वेद उनियाल
उत्तराखंड का भला कैसे होगा। 700 से ज्यादा अखबार निकल रहे हैं। दो हजार से ज्यादा पत्रकार केवल देहरादून में घूम रहे हैं। कौन है कहां के हैं क्या करते हैं किसी को नहीं पता। बस सचिवालय मंत्रालयों में घूमते हैं। इनके अखबार पत्रिकांएं भी नजर नहीं आते।
और मजे की बात ये है कि इनमें कई मान्यता प्राप्त पत्रकार बने हुए हैं। हर तरह शासकीय सुविधा उठा रहे हैं। पत्रकारिता की आड में ये उत्तराखंड को दिवालियां बना रहे हैं। पूरे उत्तराखंड में ऐसे पत्रकार घूम रहे हैं। लेकिन देहरादून में तो इन फर्जी पत्रकारों की भरमार है। जरा मंत्रालय सचिवालय के आसपास चले जाइए। आपको ये मिलेगें। हो सकता है कि इस नाम से – बहती रहे गंगा, करवट बदलता समाज, कहिए जनाब, चिंगारी जो भड़की, मधुर हिमालय, हम से है जमाना। या कुछ ऐसे ही नामों से। इनमें एक पत्रकार तो मछली बेचता है। पत्रकारिता से उसका कोई लेना देना नहीं।
सूचना विभाग इस तरफ ध्यान नहीं देता है। बहुत अनाप शनाप ढंग से पत्रकारिता की सेवा कर रहे हैं। इनमें ज्यादा लोग पत्रकार के वेश में दलाल है। सूचना विभाग का दायित्व होना चाहिए कि इसकी पड़ताल करे। ये पत्रकार लाइजनिंग तो करते ही है, इन्हें अपने अखबार पत्रिका ( जो शायद बीस पच्चीस की संख्या में छपती है सूची बनाने के लिए) सरकार से अच्छा खासा पैसा लेते हैं। कहीं इनहें पढा नहीं जाता, कहीं इन्हें देखा नहीं जाता।
स्रोत-एफबी