विनीत कुमार
> इंडिया न्यूज की तत्परता आसाराम की गिरफ्तारी को लेकर इस कदर बनी हुई है कि सुबह के आठ ही बजे उसे सलाखों में दिखा दिया. जो वॉल उसने तैयार की, उसे देखते हुए किसी को भी लगेगा कि वो जोधपुर पहुंचने के पहले ही, बिना किसी कार्रवाई और सुनवाई के सीधे जेल चला गया..मीडिया ट्रायल मामले में तो ये आजतक का भी बाप निकला.
>आसाराम ने जेल के लिए बैकुंठ शब्द का प्रयोग किया. उसके बाद से इंडिया न्यूज ने जेल के लिए जेल शब्द का प्रयोग करना छोड़ सीधे बैकुंठ लिखना शुरु किया. सड़ी-गली स्थिति में मौजूद जेल के लिए बैकुंठ शब्द इस्तेमाल कर आसाराम ने जो इज्जत बख्शी है, उनके भक्तगण इससे भले ही अभिभूत हों लेकिन चैनल के अंदर का पाखंड़ लाख कोशिशों के बावजूद भी उजागर हो जा रहा है. चैनलों का ऐसे पाखंड और अंधविश्वास दिखाए जाने के पीछे का तर्क होता है कि लोग देखना चाहते हैं जबकि सच्चाई है कि चैनल और मीडिया का मानसिक गठन भी इसी अंधविश्वास और पाखंड के बीच पनपता आया है. नहीं तो जेल के लिए बैकुंठ शब्द इस्तेमाल करने के पीछे उसे इस बात पर गौर नहीं करना चाहिए कि इसका क्या अर्थ हैं ? मुझे तो आशंका हो रही है कि कहीं आसाराम के भक्तगण आसामराम के लिए बैकुंठ जाने का कुछ और ही अर्थ न लगा लें. अब ये तर्क मत देने लग जाइएगा कि चैनल ने ऐसा आसाराम पर व्यंग्य के लिए लिखा है..मीडिया और चैनल व्यंग्य को लेकर कितने सीरियल हैं, वो हमें भी लॉफ्टर शो की घंटों फुटेज काटकर दिखाए जाने के बीच समझ आता है.
विनीत कुमार की कुछ और टिप्पणियाँ :
> उम्मीद ही नहीं, पूरा यकीन है कि देश की एक बड़ी आबादी का मुख्याधारा मीडिया,समाचार चैनलों के प्रति एक बार फिर से वही श्रद्धा और चौथा खंभा होने का भ्रम पैदा हो गया होगा जैसा कि निर्मल बाबा के दौरान हुआ था..लेकिन इस श्रद्धा सीजन-2 में मौका मिले तो ये आइबीएन 7 और न्यूज 24 जैसे चैनलों से ये सवाल जरुर पूछिएगा कि जब तुम आसाराम की खबर से भी धारदार निर्मल बाबा के पर्दाफाश होने की खबर दिखा रहे थे तो अभी भी आधे घंटे का निर्मल समागम किस सरोकार के तहत चला रहे हो ?
> आसाराम के कई पर्यायवाची बना दिए जाने के बीच जो भी धुंआधार कवरेज देख रहा हूं, मुझे उसकी पैटर्न साल 2005 में प्रिंस नाम के बच्चे के गड्ढे में गिरने की कवरेज लगातार याद आ रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि वो बच्चा लोगों की करतूत और लापरवाही से गड्ढे में गिरा था जबकि यहां लाखों लोग इस आसाराम के करतूत के कारण गड्ढे में गिरते आए हैं. कवेरज की फार्मेट लगभग बराबर है और अगर टाइम्स नाउ और इंडिया टीवी की फार्मेट देखें तो आतंकवादी घटना की कवरेज से मेल खाती हुई.
> आसाराम की हालत की चर्चा जिस तरह टीवी चैनल कर रहे हैं, आपको बार-बार लगेगा कि इससे तो लाख गुणा अच्छा अपना बच्चा प्रिंस था, चालीस घंटे से उपर गड्ढे में भूखे-प्यासे पड़ा रहा लेकिन थोड़े दिनों बाद टनमनाकर रियलिटी शो में हाजिर हो गया, बिस्कुट बेचने लग गया. इसका मतलब यही है कि ये सब सत्संग, संयम, आत्मज्ञान और अकेले में घंटों ध्यान लगाने की बात बंडलबाजी है. भक्तगणों, जब तुम्हारे आराध्य के 4-5 घंटे में ही इस आत्मज्ञान से बाजा बज गया, तब तुम्हारी क्या दशा होगी ? सो प्लीज लीव दस आत्मज्ञान एन ऑल दीज बुल्लशिट एंड सांसारिकता, प्रतिरोध,संघर्ष की दुनिया में लौटो.
