एनडीटीवी इंडिया के प्राइम टाइम और फिर न्यूज़ पॉइंट में दिवगंत हवलदार सुभाष सिंह तोमर की मौत से संबंधित नए तथ्य सामने आये. पत्रकारिता के विद्यार्थी योगेन्द्र जो पूरी घटना का चश्मदीद भी है उसने यह खुलासा किया कि सुभाष सिंह तोमर खुद ही दौड़ते हुए गिर पड़े थे और उस वक्त उनके शरीर पर किसी बाहरी चोट के निशान नहीं थे. इससे दिल्ली पुलिस के अबतक के दावों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है.
वाकई में योगेन्द्र ने काबिलेतारीफ काम किया. मीडिया खबर डॉट पर इस सम्बन्ध में पहले ही हम पोस्ट प्रकाशित कर चुके हैं. अब जनसत्ता के संपादक ओम थानवी ने भी तारीफ़ की है. थानवी जी अपने एफबी वॉल पर लिखते हैं :
एनडीटीवी की इस चर्चा ने दिवंगत वीर सिपाही सुभाष तोमर के हादसे को निष्पक्षता से देखे जाने के कई तकाजे पेश किए हैं। योगेन्द्र और घायल महिला आन्दोलनकारी की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने आन्दोलन की उत्तेजना के बीच संयम बनाए रखा और सुभाष तोमर की जान बचाने की कोशिश की।
योगेन्द्र श्री तोमर को अस्पताल ले जा रही गाड़ी के पीछे लटक कर साथ गए और पुलिस को तब से अब तक सहयोग का प्रस्ताव कर रहे हैं। दो सुलभ चश्मदीदों के बावजूद उनसे मालूमात किए बगैर हत्या का मुकदमा दर्ज करने और सार्वजनिक बयान देने में हुई जल्दबाजी आप जाहिर है।
अगर जांच सही दिशा में आगे नहीं बढ़ती तो इससे लोकतंत्र में विरोध के जज्बे को ठेस पहुंचेगी और दिल्ली पुलिस की छवि को और नुकसान होगा। किसी को है परवाह?
एक और प्रतिक्रिया :
डॉ. सरोज गुप्ता – आन्दोलन की गर्दन मरोड़ने की स्क्रिप्ट बंद कमरे में लिखी जा रही थी ,उन्हें तनिक भी भान नहीं था की ग्राउंड जीरो पर ठिठुरती सर्दी में एक आंदोलनकारी तोते की गर्दन में उनकी जान अटकी हुयी है ,यह तोता इनका पढ़ाया हुआ नहीं है ,यह तो अभी अधपक्का निश्छल रिपोर्टर है …………..