-हरेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार-
मुझे मौलवी से नहीं कठमुल्लों और इन जैसे बुद्धिजीवियों से घृणा है जिनके कारण आज तक इस समाज में पढ़ाई-लिखाई, नौकरी कोई मुद्दा न बन सका।
नोटबंदी का विरोध नहीं कर रहे आप और आप जैसे लोग, क्या आपने या किसी भी दल ने इसके विरोध में कोई रैली निकाली। अगर, आम जनता को कोई दिक्कत होती तो अब तक वो सड़कों पर आ जाती। नेताओं और आप जैसे लोगों ने कम कोशिश नहीं की।
इस देश में ऐसे लोगों कई कोई कमी नहीं जो आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के समय सैनिकों के आगे दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं और इस कारण सैन्य कार्रवाई प्रभावित होने के साथ ही सैनिकों की जान भी जाती है। आप एजुकेशन, पिछड़ेपन को मुद्दा बनाएं। मैं सबसे आगे मिलूंगा। यह हम सबकी लड़ाई है। अच्छी रोजगारपरक एजुकेशन मिलने से तीन-चौथाई समस्याओं का हल हो जाएगा।
आप बगैर किसी को जाने कुछ भी बोल देते हो। आजतक आप में से कोई भी यह बताएगा कि आपको भड़काने वाले किसी भी धार्मिक या राजनीतिक नेताओं के बच्चे किसी भी मदरसा में क्यों नहीं पढ़ते। मदरसों में धार्मिक शिक्षा दो, लेकिन साइंस और आधुनिक शिक्षा से आने वाली पीढ़ी को आप वंचित क्यों रखना चाहते हो। जरूरत आप सबको अपनी मानसिक चिकित्सा की है, दूसरों की चिंता छोड़ दो। मियां जी दुबले क्यों, शहर के अंदेशे से।
आज नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए हैं। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी पांच साल तक रहे थे। इन सबको छोड़कर आज तक केंद्र में तुष्टिकरण और कठमुल्लों के इशारों पर नाचने वाली सरकार सत्ता में रही है। इन सबके बावजूद आजतक कितनों को केंद्र और राज्यों में नौकरियां मिली। एजुकेशन का स्तर सुधरा क्यों नहीं।
मुस्लिम इलाकों में स्कूलों, सड़कों, नालियों, अस्पतालों कई दशा किसी से छुपी नहीं है।एकाध अपवादों को छोड़कर जो लोग आगे बढ़े हैं उनकी शिक्षा या तो सामान्य स्कूलों में हुई है या कॉन्वेंट स्कूलों में। इस बीच मुस्लिमों के धार्मिक नेताओं और मौलवियों की वैध-अवैध संपत्तियों में हजारों गुना बढ़ोत्तरी हुई है। इनके बच्चे सभी आधुनिक सुविधाओं का लाभ उठा रहे और विदेशों में शिक्षा पा रहे और आपकी निगाह में यह सब कभी मुद्दा नहीं बनने वाला, क्योंकि आप जैसे लोगों की राजनीति और पूछ तभी तक है जबतक समाज अशिक्षित है। एकबार मौका निकाल कर इन बातों पर गहराई से सोचने की जरूरत है भाई।
(लेखक के एफबी वॉल से साभार)