IIMC में हुए यज्ञ की तस्वीरें देखी. सहमति-असहमति से हटकर यहां सिर्फ और सिर्फ यज्ञ किए जाने के पारंपरिक तर्क पर टिककर भी इस तस्वीर से गुजरें तो मन उदास हो जाता है और उतना ही चिंतित भी.
बहुत ही छोटे स्तर पर किए गए इस यज्ञ में( खबर चाहे भले ही राष्ट्रीय बन गयी हो) भी चारों तरफ पॉलिथीन,डिस्पोजल ,प्लास्टिकऔर तो और मोबाईल पडे हैं. कहीं कोई द्र्व्य नही .स्वाभाविक है कि बाकी चीजें पॉलीथीन में ही आएंगी लेकिन क्या इन्हें केले के पत्ते, पत्तियों के दोने बनाकर नहीं रखे जा सकते थे ? परिसर में इन सबकी कमी तो नहीं होगी ? और जिस सज्जन ने सामने टिकाकर मोबाईल रख दिया, वो थोडी देर के लिए व्हॉट्स अप मैसेज न देख पाने के लोभ का संवरण नहीं कर सकते थे.
यज्ञ एक श्रमसाध्य अनुष्ठान है. इसकी तैयारी में कई-कई दिन लग जाते हैं. याद कीजिए राम की शक्ति पूजा और वो पंक्ति- माता कहती थी मुझे राजीवनयन. एक सौ आठवें कमल की चोरी हो जाने पर राम ने अपनी एक आंख अर्पित करने का मन बना लिया. ये थी यज्ञ के प्रति आस्था.
लेकिन तस्वीरें कोताही की कहानी साफ शब्दों में बयान कर रही हैं. मीडिया संस्थान में कपडे को रिप्लेस करके अखबार बिछाए जाने से आपकी धार्मिक और पत्रकारीय भावना तो आहत होगी ही.
यज्ञ के प्रति आस्था- अनास्था के सवाल में न भी जाएं तो पर्यावरण के प्रति सचेत रहना तो केन्द्रीय चिंता होनी ही चाहिए. जिस अंदाज में हंगामा हुआ( आयोजक और इनसे असहमति दर्ज करनेवाले दोनों ओर से ) लगा कि संस्थान परिसर में यज्ञ के बहाने हिन्दू संस्कृति की भव्यता को इस अंदाज में पेश किया जाएगा कि घोर नास्तिक भी रंगों की विविधता और प्रकृति के प्रति लगाव को देखकर थोडे वक्त के लिए ही सही, भावुक हो उठेगा. लेकिन
लोहे के बने छोटे से पोर्टेबल कुंड से उठते धुएं को देखकर मैं बुरी तरह आहत हो गया. अपनी विराट संस्कृति का ये लघु रुप देखकर कोई भी उदास हो जाएगा. गांव-घर में सत्यनारायण स्वामी की कथा मे भी जो कि परिवार के स्तर पर की जाती है, कई गुना ज्यादा तैयारी, प्रकृति और सांस्कृतिक रंगों के प्रति सजगता रहती है. इसमें कहीं से अतीत की ओर लौटने के चिन्ह नजर नहीं आते. हां महानगर के दवाबों के बीच खानापूर्ति का सेट पैटर्न की मौजूदगी जरुर है.
ऐसे में जितने लोग आईआईएमसी जैसी जगह में यज्ञ कराने से जितने लोग आहत हुए, उससे कहीं ज्यादा यज्ञ की तस्वीरें देखकर दुखी होंगे. टीवी दर्शक के दिमाग में यज्ञ की जो छवि बनी है वो बुरी तरह ध्वस्त होगी.
होना तो ये चाहिए था कि यज्ञ के नाम पर जितना हंगामा हुआ, कम से कम उनकी तस्वीरों से गुजरते हुए लोग कह पाते- व्हाय प्रोग्रेसिव माइन्ड्स वर सो स्कर्ड ऑफ, इट्स सो कलरफुल एंड एंगेजिंग न !
निरी बकवास कर रहे हैं विनीत। कभी स्वयं हवन किया है क्या? मैं नियमित रूप से करता हूँ। कहीं पर भी केले के पत्त्ते का प्रयोग नहीं देखा। जहां हवन करने पर संकट हो, वहां हम जमीन खोद कर हवनकुंड बनाएं तो क्या होगा, इसका अंदाजा भी है विनीत कुमार को। मुंह में जो आये, बोल देने वाले को बकवादी कहते हैं। बकवादियों को स्थान दे कर अपने वेब पोर्टल का स्तर गिराया है।