भाषा और शब्दों के मामले में मीडिया की कोई सामाजिक जिम्मेदारी है कि नहीं ? यह अल्टीनेटर क्या होता है ?
एक संवाददाता
रुद्रपुर(उत्तराखंड)। वह जमाना शायद लद गया जब बड़े हिंदी अखबार खबर छापते समय शब्दों के चयन पर खास दृष्टि रखते थे। किसी शब्द की वर्तनी गलत न हो, कोई ऐसा शब्द न छप जाए जो शब्दकोश में न हो, की विशेष सावधानी रखी जाती थी। लेकिन आजकल खबर जैसी डेस्क पर आ रही है लगभग वैसी ही छप जा रही है। आजकल शरद जोशी जीवित होते तो न जाने कितना ‘नरभसाते’, वे बिहार जाकर नरभसाए थे, इन अखबारों को पढ़ते तो जाने क्या लिखते। टीबी (क्षयरोग) को टीवी और इसी तरह तमाम शब्द आजकल गलत-सलत छप रहे हैं। उत्तर भारत के प्रमुख हिंदी दैनिक अमर उजाला में लगभग रोजाना ही खबरों में कुछ शब्दों का अटपटापन, अधकचरापन रहता है।
इसके हल्द्वानी से छपने वाले ऊधम सिंह नगर के संस्करण में 24 जनवरी 2015 के अंक में दिनेशपुर से लगी एक खबर में एक शब्द का कई जगह गलत प्रयोग दिमाग को बार-बार झटके दे रहा है। ‘नगर पंचायत से हजारों का माल पार’ शीर्षक खबर की यह लाइन देखिए- गुरुवार रात हाईटेंशन लाइन में फाल्ट आने से क्षेत्रभर में रातभर बिजली आपूर्ति ठप थी। इसका फायदा उठाते हुए चोरों ने नगर पंचायत कार्यालय में धावा बोल दिया। चोर कार्यालय के मुख्य चैनल का ताला तोड़कर भीतर घुसे। उन्होंने भीतर से चार सीलिंग फैन और दो हैवी स्टेबलाइजर के साथ बाहर से जनरेटर की बैटरी, ट्रैक्टर में लगा ‘अल्टीनेटर’ , एक दो हार्सपावर का मोटर उड़ा लिया।
इसमें अल्टीनेटर शब्द समझ नहीं आया। अंग्रेजी शब्द ‘आल्टरनेटर’ को गलत रूप में कई जगर अल्टीनेटर लिखा गया है। यह तमीज अगर खबर भेजने वाले को नहीं थी तो यह डेस्क की जिम्मेदारी बनती है कि वहां इसे ठीक किया जाता। जो लोग शब्द और भाषा को ठीक रूप में नहीं जानना चाहते वह तो इस या इस जैसे अन्य इस्तेमाल किए गये गलत शब्दों को ही रट लेंगे। भाषा और शब्दों के मामले में मीडिया की कोई सामाजिक जिम्मेदारी है कि नहीं ?