आज़म खां चाबुक बयान पर प्रेस काउन्सिल की जांच शुरू

भारत की प्रेस परिषद ने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर द्वारा उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आज़म खां के स्तर पर सरकारी अफसरों द्वारा डंडे की भाषा समझने सम्बंधित बयान की सत्यता के सम्बन्ध में की गयी शिकायत की जांच शुरू कर दी है और इस बारे में सम्बंधित समाचारपत्र के संपादकों से उनका पक्ष जानने के लिए टिप्पणी मांगी है.

आज़म खां द्वारा समाजवादी पार्टी मुख्यालय में 30 जनवरी 2013 को कथित रूप से सरकारी अफसरों द्वारा डंडे की भाषा समझने और उन पर चाबुक चलाये जाने के बयान के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित होने के अगले दिन उन्होंने आधिकारिक बयान दे कर इससे इनकार किया और इसे भ्रामक और उनकी छवि खराब करने की साजिश बताया.

ठाकुर ने मीडिया की विश्वसनीयता के दृष्टिगत मार्कंडेय काटजू, अध्यक्ष, प्रेस परिषद से इस पूरे प्रकरण की अपने स्तर से तत्काल वृहत जांच कराये जाने की मांग की थी कि आज़म खां के बयान सम्बंधित पहली खबरें और बाद में उनके द्वारा दिये गए खंडन में क्या सच्चाई है.

संलग्न- 1. प्रेस काउन्सिल को भेजी शिकायत र
2. प्रेस काउन्सिल का पत्र

Dr Nutan Thakur
# 094155-34525

Copy of letter–

सेवा में,
जस्टिस मार्कंडेय काटजू,
अध्यक्ष,
प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया,
नयी दिल्ली

विषय- विभिन्न समाचार पत्रों में श्री आज़म खां के बयान छापने और उनके द्वारा इस सम्बन्ध में खंडन करने तथा मीडिया को दोही ठहराए जाने के प्रकरण की जांच किये जाने विषयक
महोदय,
कृपया निवेदन है कि मैं इस पत्र के माध्यम से मीडिया से जुड़ा एक अत्यंत गंभीर प्रकरण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ और साथ ही निवेदन करती हूँ कि मामले की आवश्यकता और तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए इस सम्बन्ध में विशेष तत्परता के साथ यथाशीघ्र जांच करते हुए नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करने की कृपा करें.

यह प्रकरण श्री आज़म खां, नगर विकास मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार और वरिष्ठ समाजवादी पार्टी द्वारा समाजवादी पार्टी के पार्टी मुख्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में दिनांक 30/01/2013 को कथित रूप से दिये गए बयान से सम्बंधित है जिसके विषय में दिनांक 31/01/2013 तथा 01/02/2013 को विभिन्न समाचार पत्रों में प्रमुखता से खबरें प्रकाशित हुई हैं.

