ओम थानवी,संपादक,जनसत्ता
जश्ने-रेख़ता की ‘दास्तानगोई’ में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया बगैर लाल बत्ती, बिना लवाजमे के आए, लाइन में लगे, जहाँ जगह मिली जम गए, पूरा कार्यक्रम देखा और लौट गए। मैंने इस तेवर को तारीफ से निहारा। मैं अब भी मानता हूँ कि ये अच्छे लोग हैं। इसीलिए अपूर्व समर्थन लोगों से मिला है। भूलें इनसे भी हुई होंगी और दूसरे नेताओं से भी। पर आपसी मनमुटाव कुछ ज्यादा हो गया। गर्ग तो वैसे भी तिरस्कृत थे, जो दिलजले निकले। ऐसे लोगों को रास्ता दिखाना ठीक है। अपने ही नेतृत्व का कोई स्टिंग करे ताकि वक्त-जरुरत काम आए तो वह ब्लैकमेल लिए नहीं तो किसलिए होगा। लेकिन इसके बावजूद उनकी रेकार्डिंग सही है तो केजरीवाल को अपनी भूल दो शब्दों में स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे ही योगेंद्र-प्रशांत के साथ हुआ बरताव भी अवांछित था। स्नेह की एक प्याली चाय उसे गलाने के लिए काफी होगी। केजरीवाल तसवीरों में स्वस्थ नजर आए हैं। सरकार में उनके सामने ढेर चुनौतियों की बहार है। ऐसे में पार्टी की मुसीबतें अभी पसारने का समय उन्हें कहाँ मिलेगा? … यह एक पत्रकार की टीका नहीं, खैरख्वाह नागरिक की टीस है।
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