स्टूडियो में बैठकर क्रांतिकारिता की बातें करने वाले वामपंथी फिल्मसिटी में तुम दिखे नहीं

संदर्भ : CNN-IBN और IBN7 के दफ्तर के सामने विरोध प्रदर्शन और कई वामपंथी चिंतकों की अनुपस्थिति –पत्र-पत्रिकाओं में #क्रांति का राग अलापने वाले तमाम #वामपंथी चिंतकों को यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि जनता तमाम मोर्चों पर आपकी अनुपस्थिति की अनदेखी नहीं कर रही है। जब #पत्रकारिता के मूल्यों को सम्मान दिलाने की लड़ाई लड़ी जा रही थी तब आप #फ़ेसबुक पर #संगीत, #कविता,#कहानी और #संस्कृति की चर्चा कर रहे थे। आपमें से किसी का पेट खराब हो गया तो किसी का गला बैठ गया। स्टूडियो में बैठकर #क्रांतिकारिता की हवा-हवाई बातें करना दुनिया का सबसे आसान काम है। अगर अंत में सेठ का ही काम करना है तो मन लगाकर उसी काम में जुट जाएँ। #जनता को दोहरी सोच वाले लोगों से ज़्यादा नफ़रत होती है।

• सुयश सुप्रभ के फेसबुक वॉल से साभार. फेसबुक पर कुछ और स्टेट्स

JSF पत्रकार एकजुटता मंच के साथी जब नोएडा में नारे लगा रहे थे तब मॉलनुमा ऑफ़िसों में दबी ज़ुबान से इस आंदोलन के समर्थन में बातें हो रही थीं। हम सभी साथियों को इस बात का एहसास हो रहा था कि जड़ता के कारण पैदा होने वाली चुप्पी के टूटने का असर इस औद्योगिक नगरी में देर तक रहेगा। #पत्रकारिता की गरिमा की रक्षा का मतलब ऐसा माहौल बनाना भी होता है जिसमें कोई जैन या अंबानी खबरों को उत्पाद की तरह बेचने की हिम्मत नहीं कर सके। पत्रकारिता और धंधे में जो अंतर होता है उसे कायम रखे बिना न तो पत्रकारों के अधिकार सुरक्षित हैं न समाज के मूल्य। #समाजको भी पत्रकारिता के #कॉरपोरेट मॉडल का विकल्प खड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप चाहते हैं कि आपके सामने खबर की शक्ल में विज्ञापन नहीं परोसा जाए तो आपको पत्रकारों के आर्थिक शोषण का विरोध करना होगा। व्यापारियों को तमाम सहूलियतें देने के कारण आपकी थाली में ज़हरीली सब्ज़ी ने अपनी जगह बना ली है। कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में विचार में भी इतना ज़हर घुल जाए कि आप अच्छे विचार की केवल कल्पना करते रह जाएँ।

हर #सवर्ण शोषक होता है। हर गोरा आदिवासियों और अश्वे तों का दुश्मन होता है। पूँजी की आग में#जाति जैसी गंदगी जल जाती है। मीडियाकर्मियों की #लड़ाई सवर्णों की लड़ाई है, इसलिए हम उनका साथ नहीं देंगे। सारे मीडियाकर्मी पैसा खाकर खबर बेचते हैं। सूची लंबी है। बहुत-से लोग इन सरलीकरणों से अपना घर चला रहे हैं क्योंकि ऐसी बातें लिखने से वे सत्ताधारियों की आँखों के तारे और नाक के बाल (बचपन में रटा मुहावरा बरसों से किसी काम नहीं आ रहा था) बन जाते हैं। इस सुविधावादी #प्रगतिशीलता के खतरों को समझिए और आज दो बजे या तो नोएडा पहुँचिए या ट्विटर,#फ़ेसबुक आदि वेबसाइटों के माध्यम से मीडियाकर्मियों के #आंदोलन को मज़बूत बनाइए। अगर आप#ट्विटर पर हैं तो हर #ट्वीट में #jsf लगाकर इस आंदोलन से जुड़ी खबरों पर नज़र रख सकते हैं।

पहले तो नोएडा में आज के विरोध-प्रदर्शन से जुड़ी कुछ गलत धारणाओं के बारे में बात करूँगा। आज कड़ी धूप में जो #साथी भव्य #होटल जैसी बिल्डिंग के सामने नारे लगा रहे थे वे केवल 1-2 लाख की#सैलरी पाने वाले मीडियाकर्मियों के लिए वहाँ नहीं जुटे थे। वे तमाम काम छोड़कर वहाँ पहुँचे थे क्योंकि उन्हें उन लोगों की चिंता है जिन्हें दो या तीन हज़ार रुपये का वेतन देकर जानवर की तरह खटाया जाता है। वे उन पत्रकारों के लिए भी वहाँ जुटे थे जो #सरोकारी #पत्रकारिता के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हैं। वे कुछ पत्रकारों को लाख-दो लाख की सैलरी देकर बाकी लोगों को न्यूनतम से भी कम सैलरी देकर #दलाल #संस्कृति को बढ़ावा देने का विरोध करने के लिए भी वहाँ जुटे थे। आज नारों में दम था, आवाज़ बुलंद थी और हौसला आसमान छू रहा था। आने वाले दिन दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण बनने वाले हैं। इस #आंदोलन से #समस्या केवल उन लोगों को होगी जिनकी नाभि सत्ताधारी वर्ग से जुड़ी हुई है।

1 COMMENT

  1. एक का तो गला और पेट दोनों देखा एक राष्ट्रीय चैनल पर सही था भाई..दो घंटे पहले कैसे खराब था ?

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