दिनांक 31/01/2013 के दैनिक हिंदुस्तान- लखनऊ संस्करण के मुख्य पृष्ठ की खबर “डंडे की भाषा समझते हैं अफसर- आज़म” के अनुसार- “कार्यकर्ताओं को संबधित करते हुए वरिष्ठ मंत्री आज़म खां भी अफसरों पर खूब बरसे. उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता इस मुगालते में न रहें कि अफसर उनके रिश्तेदार हैं. वे किसी के नहीं होते. सिर्फ डंडे की भाषा समझते हैं और डंडा जनता के पास है”, जबकि दैनिक जागरण- लखनऊ संस्करण के “डंडे की भाषा समझते हैं अधिकारी- आज़म” के अनुसार- “मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जहाँ आईएएस वीक के मौके पर क्रिकेट मैच खेल कर नौकरशाही से सौहार्द्रपूर्ण रिश्तों का परिचय देते हैं वहीँ उनकी ही सरकार के वरिष्ठ मंत्री आज़म खां मानते हैं कि अधिकारी सिर्फ डंडे की भाषा समझते हैं. मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में बुधवार को आज़म ने कार्यकर्ताओं के बीच अपनी यह राय जाहिर भी की.” इसी समाचारपत्र में उनका कथन छपा-“फसर ना आपके रिश्तेदार हैं और ना मेरे. आप हठ में चाबुक रखिये वह सब सुनेंगे. इलाहाबाद कुम्भ में मैं चाबुक से ही काम ले रहा हूँ, सब ठीक से हो रहा है.” अमर उजाला, लखनऊ संस्करण में “नाकारा अफसरों के खिलाफ मुलायम-आज़म के तेवर तल्ख़, डंडे के आदी हो गए हैं सूबे के अफसर” के अनुसार-“अफसरों के कामकाज से नाराज सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के सामने नगर विकास मंत्री आज़म खां बेहद तल्ख़ हो गए. उन्होंने कहा कि प्रदेश के अफसर डंडे के आदी हो चुके हैं.” इसी समाचारपत्र में छपा है-“कुम्भ में देखिये डंडे का असर -आज़म ने कहा कि कुम्भ की व्यवस्था के लिए सरकार ने उन्हें जिम्मेदारी सौंपी थी. देखिये सब ठीक से चल रहा है. यह उस डंडे का असर है जो कार्यकर्ताओं ने उन्हें सौंपा है. इससे पहले भी मुलायम सिंह सरकार में मुझे अर्धकुम्भ के दौरान यह जिम्मेदारी दी गयी थी. वह भी उसी डंडे ने अधिकारियों को अच्छी व्यवस्थाओं के लिए मजबूर कर दिया था.”
हिंदुस्तान टाइम्स के “Do a sting on officials: Khan to partymen” के अनुसार-“The officers understand the language of the stick and the whip.” जबकि द इंडियन एक्सप्रेस के “As Azam urges Mulayam to crack the whip on bureaucrats, later says transfers soon” के अनुसार-“Parliamentary Affairs Minister Azam Khan on Wednesday criticized the bureaucracy and asked Samajwadi Party President Mulayam Singh Yadav to shed his magnanimity and wield the whip. Khan said that the whip was necessary because the officials are only concerned about their posting and transfer. “At Kumbh the work is being done with the whip” said Khan.”

लेकिन इन खबरों के प्रकाशित होने के अगले ही दिन श्री आज़म खां का बयान विभिन्न समाचारपत्रों में आया. इनमे दिनांक 01/02/2013 के हिंदुस्तान में “मैंने ऐसा नहीं कहा- आज़म” के अनुसार-“प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आज़म खां ने दावा किया है कि उन्होंने अफसरों के लिए यह कहा ही नहीं कि वे डंडे की भाषा समझते हैं. गुरुवार को जारी बयान में उन्होंने कहा कि अख़बारों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हुए छपी खबरों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है. बयान में उन्होंने दावा किया है कि उस मौके पर मीडिया आमंत्रित नहीं थी और उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही थी. खबरें भ्रामक हैं. बकौल श्री खां, ऐसी भ्रामक खबरों से उनकी और प्रदेश सरकार की छवि खराब करने की साजिश रची जा रही है.” जबकि दैनिक जागरण के “यह हाल भी तो बना रखा है अफसरों ने!” के अनुसार-“रात होते-होते बदल गए आज़म के बोल- बुधवार को अपनी तल्ख़ टिप्पणी से ब्यूरोक्रेसी में हंगामा खड़ा करने वाले आज़म खां के बोल गुरुवार रात होते-होते बदल गए. गुरुवार रात उनकी ओर से एक बयान जारी हुआ जिसमे उन्होंने कहा कि अधिकारियों को ले कर उन्होंने कोई अशोभनीय टिप्पणी नहीं की है, बयान के अनुसार- मीडिया ने जिस कार्यक्रम के हवाले से यह खबर प्रकाशित की है उसमे मीडिया को आमंत्रित तक नहीं किया गया था. ऐसी स्थिति में इस प्रकार का भ्रामक खबर उनकी और उनकी सरकार की छवि को खराब करने की साजिश है.” इसी प्रकार से अमर उजाला के “अफसरों पर क्यों खफा” के अनुसार-“ नगर विकास मंत्री आज़म खां बैकफुट पर- अफसरों पर डंडा और चाबुक की बात करने वाले नगर विकास मंत्री मो० आज़म खां २४ घंटे के भीतर ही बैकफुट पर चले गए. उन्होंने सफाई दी है कि उन्होंने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया. आज़म ने सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड दिया. उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि जो खबरें प्रकाशित हुई हैं उनसे उनका कोई लेना-देना नहीं है. माना जा रहा है कि अफसरों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया के मद्देनज़र आज़म ने अपना बयान वापस लिया है.”

