वेद उनियाल –
दिल्ली चुनाव में उत्तराखंडियों के नाम पर वोट मांगना एक गलत परंपरा है। चुनाव को चुनाव की तरह लेना चाहिए। उत्तराखंडियों का भला करना था समाज को दूसरेे ढंग से जाागरूक होना चाहिए था। केवल चुनाव में दो चार सीटों को लेना, फिर उसे समाज के आत्मगौरव से जोडना बिल्कुल गलत है। ये जान लीजिए दो तीन क्या, पच्चीस कौंंसिलर भी बन जाए उत्तराखंड समाज का तब भी कोई हित नही होना है। क्योंकि दिल्ली की उत्तराखंडियों की अपना ढर्रा ही गलत हैै। इस सच्चाई को समझना होगा।
पिछले साल दिल्ली में रामलीला मैदान में एकजुट एकमुठ के नाम पर रैली हुई थी। लाखों के चंदे की रसीद कटी थी। लोग भावकुता से आए भी थे। मगर कहां हैं नेता, मंच के बडे नाम। कहा है एकजुट एकमुठ। बस तीन दिन की बीन , शहनाई। दरअसल हम सोच के स्तर पर और उद्देश्य के स्तर पर ही गलत थे। भटकाना स्वभाविक था।
कोई भी तो नजर नहीं आता। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में गिडगिडाते हुए उत्तराखंड के लोग चार पांच टिकट पाए हैं। और तो और जिन मनीष सिसोदियाजी को शाल दुलाशा पहनाकर भाषण भी करवाया गया था उनकी पार्टी ने भी एक आध टिकट अहसान के साथ दिया ।
दरअसल दिल्ली का उत्तराखंड का समाज भटका हुआ, उलझा हुआ है। यहां नेता ज्यादा कार्यकर्ता कम है। पच्चीस नेताओ में तीन कार्य़कर्ता है। यहां तक कि उत्तराखंडी रामलीलाओं का भी दोहन लाइजनिंग की जाती है। एक चौपाई सुनाई जाती है और उसके बाद पौन घटे तक तीस लोगों को माला पहनाने पहने भाषणवाजी का काम होता है। लोगों के समय और रुचि की परवाह नहीं की जाती है। इसलिए ही उत्तराखंडी रामलीलाएं एक एक करके बंद होती चली गई।