दुर्गेश उपाध्याय
जेडीयू नेता शरद यादव महिलाओं पर अपनी बेतुकी टिप्पणी को लेकर एक बार फिर से विवाद में घिरे हुए हैं. हाल ही में जब राज्यसभा में एक चर्चा के दौरान सांवली महिलाओं को लेकर बेतुका बयान दे रहे थे तब सदन में बैठी मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने उनसे ऐसा नहीं करने की अपील की. स्मृति ईरानी के बीच में टोंकने पर वो भड़क गए और बोले कि मुझे पता है कि आप क्या हैं. जाहिर सी बात है कि शरद यादव जैसे अति वरिष्ठ सांसद द्वारा ऐसी बेतुकी टिप्पड़ी से सदन में स्मृति ईरानी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी और सदन में एक असहज माहौल बना. ये वाकया उस समय हुआ जब राज्य सभा में बीमा बिल पर चर्चा चल रही थी. शरद जी जब बोलने के लिए उठे तो उन्होंने अचानक ही बीच में बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश 26 से 49 परसेंट करने के प्रस्ताव को गोरी चमड़ी को लेकर भारतीयों की सनक से जोड़ दिया. उन्होंने कहा कि भारतीय गोरी चमड़ी के आगे किस तरह सरेंडर करते हैं, यह निर्भया डॉक्युमेंट्री बनाने वाली बीबीसी की प्रोड्यूसर लेस्ली उडविन से पता चलता है. भारत में व्हाइट चमड़ी वालों को तो देखकर आदमी दंग रह जाता है. मेट्रोमोनियल देखो तो उसमें लिखा होता है कि गोरी चमड़ी चाहिए. अरे आपका भगवान सांवला था.
शरद जी एक बेबाक नेता हैं और अपनी बात बेधड़क तरीके से रखते हैं. लेकिन मसला है कि आप अपनी बेबाकी के चक्कर में महिलाओं की इज्जत करना ही भूल जाएं तो भारी गड़बड़ हो जाएगी.
इसके पहले अपनी चर्चा में उन्होंने दक्षिण भारतीय महिलाओं पर अभद्र टिप्पड़ी कर डाली. ये बात सच है कि वो अपनी बात को चुटीले अंदाज में कह रहे थे लेकिन उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए था कि वो सदन के पटल पर बोल रहे हैं जहां पूरा देश उन्हें देख और सुन रहा है. उनके लिए महिलाएं मजाक का विषय हो सकती हैं लेकिन देश की आधी आबादी की बेइज्जती शायद देश बर्दाश्त न कर सके. हांलाकि 18 मार्च को शून्य काल में अरुण जेटली द्वारा इस मामले पर स्थिति स्पष्ट करने को कहे जाने पर उन्होंने यू टर्न लेते हुए माफी भी मांगी और बोले, ‘मुझे बड़ा अफसोस है, मैं खुद गोंडवाना का रहने वाला हूं. जहां मातृ संस्कृति है. मैं दो मंत्रियों निर्मला सीतारमण और स्मृति जी का बड़ा सम्मान करता हूं. इससे पहले उनके इस विवादित बयान पर डैमेज कंट्रोल करने के लिहाज से उनकी पार्टी के प्रवक्ता केसी त्यागी अफसोस जता चुके थे और अपनी स्टाइल में ये कह कह उनका बचाव किया कि उनकी मंशा महिलाओं की बेइज्जती करना नहीं था.
शरद यादव ने ऐसा पहली बार किया है ऐसा बिल्कुल नहीं है. इससे पहले भी वे औरतों पर विवादास्पद बयानबाजी कर चुके हैं. आपको याद होगा कि कैसे उन्होंने महिला आरक्षण के मुद्दे के विरोध में कहा था कि ये बिल केवल ‘ पर कटी औरतों ‘ के लिए है.
लेकिन यहां कहना चाहूंगा कि शरद यादव ही अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जो महिलाओं को लेकर अभद्र टिप्पड़ी करते रहे हैं बल्कि इस लिस्ट में और भी कई बड़े नेता गणों के नाम हैं. जरा ग़ौर फरमाइये. कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के उस बयान पर जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘अरविन्द केजरीवाल राखी सावंत जैसे लगते हैं, दोनों ‘ट्राई और एक्सपोज’ करते हैं ‘ . इसी कड़ी में दूसरे कांग्रेसी नेता श्रीप्रकाश जायसवाल का बयान भी आपको चौंकाएगा जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘नई शादी का मजा ही कुछ और होता है. ये तो सब जानते हैं कि पुरानी बीवी में वो मजा नहीं रहता’ .
जब कि कांग्रेस के सांसद रहे संजय निरुपम ने भी वर्तमान मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को लेकर एक दफ़ा कहा था कि ‘ चार दिन हुए राजनीति में आये हुए और आप राजनीतिक विश्लेषक बन गयीं. आप तो टी.वी. पर ठुमके लगाती थी, अब चुनावी विश्लेषक बन गयीं ‘ जाहिर सी बात है कि उनका ये बयान उनकी कड़वाहट और महिलाओं के प्रति नजरिए को साफ दर्शाता है.
महिलाओं को लेकर सपा मुखिया मुलायम सिंह ने भी समय समय पर बेतुके बयान जारी किये हैं, मसलन उन्होंने कहा था कि ‘ रेप में फांसी की सजा सही नहीं है, लड़के हैं गलती हो जाती है’ वैसे उनके समधी लालू प्रसाद यादव का भी महिलाओं को लेकर नजरिया बेहद ओछा रहा है अगर आपको याद हो कि उन्होंने ही बयान दिया था कि ‘ बिहार की सड़कों को इस तरह बना दूंगा, जैसे हेमामालिनी के गाल हैं’
इन सब महानुभावों की समय समय पर महिलाओं को लेकर की गई अभद्र टिप्पड़ियों से आप आसानी से समझ सकते हैं कि जिस देश के अग्रणी नेताओं के ही विचार महिलाओं को लेकर इस कदर ओछे होंगे और नजरिया दोयम दर्जे का होगा वहां महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर कैसे लगाम लगाई जा सकेगी. उन्हें न्याय और बराबरी का दर्जा कैसे हासिल होगा. जो लोग लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में बैठकर महिलाओं की इस प्रकार बेईज्जती आए दिन करते रहते हैं क्या देश की आधी आबादी को उनसे किसी भलाई की उम्मीद करनी चाहिए. क्या उसे इन महानुभावों से सवाल नहीं पूछना चाहिए कि आखिर वो ऐसा क्यों करते हैं. क्यों उनका नजरिया इतना तंग है और क्या इसे बदलने की जरुरत नहीं है.
जाहिर है आधी आबादी ही क्या पूरा देश ये चाहेगा की हमारे नेतागण अपनी वाणी और नजरिये में महिलाओं के प्रति थोड़ी सी तो इज्जत पैदा करें. बराबरी में खड़ा करने की बात तो बाद में आएगी.
( लेखक पूर्व बीबीसी पत्रकार और स्तंभकार हैं )