मैं इन सभी समाचारपत्रों में छपी इन खबरों की प्रति इस पत्र के साथ संलग्न कर प्रेषित कर रही हूँ.

उपरोक्त तथ्यों के अवलोकन से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश शासन के एक जिम्मेदार और वरिष्ठ मंत्री ने अपना आधिकारिक बयान दिया है कि उन्होंने अफसरों के लिए यह कहा ही नहीं कि वे डंडे की भाषा समझते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अख़बारों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हुए छपी खबरों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है और ये खबरें भ्रामक हैं. उनके द्वारा यहाँ तक कहा गया है कि ऐसी भ्रामक खबरों से उनकी और प्रदेश सरकार की छवि खराब करने की साजिश रची जा रही है. अमर उजाला के अनुसार “आज़म ने सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड दिया.”

आप सह्मत होंगे कि विभिन्न समाचारपत्रों में इस तरह की खबरें छपने और इसके बाद एक वरिष्ठ और जिम्मेदार मंत्री द्वारा इन खबरों को गलत ठहराना तथा यह कहना कि इन खबरों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है और ये खबरें भ्रामक हैं जिनसे उनकी और प्रदेश सरकार की छवि खराब करने की साजिश रची जा रही है, अपने आप में बहुत गंभीर बात है. स्पष्ट है कि या कि इन सभी समाचारपत्र में गलत खबरें छपी थीं या फिर श्री आज़म खां ने बाद में गलत बयान दिया.

यदि श्री आज़म खां का बाद का बयान सही है तो यह निश्चित रूप से पूरी मीडिया और विशेषकर ऊपर अंकित समाचारपत्रों के लिए बहुत ही गंभीर मामला है और इससे मीडिया की विश्वसनीयता तो निश्चित रूप से धक्का लगेगा. यदि मीडिया में पहले प्रकाशित खबरें सही हैं तो स्वतः ही श्री आज़म खां के उस खंडन का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा और यह उनकी एक व्यर्थ कोशिश मानी जायेगी जैसा प्रायः कई राजनेताओं द्वारा अपनी कही गयी बात का बाद में खंडन करने की चर्चाएँ होती रहती हैं.

उपरोक्त तथ्यों के दृष्टिगत मैं डॉ नूतन ठाकुर, कन्वेनर, नेशनल आरटीआई फोरम, लखनऊ यह शिकायती पत्र प्रेषित करते हुए आपसे निम्न निवेदन करती हूँ-

कृपया इस पूरे प्रकरण की अपने स्तर से तत्काल वृहत जांच करने की कृपा करें कि श्री आज़म खां द्वारा समाजवादी पार्टी के पार्टी मुख्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में दिनांक 30/01/2013 को कथित रूप से दिये गए बयान जिसके सम्बन्ध में दिनांक 31/01/2013 के दैनिक हिंदुस्तान- लखनऊ संस्करण में “डंडे की भाषा समझते हैं अफसर- आज़म”, दैनिक जागरण- लखनऊ संस्करण में “डंडे की भाषा समझते हैं अधिकारी- आज़म”, अमर उजाला, लखनऊ संस्करण में “नाकारा अफसरों के खिलाफ मुलायम-आज़म के तेवर तल्ख़, डंडे के आदी हो गए हैं सूबे के अफसर”, हिंदुस्तान टाइम्स के “Do a sting on officials: Khan to partymen”, द इंडियन एक्सप्रेस के “As Azam urges Mulayam to crack the whip on bureaucrats, later says transfers soon” तथा इसी प्रकार संभवतः कई अन्य समाचारपत्रों में प्रकाशित खबर जिसमे श्री आज़म खां द्वारा दिये कथित विवादास्पद बयान प्रमुखता से छपे हैं, सही हैं अथवा नहीं.

स्पष्ट है कि इस जांच से यह बात साफ़ हो जायेगी कि अगले ही दिन श्री आज़म खां द्वारा अपने बयान के माध्यम से इन खबरों को गलत बताने, ये खबरें भ्रामक होने और ऐसी भ्रामक खबरों से उनकी और प्रदेश सरकार की छवि खराब करने की साजिश की बात कितनी सही अथवा गलत है.

