आज की रात आईबीएन 7 में जो कत्ले गारत हुए, उनके नाम……..मेरे पुराने दोस्त, मेरे कुछ अहबाब…मेरे कुछ साथी….और एक आदर्श जो अब कालखंड में विलीन हो चुका है….सभी के नाम….इतना तो बनता ही है, भाई…इतना तो बनता ही है…..
(एक अनाम पत्र, एक अनाम व्यक्ति के नाम। हालांकि काल्पनिक कुछ भी नहीं है..)
सर, बहुत बुरा हुआ। आप केंद्रबिंदु में हैं, इसलिए लिख रहा हूं। बहुत बुरा हुआ। आप बाजारवाद के कट्टर समर्थक हैं। वामपंथ में यकीन था आपका। उसे बाजार ने ध्वस्त कर दिया। कब का ध्वस्त कर दिया। आप ये बात खुलकर मानते हैं। आपकी ये बौद्धिक ईमानदारी अच्छी लगती रही है मुझे। पर बाजार के भी कुछ उसूल होते हैं, सर। बाजार बहुत बड़ा समाजवादी होता है। अमेरिका के लेहमेन ब्रदर्स से लेकर इलाहाबाद के कटरा चौराहे की चाय की दुकान में काम कर रहे नन्हू हलवाई तक सभी को एक ही तरीके से ध्वस्त करता है बाजार।
एक ऐसे व्यक्ति के घर से लौटा हूं आज, जिसके साथ सालों से दिन भर घूमता टहलता रहता था। आज भी वो बहुत खुश था। नौकरी गंवाने के बावजूद। हंस रहा था। कह रहा था कि ये सब तो जीवन में होता रहता है, भाई। साई बाबा सब ठीक कर देंगे। कुछ लोगों को उसका हंसना बहुत अखर भी रहा था। मुझे भी बड़ा अजीब लगा था। उसके साथ ही उसके घर गया। घर तक छोड़कर आया। लौटते वक्त अचानक उसकी आंखों से आंख मिल गई। दिन भर हंसते हुए उस चेहरे की आंखों में अजीब सा खौफ झांक रहा था। शाम की चादर जितनी गाढ़ी होती है, उतनी ही पारदर्शी भी होती है। वही आंखे जो दिन भर नाच रही थीं, अब जमने लगी थीं। शायद अब तक भविष्य की ठंडक बर्फ की शक्ल में उनमें जमा होने लगी थी। वो आपके इसी बाजार के हाथों कत्ल हुआ, सर। पर बाजार के भी कुछ उसूल होते हैं, सर। फिर कह रहा हूं बाजार बहुत समाजवादी होता है। वह लागत के सिद्धांत पर काम करता है और लागत कम करने की शुरूआत नीचे से नहीं होती है सर। ये तो बाजार की अवमानना है। ये तो उसकी अवहेलना है और सच तो यह है सर, कि बाजार अपनी अवमानना के मामले में सर्वोच्च न्यायालय से भी ज्यादा संवेदनशील होता है। कुछ ही वक्त के भीतर प्रतिकार करता है और वाकई में लागत कम कर देता है। बाजार ऐसा ही होता है, सर।
सर, एक बात और बताऊं, बाजार बहुत उदार भी होता है। इतना उदार कि कभी कभी ये अपने खिलाफ खड़ा हो जाने वाले को ही महान बना देता है। अन्ना हजारे तो आदर्श हैं न। उनसे पूछिए। अन्ना को बाजार ने सिर्फ इसलिए महान बना दिया क्योंकि वे एक समय विशेष में उसके खिलाफ खड़े हो गए। अगर बाजार को मानते हैं तो उसकी आवाज को भी सुनिए। बाजार ने एक मौका दिया था, अपने खिलाफ खड़े हो जाने का। महान हो जाने का। मौका छूट गया सर। वक्त किसी का नहीं होता सर। लेनिन के आदर्शवाद की स्टालिन ने कब हवा निकाल दी, पता ही नही चला, और ट्राटस्की को किसने मार दिया, इतिहास की किताबों में दर्ज है, सर। अंतराष्ट्रीय मामलों में क्या बहस करूं। बेहतर जानते हैं। आखिर बार लिख रहा हूं, बाजार बहुत समाजवादी होता है….छोड़ता किसी को नहीं है…हम जो ऐसे खतरे बार-बार उठा चुके हैं,…इस बाजार को बहुत अच्छे से जानते हैं, सर…..इतना अच्छे कि अब तो डर भी नहीं लगता है……
(अभिषेक उपाध्याय के फेसबुक वॉल से साभार)