देश के दो विख्यात टेलीविजन पत्रकार अजीत अंजुम और रवीश कुमार दोनों टेंशन में हैं. ये टेंशन रोज नहीं तो हफ्ते में पांच दिन तो रहता ही है. टेंशन का कारण पर्सनल नही प्रोफेशनल है. अपने-अपने शो लेकर है. पर्दे पर दोनों को हम बहस के अखाड़े में गर्मागर्म बहस करते और नेताओं से जिरह करते हुए देखते हैं तो लगता है कि कितने विश्वास और सहज तरीके से ये सब कर रहे हैं. लेकिन तमाम तैयारियों के बावजूद ये अपने-अपने शो लेकर बड़े टेंशन में रहते हैं और इस बात का खुलासा दोनों ने खुद ही सोशल मीडिया में किया है. रवीश कुमार लिखते हैं –
रवीश कुमार
दूसरों का पता नहीं लेकिन हर रात शो से घंटा भर पहले से घबराहट होने लगती है । रोज़ लगता है कि आज नहीं हो पाएगा । कोई सवाल ही नहीं है । पूछेंगे क्या । चक्कर आने लगते हैं । उफ्फ ।
रवीश कुमार के एफबी स्टेट्स को शेयर करते हुए इंडिया टीवी के प्रबंध संपादक अजीत अंजुम लिखते हैं –
अजीत अंजुम
पहले तो मैं सोचता था कि मुझे ही शो के पहले इतनी टेंशन होती है . जब मैं न्यूज़ 24 में हर रोज़ डिबेट शो करता था ,तब दो घंटे पहले से टेंशायमान होना शुरू हो जाता था . इतना लोड लेकर स्टूडियो जाता था कि पूछो मत . किसी दिन गेस्ट का टेंशन , किसी दिन सवाल का टेंशन , किसी दिन बेहतर रिसर्च का टेंशन और जिस दिन सब ठीक हो तो शो करने का टेंशन . मैं भी यही सोचता था कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है , जबकि मैंने कई एंकर्स को देखा है कि ओबामा से लेकर ओसामा तक और मार्श मिशन से लेकर बजट तक पर डिबेट शो से ठीक पाँच मिनट पहले पूरे कान्फिडेंस के साथ स्टूडियों में दाख़िल होते हैं और घंटे -दो घंटों का शो करके चौड़े होकर बाहर निकलते हैं . उनको देखकर मैं सोचता हूँ कि भगवान ने इनको जितना कान्फिडेंस दिया है , उसका दस फ़ीसदी भी मुझे क्यों नहीं दिया . मुझे अगर पता हो कि शाम सात बजे कोई शो करना है तो कम से कम चार घंटे पहले से टेंशन होना शुरू हो जाता है . ये काग़ज़ निकालता हूँ, वो साइट खोलता हूँ, रिसर्च वाले का ख़ून पीता हूँ लेकिन जब दूसरे सहयोगी को देखता हूँ कि यार ये कोई लोड ही नहीं लेता तो लगता है कि …..जिस विषय पर शो करता हूँ , उस इश्यू पर मैं किसी चैनल पर कोई डिबेट शो इस डर से नहीं देखता हूँ कि कहीं अगर दो चार सवाल ऐसे मिल गए , जो मुझसे मिस हो गए होंगे तो मेरी नींद हराम हो जाएगी . अपने पर इतना अफ़सोस होगा कि रात ख़राब हो जाएगी .
मैं सप्ताह में पाँच दिन शो करता था तो चार दिन शो के बाद घंटों टेंशन में रहता था कि मैं अपना काम ठीक नहीं कर पाया . ये पूछना चाहिए था , ऐसे पूछना चाहिए था . हाँ, किसी किसी दिन ऐसा ज़रूर होता था , जब सुबह से ही बेचैन होता था कि कैसे शो का टाइम हो और मैं स्टूडियो में दाख़िल होऊँ . अकसर स्टूडियो में दाख़िल होते ही पसीने छूटने लगते हैं . मुहावरे वाला पसीना नहीं ,असली वाला पसीना . सर्दी में भी गर्मी का अहसास . स्टूडियो पर कूलिंग बढ़वाता हूँ और काफ़ी देर बाद जब रौ में आता हूँ तो सामान्य हो पाता हूँ.अब तक मैंने कोई ऐसा इंटरव्यू या शो नहीं किया , जिसके बाद मुझे कुछ सवाल छूट जाने या न पूछ पाने का अफ़सोस न हुआ हो . कभी -कभी तो पूरी रात ही सो नहीं पाया कि यार , मैं ये कैसे मिस कर गया .