> आपको लग रहा होगा कि न्यूज चैनल आसाराम की धुंआधार कवरेज से अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ लड़ रहे हैं, नहीं जी..वो उस रिवन्यू सिस्टम से हार रहे हैं जहां दो दिनों तक इस कवरेज के जरिए आसाराम जैसे शख्स को पाखंडी,धोखेबाज,उसकी हरकतों को ड्रामा और गुंडई बताने के कुछ ही दिनों बाद अपने यहां ऐसी जगह तैयार करेंगे हैं, जहां आधे-एक घंटे सिर्फ वो, उनके ड्रामे और प्रवचन होंगे. बीच में कोई लक्स कोजी से निकलनेवाले चूजे और 140 रुपये की गैस नहीं डियो उड़ानेवाले लौंड़े के पीछे आधे दर्जन लड़कियां होगी बल्कि शांतचित्र सिर्फ बाबा और उनके अमृतवचन होंगे. इसे विज्ञापन कहा जाएगा जी और आप तो जानते ही हैं टीवी में विज्ञापन का मतलब होता है महामृत्युंजय जाप जिसके बीच में किसी तरह की खलल नहीं डाली जाती, ऐसा विधान है. हैं जी, आप पूछते हैं तब चौथे खंभे का क्या होगा ? लो कल्ल लो बात. इसमे पूछना क्या है ? आइबीएन 7 की बुलेटिन ढोल-नगाड़े की ट्यून की तरह वैसे ही शुरु होगी जैसे कि मंडी हाउस से कोई भारी रैली निकल रही है और उस पर निर्मल दरबार लगेगा और पीछे से तीन-साढ़े तीन सौ लोगों की विदाई होगी..अजी, गांवघर में इसे कहते हैं- जात भी गंवाना और भात भी न खाना..सब साथे-साथ चलेगा जी..छंटनी भी और कमाई भी. पाखंड भी और पाखंड उन्मूलन कार्यक्रम भी..है न ओरोजिनल तमाशा..बीच-बीच में भूख लगने पर पेटिस( नॉट पेचिश)- बर्गर और कोक-शोक भी चलेंगे..तो डन न जी.
(विनीत कुमार के एफबी से साभार)
मान्यवर, पिछले दिनों आसाराम की प्रवक्ता नीलम दुबे द्वारा दीपक चौरसिया को दलाल और ना जाने क्या क्या कहा ! क्या उसकी इन दलीलों का कोई प्रमाण था ? क्या किसी चैनल के खुले मंच पर इतनी उद्दंडता दिखाना किसी अध्यात्म गुरु के प्रवक्ता के लिए उचित था ? उसने वहां पर बैठे अन्य वक्ताओं के साथ जिस तरीके से उद्दंडता पूर्वक व्यवहार किया उससे साफ जाहिर होता है की उसके गुरु किस विचारधारा के हैं ! अब यदि इण्डिया न्यूज़ वालों ने समय पूर्व ही सलाखों के पीछे दिखा दिया तो कौन सा गलती किया ? जबकि उस बाबा का नियति ही यही है ! जब भी कोई किसी को बेवजह बिना किसी प्रमाण के जलील करे तो कोई भी अपनी प्रतिक्रिया तो अवश्य व्यक्त करेगा ! इसलिए इंडिया न्यूज़ ने जो दिखाया वह बिलकुल सही दिखाया !
Jis prakar sachchai Ko pesh na kar tod marodkar public ko GUMRAH,galat chij parosne wali ye dalad nahi hai to aur kya hai…jo sant sanyam ko samaj me promote kar na jane kitne ke jivan ko swasth,sukhi ,sammniya jivan jine ki prerna di..patan se utthan ki or jivan mod di ..AISE MAHAN SANT PAR ITNA GHATHIYA AAROP..JO SIDH HI NAHI HUA AUR DALAL MEDIA NE TO MANO APMAN KARNE KI KASAM HI KHALI HAI..Jinhone VALENTINE DAY KE JAGAH PAR MATRA PITRA DIVAS MANANE KA PRERNA DIYA PURE BHARAT VARSH KO..ISKE bad aap samajhdar hai…YE FALTU CHIJE DIKANA BAND KAR SACHCHAI DIKHAYE..VISWANIYTA BANI RAHEGI…