मैं पुनः निवेदन करुँगी कि ये गंभीर प्रकरण हैं और इनमे आपके व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने और तत्काल जांच किये जाने की जरूरत है क्योंकि श्री आज़म खां के आधिकारिक बयान द्वारा मीडिया की छपी खबरों को भ्रामक, द्वेषपूर्ण और साजिशन बताए जाने से पूरी मीडिया की स्थिति असहज हुई है और इस मामले में मीडिया की गरिमा और विश्वसनीयता अक्षुण्ण रखे जाने हेतु सत्यता सबों के सामने लाया जाना नितांत आवश्यक हो गया है .

पत्र संख्या- NRF/AK/Press/01 भवदीय,
दिनांक-01/02/2013
(डॉ नूतन ठाकुर )
कन्वेनर,
नेशनल आरटीआई फोरम,
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ
# 94155-34525
nutanthakurlko@gmail.com

सेवा में,
श्री के एन पोखरियाल,
अनुभाग अधिकारी (शि०),
प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया,
नयी दिल्ली
विषय- विभिन्न समाचार पत्रों में श्री आज़म खां के बयान छापने और उनके द्वारा इस सम्बन्ध में खंडन करने तथा मीडिया को दोही ठहराए जाने के प्रकरण की जांच किये जाने विषयक
महोदय,
कृपया मेरे पत्र संख्या- NRF/AK/Press/01 दिनांक-01/02/2013 के सम्बन्ध में आप द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 10/04/2013 (छायाप्रति संलग्न) का सन्दर्भ ग्रहण करें जिसमे आपने मुझे प्रेस परिषद (जांच प्रक्रिया) विनियम 1979 के विनियम 3 के अंतर्गत कतिपय सूचनाएँ दिये जाने के आदेश दिये हैं.
विनियम 3(1) के अंतर्गत सूचनाएँ निम्नवत हैं-
(क) समाचारपत्रों के पूरे नाम और पता-
(i) दैनिक हिंदुस्तान- श्री नवीन जोशी, संपादक, दैनिक हिन्दुस्तान, विभूति खंड, गोमती नगर, लखनऊ- 226010
(ii) दैनिक जागरण- श्री दिलीप अवस्थी, संपादक, 57ए-3, मीराबाई मार्ग, लखनऊ
(iii) अमर उजाला- डॉ इंदु शेखर पंचोली, संपादक, निकट गन्ना संस्थान, लखनऊ
(iv) हिंदुस्तान टाइम्स- सुश्री सुनीता ऐरन, संपादक, दैनिक हिन्दुस्तान, विभूति खंड, गोमती नगर, लखनऊ- 226010
(v) द इंडियन एक्सप्रेस- श्री वीरेंदर कुमार, संपादक, द इंडियन एक्सप्रेस, निकट मिठाई वाला चौराहा, बिवेक खंड, लखनऊ
कृपया यह भी ज्ञातव्य हो कि मैंने दिनांक 31/01/2013 तथा 01/02/2013 की मात्र इन पांच समाचारपत्र की प्रतियाँ भेजी थीं लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार इन दोनों तिथियों में लखनऊ और पूरे उत्तर प्रदेश में लगभग इसी प्रकार की खबरें कई अन्य अखबारों में भी प्रकाशित हुई थीं.
नोट- प्रकाशित लेखों की प्रतियाँ पूर्व में प्रेषित की गयी थीं जिनकी स्वतः-प्रमाणित प्रतिलिपि पुनः प्रेषित है. ये सभी लेख क्षेत्रीय भाषा में नहीं अपितु हिंदी अथवा अंग्रेजी भाषा में हैं.

