अंजना ओम कश्यप को एहसास ही नहीं कि उनका संवाददाता जान पर खेलकर लाइव कर रहा है !

anjana om kashyap kandhar live
आजतक का कंदहार से लाइव

कंधार से आजतक के संवाददाता सिदीकुल्लाह खान लाइव हैं. उनके चारों तरफ हथियार से लैस लोग नज़र आते हैं जिनके बारे में वो बताते हैं कि ये तालिबानी हैं. वो नोएडा फिल्म सिटी की स्टूडियो में बैठी एंकर अंजना ओम कश्यप से बात करते हुए दो बातें बार-बार दोहराते हैं- यहां लोग बहुत घबराए और डरे हुए हैं और दूसरा कि ये लोग हमें भी कह रहे हैं कि ये वीडियो बनाना बंद करो.

सिदी जब एंकर अंजना ओम कश्यप से बात कर रहे होते हैं तो उनके चेहरे पर भी थकान, उदासी, घबराहट और बेचैनी बहुत साफ झलक रही होती है. हम दर्शक एक नज़र में समझ जाते हैं कि वो कितनी जोख़िम उठाकर वहां से अपना काम कर रहे हैं और ऐसा करने के लिए उन्हें कितनी मशक़्कत करनी पड़ रही होगी. उनकी आवाज़ में उदासी टूटन है जो बिना किसी के पक्ष में बात करते हुए हालात देखकर होती चली गयी है. मुझे नहीं पता कि वो इस कवरेज के पीछे अपनी कितनी रात की नींद और दिन का सुकून दांव पर लगा गए हों. लेकिन स्टूडियो में बैठी एंकर अंजना ओम कश्यप उनसे ऐसे-ऐसे सवाल और इस अंदाज़ में कर रही होती हैं कि जैसे संवाददाता होटल अशोका के सामने किसी मैंगो फेस्टिवल कवर करने के लिए खड़ा हो. उन्हें इस बात का रत्तीभर भी एहसास नहीं है कि जहां वो खड़े होकर लाइव कर रहे हैं, दो मिनट की चूक से उनकी जान पर बन आती है. इस बात की सेंस नहीं है कि चैनल ने इतने पैसे लगाकर अपने संवाददाता को ग्राउंड पर भेजा है तो उनकी बात प्रमुखता से आनी चाहिए. वो आगे पता नहीं कब इस तरह लाइव करने की स्थिति में हो तो पहले उन्हें अपनी तरफ से बोलने का भरपूर मौक़ा दें.

जब मैं इस पूरे मंज़र से गुज़रा तो दो-तीन बातें एकदम स्पष्ट हो गयी- एक तो ये कि एंकर अंजना ओम कश्यप ने अपने संवाददाता से सवाल करने से पहले कोई विशेष तैयारी नहीं की और न ही जोख़िम के साथ रिपोर्टिंग कर रहे अपने इस संवाददाता की स्थिति से वाक़िफ है. लेकिन उससे भी ख़तरनाक और अफ़सोसनाक बात ये कि जब एंकर के भीतर स्टारडम आ जाता है तो कैसे अपने ही सहकर्मी और संस्थान के संसाधनों का बेहतर उपयोग करने की क्षमता खो देते है.

सिदी जिस माहौल में कंधार की सड़कों पर खड़े होकर लगातार बोलते रहे, वो पूरा दृश्य ही अपने आप में बेहद डरावना है. उसी में हथियारों से लैस तालिबानी एकदम से उनके नज़दीक आ जाते और फ्रेम में घुस जाते. सिदी ने तो सहज होने के क्रम में इस दौरान एक के हथियार पर हाथ भी फेरे और कहा भी कि देखिए कैसे चारों तरफ हथियारबंद लोग हैं. अंजना ओम कश्यप ने औपचारिकतावश दो-तीन बार कहा तो ज़रूर कि सिदी आप अपना पूरा ध्यान रखें लेकिन जिस इत्मिनान से और जिस चलताऊ ढंग से अपने संवाददाता से सवाल करती रहीं, हम साफ़ महसूस कर सके कि इतने गंभीर विषय पर इनका कोई अध्ययन और फॉलोअप नहीं है. नहीं तो वो समझ पाती, हम आवाज़ और उनके द्वारा गए पूछे गए सवालों से महसूस कर पाते कि वो कितनी तैयारी से आयी हैं ?

हम ऐसे दौर में कारोबारी मीडिया को लेकर बात कर रहे हैं जहां पेशेवर स्तर की चूक, लापरवाही और बेशर्मी पर टिप्पणी करने की गुंजाईश तेजी से ख़त्म होती जा रही है. फैन्स-फॉलोअर्स के इस दौर में सामग्री( कंटेंट ) बहुत पीछे चला गया है. मुझे नहीं पता कि संस्थान इस सारी बातों का आकलन करते भी हैं या नहीं लेकिन मेरे जैसा टीवी का पुराना दर्शक बहुत साफ़ समझ पाता है कि इससे चैनलों के भीतर की संभावना एकदम से ख़त्म होती चली जा रही है. आजतक की तरह बाकी चैनलों के पास संसाधन नहीं है कि वो अपने संवाददाता को कंधार भेज दे. संस्थान ने तो अपनी तरफ से ऐसा किया लेकिन स्टारडम में फंसी एंकर के भीतर की ये ख़ुशफ़हमी इस तरह से हावी है कि बस उनके होने भर से व्यूअरशिप मिल जाएगी तो ये कवरेज एक उदाहरण साबित होगा कि कैसे दुर्लभ मौक़े और संसाधनों का स्टारडम और सेलेबहुड के फेर में बर्बाद कर दिया जाता है. काश, सिद्दिकी को कोई संजीदा एंकर मिल पाता जो उन्हें इत्मिनान से बोलने देता और इस अंदाज़ में सधे हुए सवाल रखता कि चैनल के संसाधन और संवाददाता के जोख़िम उठाने की कद्र हो पाती. (लेखक के फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल से साभार)

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