-आशुतोष, मैनेजिंग एडिटर, IBN7
हमारे एडिटर इन चीफ राजदीप सरदेसाई ने ट्विटर पर ईद मुबारक कहा और उनको गालियां पड़नी शुरू हो गईं। फ्रस्टेट होकर उन्हें ट्विटर पर लिखा, ‘मेरे ईद मुबारक लिखने से कुछ बेवकूफ और कट्टरपंथी लोगों को तकलीफ होती है। इन लोगों को अक्ल आनी चाहिये या फिर ये किसी और देश में जा कर रहें।’ उनका ये ट्वीट पढ़कर तकलीफ हुई। हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ उनके साथ ही होता है। हिंदू-मुस्लिम मसले पर या फिर सेकुलरिज्म के मुद्दे पर आप कुछ भी लिखो आप को फौरन गाली पड़ने लगती है। सिरफिरों की एक जमात मां, बहन की गालियां देने से भी नहीं चूकती और इस्लामपरस्त बताकर खारिज करने का धंधा शुरू हो जाता है। गालियां देने वाले ये लोग अनपढ़ गंवार जाहिल नहीं हैं। सोशल मीडिया पर पढ़े लिखे लोग ही आते हैं। ऐसे लोग जो टेक्नॉलाजी जानते हैं। जिनके पास कंप्यूटर या फिर स्मार्ट मोबाइल रखने लायक पैसे हैं। इनमें से कई की प्रोफाइल मैंने खुद देखी है। कुछ अच्छी कंपनियों में काम करते हैं। अच्छी तनख्वाह पाते होंगे। एक ने जब मुझे गालियां बकीं तो मैंने उनका प्रोफाइल खोला। देखकर दंग रह गया। किसी मल्टी नेशनल कंपनी में काम करते थे।
तब मुझे अपना गांव याद आया। उत्तर प्रदेश का गोंडा जिला। अयोध्या से चालीस किमी दूर। बचपन की यादें तरोताजा हो गईं। हम छोटे-छोटे बच्चे तपती दोपहरी में गांव की धूल में सने, नंगे पांव पूरे गांव का चक्कर काटा करते थे। इनमें से कई मुस्लिम परिवारों के बच्चे भी थे। मेरे गांव की आबादी में हिंदू और मुस्लिम लगभग बराबर हैं। बहुत गरीब गांव था। अब थोड़ा बेहतर हुआ है लेकिन ईद में हम उनके घर जाते और सिवइयां खाते। होली, दीवाली को वो हमारे घर आते और गुझिया-खुर्मे-खाजा खाते। मुहर्रम में ताजिया निकलता और सारे बच्चे गैस की रोशनी में पीछे-पीछे दौड़ते। किसी के घर शादी होती तो हिंदू हो या मुसलमान सबके घर से सामान जाता और हम ऐसे खुशियां मनाते जैसे कि अपने घर में शादी हो रही है। अम्मा तो कई दिन के लिये उस घर की हो जाती। कभी खयाल ही नहीं आया कि फलां मुसलमान है या हिंदू। थोड़ी झिकझिक भी होती थी। कभी प्रधानी के चुनाव के लेकर या फिर किसी आपसी झगड़े को लेकर लेकिन कभी भी सांप्रदायिक तनाव पैदा नहीं हुआ। गांवों की मिट्टी की दीवारों पर कभी कुछ ऐसा लिखा नहीं मिला जैसा ट्विटर पर देखने को मिलता है। यहां तक बाबरी मस्जिद के जमाने में भी मारपीट या तनाव की नौबत नहीं आई। मेरे घर के ठीक सामने ही एक निहायत गरीब जुलाहे का घर था। तन पर कपड़े ना के बराबर लेकिन मेरे घर से उसके रिश्ते में कभी कोई ऊँच नीच नहीं देखने को मिलती। हम कभी शरारत करते तो लोकल जुबान में जुलाहन प्यार से हमें गालियां देती और हम हंस के टाल देते। अम्मा, बाबू, चाचा या दादा ने भी कभी बुरा नहीं माना।
पिता जी शहर में नौकरी करते थे तो हम भी शहर के हो गये। स्कूल जाने लगे। वहां मुहम्मद रजी मिला और क्रिकेट खेलते शाह साजिद से दोस्ती हो गई। इनका घर आना शुरू हुआ। अम्मा कभी-कभी उनके रसोई में जाने पर एतराज करती लेकिन घर आने पर कभी पाबंदी नहीं लगी। आज पचीस साल बाद भी दोस्ती है। साजिद नोयडा में ही है। ईद के दिन घर न जाओ तो नाराज होता है। जेएनयू गये अनवर मिल गया। पढ़ाकू बिहारी। क्रांतिकारी। बहुत कोशिश की मुझे मार्क्सवादी बनाने की लेकिन कामयाब नहीं हुआ। आगे चलकर प्रोफेसर हो गया। चर्चा चलती रहती है। वो मेरे हिंदू होने पर ताना देता है तो मैं उसके मुसलमान होने पर और फिर हम हंसकर दूसरे मसलों पर घंटों गप्प मारते हैं। मेरे घर और उसके घर में कोई फर्क नहीं है। सब साझा है। गुजरात दंगे हों या फिर बाबरी मस्जिद का ढहना या बटला हाउस कांड तीखी बहस होती है। दोनों के अपने अपने विचार हैं। पर दोस्ती आज भी कामयाब है। दोनों के परिवारों ने इसे और मजबूत कर दिया है। अब हमसे ज्यादा पक्के वो दोस्त हैं। ईद के एक रोज पहले उसकी बीवी मेरी बीवी को आधी रात जबरन मेहंदी लगाने के लिए पकड़ कर ले जाती है।