(ख) समाचार के प्रकाशन का आपत्तिजनक होना-
जैसा मैंने अपनी मूल शिकायत में कहा था इन सभी मामलों में हुआ यह था कि इनमे श्री आज़म खां, नगर विकास मंत्री, उ०प्र०सरकार द्वारा समाजवादी पार्टी मुख्यालय में दिनांक 30/01/2013 को कथित रूप से दिये गए बयान, जो दिनांक 31/01/2013 तथा 01/02/2013 को विभिन्न समाचार पत्रों में प्रमुखता से खबरें प्रकाशित हुई हैं, में जहाँ दिनांक 31/01/2013 के दैनिक हिंदुस्तान में “डंडे की भाषा समझते हैं अफसर- आज़म”, दैनिक जागरण में “डंडे की भाषा समझते हैं अधिकारी- आज़म”, अमर उजाला, में “नाकारा अफसरों के खिलाफ मुलायम-आज़म के तेवर तल्ख़”, हिंदुस्तान टाइम्स में “Do a sting on officials: Khan to partymen”, द इंडियन एक्सप्रेस में “As Azam urges Mulayam to crack the whip on bureaucrats” जैसी खबरें प्रकशित हुई थीं लेकिन इन खबरों के प्रकाशित होने के अगले ही दिन श्री आज़म खां का बयान विभिन्न समाचारपत्रों में आया जिसमे कहा गया कि उन्होंने अफसरों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं कहा और अख़बारों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हुए छपी खबरों से उनका कोई लेना-देना नहीं है. ऐसी भ्रामक खबरों से उनकी और प्रदेश सरकार की छवि खराब करने की साजिश रची जा रही है.
स्पष्ट है कि यह स्थिति अत्यंत आपत्तिजनक और चिंतनीय है कि क्योंकि इस मामले से मीडिया/प्रेस की गरिमा और विश्वसनीयता पर सीधे प्रश्नचिन्ह लगते हैं कि क्या उनके द्वारा दिनांक 31/01/2013 को प्रकाशित बयान सही हैं अथवा दिनांक 01/02/2013 को श्री खान द्वारा कही गयी बात, क्योंकि साफ़ है कि ये दोनों बातें एक साथ सही नहीं हो सकती हैं और श्री आज़म खान के बयान में मीडिया पर गहरा आरोप भी है.

(ग) मैंने विभिन्न समाचारपत्रों को एक-एक कर अलग से शिकायत नहीं भेजी थी क्योंकि इनकी संख्या बहुत थी और सभी प्रकरणों में एक सी समस्या और शिकायत थी जो काफी गंभीर थी और जिनमे स्वयं प्रेस परिषद के संज्ञान लिए जाने की आवश्यकता प्रतीत होती थी, जहाँ मुझे लगा कि भारतीय प्रेस परिषद के स्तर पर एक साथ प्रकरण की सम्पूर्णता में इसकी जांच कर तथ्यों को सामने लाना ज्यादा उचित और उपयोगी होगा क्योंकि यह पूरे प्रेस की विश्वसनीयता से जुड़ा मामला था.
मैं आपेक्षित प्रकाशन से इस देश और प्रदेश के एक जागरूक नागरिक तथा पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व के क्षेत्र में कार्यरत एक सक्रीय कार्यकर्ता के रूप में व्यक्तिगत रूप से प्रभावित हूँ. इसके साथ एक पत्रकार होने के नाते भी मैं इस पूरे सन्दर्भ से व्यक्तिगत रूप से व्यथित और प्रभावित हूँ.

(घ) शिकायत किसी वृत्तिक अवचार से सम्बंधित नहीं है.

M) शिकायत प्रेषित करने में कोई विलम्ब नहीं की गयी थी. समाचार दिनांक 31/01/2013 और 01/02/2013 के थे और तत्काल दिनांक 01/02/2013 को ही शिकायत प्रेषित कर दी गयी थी.

कृपया निवेदन है कि मेरी जानकारी के अनुसार ये सभी समाचारपत्र आरएनआई द्वारा पंजीकृत लब्धप्रतिष्ठ समाचारपत्र हैं.
(i) दैनिक हिंदुस्तान- 64319/1996
(ii) दैनिक जागरण- 35496/1979
(iii) अमर उजाला- UPHIN/2008/25926
(iv) हिंदुस्तान टाइम्स- 66165/1997
(v) द इंडियन एक्सप्रेस- UPENG/2001/5674

पत्र संख्या- NRF/AK/Press/01 भवदीय,
दिनांक-25/04/2013
(डॉ नूतन ठाकुर )
कन्वेनर,
नेशनल आरटीआई फोरम,
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ
# 94155-34525
nutanthakurlko@gmail.com

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