में प्रकाशित उनका ग़ज़ल संग्रह ‘दर्द का कारवॉं’ वीरान जिन्दगी के कब्रिस्तानों पर एक ओर जहां जीवन और मुहब्बत की गीत लिखती है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान जीवन की विसंगतियों से लड़ने की ताकत भी देती है। संग्रह की ग़ज़लों के रंग इन्द्रधनुषी हैं,लेकिन सारी ग़ज़लों का मूल स्वर जीवन है और जीवन में घटनेवाली घटनाओं का चित्रण है। इससे प्रतीत होता है कि डॉ़. मालिनी गौतम ने अपनी ग़ज़लों में जिया ही नहीं है,बल्कि उसे भोगा भी है। इन दो क्रियाओं ‘जीना और भोगना’,ऐसी काई में पगडंडी है, जिस पर फिसलने का डर बना रहता है। डॉ. मालिनी गौतम ने स्वयं को फिसलने नहीं दिया है,जो भी लिखा है मजबूती के साथ और साफ—साफ लिखा है। जैसे
इक पल रोना इक पल गाना अजब तमाशा जीवन का
हर दिन एक नया अफ़साना अजब तमाशा जीवन का
वांसती कुछ सपने हैं इन शर्मीली आंखों में
आशाओं के दीप जले इन चमकीली आंखों में
डॉ मालिनी गौतम अपनी ग़ज़लों के माध्यम से पाठक को नए उत्साह और समय को सकारात्मक ढंग से लेने की सलाह देती है न कि पाठक के कंधों को कमजोर करना चाहती है। उनकी ग़ज़लों का यह सकारात्मक रूख सूरज के साथ चलने की जीजीविषा और चांद की रोशनी को अपनी आंखों में भर लेने छटपटाहट। जैसे—
पड़े पैरों में है छाले मगर मैं फिर भी चलता हूं
कभी सहरा कभी दरिया से अक्सर गुजरता हूं
सच में उत्साह आदमी को किरदार की आईनासाजी का हूनर सिखाता है। यह हूनर डॉ मालिनी गौतम के लेखन का आत्मवल है। संग्रह की ग़ज़लों के पाठ के बाद सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
यह तो सहज ही पता चलता है कि डॉ मालिनी गौतम की ग़ज़ल दुनिया की दुनियां आमजीवन के आसपास घूमती है,लेकिन यह पूरे तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि डॅा मालिनी गौतम जीवन की दुनियां के बाहर नहीं निकलना चाहती हैं, इनका लेखकीय कॉनवास काफी बड़ा है। जीवन के हरेक आहट नए—नए दृश्य का तलाश करती है,जिसमें भोर की पहली किरण के साथ हसीन उजालों की सुगबुगाहट मिलती है। विरह और वियोग का एक छटपटाता हुआ पन्ना भी खुलता है और उस पन्ने पर बड़े ही सलीके से मोहब्बत का नाम लिखा जाता है।
जुल्फों केा रूख से हटाकर चल दिए
चांद धरती पर दिखाकर चल दिए
साहित्य में फटे हुए दूध को मालिनी गौतम रबड़ी नहीं कहती बल्कि साहित्य की तमाम खूबियों और छंदों की रश्मों को निभाती है, जिस कारण इनकी ग़ज़लें पठनीय और असरदार हो जाती है।
पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि ‘दर्द का कारवॉ’ की ग़ज़ले पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होंगी। संग्रह की तमाम ग़ज़लें पठनीय और शिल्प के लिहाज से मुकम्मल है।
समीक्षित कृति—
दर्द का कारवॉ
(ग़ज़ल संग्रह)
डॉ मालिनी गौतम
मूल्य 150 रुपये
पहले पहल प्रकाशन
25—ए,प्रेस काम्पलेक्स,एम.पी नगर
भोपाल (मध्य प्रदेश)