यूनिवर्सिटी में सोचा करता था कि सुकरात सही थे। सुकरात कहते थे कि ‘ज्ञान ही गुण है और बुराई अज्ञानता’। लगता था कि देश में सांप्रदायिकता इसलिए है क्योंकि देश में गरीबी है, पिछड़ापन है। लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। जैसे जैसे साक्षरता बढ़ेगी, समृद्धि आएगी, लोग सांप्रदायिकता के चंगुल से दूर होते जाएंगे। मैं शायद गलत था। मेरे गांव में गरीबी थी। लोग अनपढ़ थे। स्कूल और कॉलेज के जमाने में हिंदुस्तान भी गरीब था, साक्षरता काफी कम थी। आज हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था दुनिया की दूसरी सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था है। साक्षरता बढ़ी है। गरीबी कम हुई है। लेकिन ट्विटर को देखकर लगता है कि मेरे घर के सामने की वो जुलाहन बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वालों से कहीं ज्यादा पढ़ी-लिखी और समझदार है। पड़ोस का केवट भी अमीर नहीं है और न ही पढ़ा-लिखा पर कभी उसने हिंदू मुसलमान के नाम पर किसी को गाली नहीं दी, किसी धर्म को बुरा भला नहीं कहा।
मुझे लगता है मेरे गांववाले ट्विटरबाजों से ज्यादा अच्छी तरह से स्वामी विवेकानंद को समझते हैं। विवेकानंद कहा करते थे-‘मैं पूरी तरह से इस बात का कायल हूं कि बिना व्यावहारिक इस्लाम के वेदांत के संप्रत्य, जो चाहें जितने ही बेहतरीन क्यो न हो, का संपूर्ण मानवजाति के लिये कोई मूल्य नहीं है। हम मानवजाति को वहां ले जाना चाहते हैं जहां न वेद है, न बाइबिल और न कुरान और ऐसा वेद, बाइबिल, कुरान में सौहार्द पैदा करने से ही होगा। मानव जाति को ये सीखाना पड़ेगा कि सभी धर्म ‘एक-धर्म’ यानी ‘एकत्व’ की अलग अलग अभिव्यक्तियां हैं। और हर शख्स अपनी अपनी सुविधा से अपना-अपना रास्ता चुन सकता है।’ हिंदु मुस्लिम एकता के संदर्भ में विवेकानंद कहते हैं- ‘हमारी मातृभूमि के लिए दोनों ही सभ्यताओं- हिंदूवाद और इस्लाम का जंक्शन- वेदांती मस्तिष्क और इस्लामिक शरीर- ही एकमात्र उम्मीद है।’ आज भी हमें उम्मीद अपने उसी गांव से है।
(लेखक के ब्लॉग से साभार)
लेख़क महाशय अच्छा हुवा अपने अपने शेखुलर होने का इधर लम्बा चौड़ा लिखा…वैसे मै भी शेखुलर हु…मेरे भी कुछ दोस्त मुसलमान है और मई भी मुस्लिम लोगो का सम्मान करता हु….लेकिन मै उन् मुसलमान का क्यों सम्मान करू जिनोंहे मेरा राम मंदिर तोड़ दिया…? उनका क्यों करू जो आसाम और अभी अभी जम्मू कश्मीर में मेरे हिन्दू भाई यो गो मौत के घाट उतारनेवाले को…? उनका क्यों करू जो रहते हिन्दुस्तान में और गाते पाकिस्तान के…? और सबसे बुरी चीज वो है वो जो तमाम राजनितिक दल जो हरामी वोट बैंक के लिए उन देश द्रोही मुसलिम लोगो का समर्थन करे…
अच्छा राजनितिक दल छोड़ दो…मीडिया में कुछ आइसे दलाल बैठे हुए है जो साले कभी जम्मू किस्त्वाद जैसे इससे को छुपायेंगे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिसे क्लीन चित दी है उस गोधरा कांड की बिन बजा रहे है…? आइसे फेक जौर्नालिस्ट को लोग क्या कहेंगे गली के सिवाय…?
Sad state of affairs. However, i do not agree with your views fully. The state of harmony you described was about at least 30 years back and may be 40 years back. You guys in media should start imagining what will happen after 40 years. Situation on ground is changing fast. And more than villages it is changing in small towns. The demographics has gone change enormously. and more than that attitudes have changed. And there are large number of symptoms available. We can not discuss many things here in open. Fact of the matter is none of us are speaking the truth we are ignoring the facts under the garb of secularism. Few important facts are 1. We have no other choice but to live together in peace. 2. Democracy is a number game, so any threat that come from this number game will give rise to fear and suspicion. 3. India did not become secular in 1947, it was secular from thousands of years of its civilization (Congress has used this status of India in its advantage all over).
I firmly believe that if after having accepted the partition, we would not have induced paradox of secularism and community based personal law in our system, and corrected few more wrong doings of hundreds of year of Medvival ages, parties like BJP would have had no opportunity to be born.
We are living in very tough times. We need bold leaders in politics and also in society and communities who can speak the truth.
I feel so sorry for this young crop working in MNC or internet users. They act so fast and use internet in a very unethical manner.