एस एन विनोद का खेल और जिया न्यूज़ का सच

एस एन विनोद का खेल और जिया न्यूज़ का सच
एस एन विनोद का खेल और जिया न्यूज़ का सच

अज्ञात कुमार,पूर्व पत्रकार,जिया न्यूज़

एस एन विनोद का खेल और जिया न्यूज़ का सच
एस एन विनोद का खेल और जिया न्यूज़ का सच

आखिरकार चैनल की दुनिया में फैली बेरोज़गारी और कर्मचारियों की मजबूरी का फायदा उठाकर जिया न्यूज़ के मालिक रोहन जगदाले.. और उसे दत्तक पुत्र मानने वाले एस एन विनोद की जीत हो ही गई। कर्मचारियों को मेनेजमेंट की फेंकी रोटी उठानी पड़ी और मन मसोस कर सेलेटमेंट करना पड़ा. हर कर्मचारी को तीन माह के बदले एक महीने का कंपसनसेशन देकर टरका दिया गया..जिसमें दो चेक 4 और 20 दिसंबर के थमाए गये.पहले ही दो महीने से सेलेरी की बांट जोह रहे बेचारे मीडिया मजदूरों का न तो न्यायोचित सेलटमेंट हुआ.और ना ही एक मुश्त में पैसा उन्हे मिल पाया. साथ ही ये शर्त रखी गई कि चेक भी इस्तीफा देने पर ही मिलेगें.इसके अलावा कानूनी दांवपेंचो का हवाला देते हुए कंपनी ने 8 पिछले महीने के भीतर जुड़े कर्मचारियों को सिर्फ 10 दिनों का कंपनसेशन दिया .कुल मिलाकर बेबस और लाचार कर्मचारियों को न माया मिली न राम..

लेकिन कर्मचारियों के पेट पर लात मारने में वरिष्ठ पत्रकार एस एन विनोद का रोल सबसे अहम साबित हुआ..जगदाले एँड कंपनी की अगुवाई करते हुए श्रीमान विनोद ने वाकपटुता का वो मुज़ायरा पेश किया..कि वहां मौजूद कर्मचारी अवाक रह गये.”मैं खुद फ्लाईट से रोहन को समझाने गया.मैंने उसे पैसे देने के लिये कहा..वो तो चैनल बंद करने के मूड में था.मेरे आदमी हर चैनल में है.पता कर लो”.. इन तमाम तर्को से एस एन विनोद कर्मचारियों को उनकी तुच्छता और अपनी महानता का एहसास कराते रहे.अपनी आत्ममुग्धता के आलम में श्री विनोद.. न्यूज़ एक्सप्रेस की उस लिस्ट का भी ज़िक्र करने से नहीं चूके.जिसमे शशांक भापकर नामक चिटफंडिये ने उन्हे 150 कर्मचारियों की छंटनी करने का ज़िम्मा सौंपा है.साफ है नया साल आते आते एस एन विनोद की महिमा से कई सौ पत्रकार सड़कों की खाक छानते दिखेंगे.कुल मिलाकर श्री विनोद अपनी ताकत और रूतबे से कर्मचारियों को अवगत कराते रहे.कर्मचारियों ने बिलखकर हाथ जोड़ते हुए कहा कि सर मार्केट की हालत खराब है..नौकरी नहीं हैं और तो और पता चलेगा कि चैनल बंद हो रहा है.. तो सेलेरी का मोलभाव भी नहीं कर पाएंगे.इस पर माननीय संपादक महोदय ने युवा पीढी को पत्रकारिता का वो पाठ पढाया जिसे शायद ही वहां मौजूद कोई भी शख्स भूल पाए.हद तो तब हो गई जब पी7 और 4 रीयल के सेलेटमेंट का हवाला देने पर एस एन विनोद साहब और कंपनी के तथाकथित वकील योगेश सोनी झुंझला गये.और असिस्टेंट लेबर कमिश्नर के साथ .सिटी मजिस्ट्रेट को झूठा करार दे दिया..और उनके दवारा चैनल के कर्मचारियों को दिलाये गये तीन महीने के मुआवज़े की खबर को अफवाह करार देने लगे.वैसे कंपनी कबसे घाटे में है..कैसे घाटे में है.. क्यों घाटे में है.कितने घाटे में है..घाटे से कैसे उबरेगी.ये सारा गुणा गणित श्रीमान विनोद की ज़ुबान पर था.

बहरहाल खबर ये भी है कि लगभग सभी कर्मचारियों ने अपने चेक ले लिये हैं.लेकिन वो जिया न्यूज़ ही क्या जहां चालाकी और चाटुकारिता का फल न मिले.पिछले कई महीनों से मालिक भक्ति में लीन कुछ लोगों को उनकी चाटुकारिता का पुरस्कार मिल ही गया.अपने साथियों के संघर्ष में तमाशबीन बने इन दोगलों को चैनल ने बाहर नहीं किया.बुलेटिन भी रोज की तरह जा रहे हैं.यानी चैनल शिफ्ट करने और आर्थिक तंगी के नाम पर रोये गये आंसू घड़ियाली निकले..ये पूरा काम एक बिल्कुल सोची समझी साज़िश के तहत हुआ..जिसमें पहले तो प्यादों ने बादशाह को वश में किया.और फिर वज़ीर बनने के लिये कईयों की गर्दन काटी.ये वहीं प्यादे हैं जिनके रिश्तेदार भी चैनल में अहम पद पर आसीन है..इन महानुभावों को पहले बड़े चैनलों से निकाला जा चुका हैं.इन्ही लोगों ने हर बार चैनल की नंगाई को ढकने की पुरज़ोर कोशिश की. पहले तो चैनल में क्षेत्रवाद के नाम पर पहाड़ी बनाम बिहारी का खेल चलता रहा..जिसकी ज़द में कई निर्दोष कर्मचारी सड़क पर आ गये.फिर धीरे धीरे चाटुकारों की आँख कांटा बने लोंगो को बड़ी कुशलता और तरतीबी से बाहर किया गया.और अंत में सारे कर्मचारियों के समाने स्वांग रचाकर रिज़ाईन लिया गया.एक तरफ इस पूरे घटनाक्रम में ये चाटुकार खुद को कर्मचारियों का सबसे बड़ा हितैषी बताते रहे. और वहीं दूसरी तरफ मालिक को मैनेज करते हुए पल पल की जानकारी उस तक पहुंचाते रहे.इस पूरे गेम प्लान में बेचारे कर्मचारी गेहूं में घुन की तरह पिसते गये.पाखंडियों का चैनल चल रहा है..आगे भगवान मालिक है.

(जिया न्यूज़ के एक भुक्तभोगी पत्रकार की जुबानी जिया न्यूज़ की कहानी)

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