संजय तिवारी
भारत में सबसे हिंसक और बर्बर राजनीतिक दल है तो उसका नाम है कांग्रेस। जिन्होंने नब्बे का दशक नहीं देखा है वो अंदाज ही नहीं लगा सकते कि सत्ताधारी होने पर कांग्रेस कितनी हिंसक और बर्बर हो जाती है।
पलक झपकते कांग्रेस बीजेपी सरकारों के खिलाफ धारा 356 का इस्तेमाल करती थी। बीजेपी को रोकने के लिए कोई ऐसा कुकर्म नहीं था जिसे कांग्रेस ने न किया हो।
लेकिन बीजेपी को कुएं में धकेलने के चक्कर में कांग्रेस स्वयं खाई में गिर गई। और ऐसी गिरी कि छोटे छोटे क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू पार्टी होकर रह गयी है।
महाराष्ट्र में अर्णव गोस्वामी के साथ जो हो रहा है वह कांग्रेस की हिंसक और बर्बर सोच का ही उदाहरण है।
जाहिर है इसके बचाव में कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट हमेशा की तरह मैदान में उतरेंगे ही क्योंकि कांग्रेस के भीतर की हिंसा, असहिष्णुता और बर्बरता इन्हीं की तो देन है।
शिवसेना और एनसीपी भी कांग्रेस इकोसिस्टम के हिस्से हैं। इसलिए लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही हत्या में ये भी कांग्रेस का ही साथ देंगे।
लेकिन इस देश का लोकमानस बहुत प्रबल है। कुछ प्रतिशत इस्लामिस्टों और कम्युनिस्ट कांग्रेसियों को छोड़ दें बाकी भारत अभी भी गलत को गलत और सही को सही के रूप में ही देखता है।
वह लोकमानस कभी किसी के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं करता। इससे मतलब नहीं कि अन्याय करनेवाला कौन है और सहनेवाला कौन।
लोकमानस सदैव सहनेवाले के साथ सहानुभूति रखता है। बीजेपी के साथ रखा। अब अर्णव के साथ रखेगा।
बाकी कांग्रेस और शवसेना अपनी वैचारिक चिताओं के लिए लकड़ियां इकट्ठी कर रहे हैं, इससे अधिक उनके इस दमन, बर्बरता और पाशविकता का कोई महत्व नहीं है।
(पत्रकार संजय तिवारी के एफबी वॉल से साभार)