बर्दवान विस्फोट मामले में एनआईए और संघ परिवार की भूमिका की हो जांच- रिहाई मंच

प्रेस विज्ञप्ति

लखनऊ, 30 नवंबर, 2014। अक्टूबर 2014 में बर्दवान, पश्चिम बंगाल में हुए विस्फोटों के बाद केन्द्र की राजग सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार में आरोप प्रत्यारोप के बीच स्वतंत्र जांच दलों और अंग्रेजी के एक प्रतिष्ठित मैग्जीन ने जिस तरह से एनआईए की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं, उसने साफ कर दिया है कि अब आतंकवाद की घटना की जांच नहीं बल्कि उस पर राजनीति हो रही है। रिहाई मंच ने कहा हैै कि इस राजनीति की शिकार आम जनता हो रही है और ऐसे में जब एनआईए की जांच पर गंभीर सवाल हीं नही बल्कि फर्जी घटना बनाने और उसे अंजाम देने का आरोप तक लग रहा है, ऐसे में इस घटना की जांच सर्वोच्च न्यायालय के सीटिंग जज की निगरानी में हो जिसके जांच के दायरे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, आईबी प्रमुख आसिफ इब्राहिम, एनआईए डीजी शरद कुमार समेत एनआईए और खुफिया अधिकारी भी हों।

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि पिछले दिनों जिस तरह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बर्दमान विस्फोटों को लेकर राॅ और बीजेपी की संलिप्तता पर सवाल उठाया है यह लोकतंत्र में गंभीर मसला है क्योंकि इससे पहले भी हिन्दुत्ववादी संगठनों पर उत्तर प्रदेश की कचहरियों में हुए धमाकों, समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव समेत कई जगहों पर आरोप लगे हैं।

रिहाई मंच के नेता राजीव यादव ने कहा कि इस मामले में एनआईए जांच को किस तरह से भटका रही है, उसका अंदाजा इससे लग जाता है कि विस्फोट में मारे गए जिस व्यक्ति को एनआईए करीम शेख बता रही है, उसके पिता जमशेद शेख दावा कर रहे हैं कि वह शव उनके बेटे का है ही नहीं और उन्हें एनआईए ने जबरन दबाव डालकर अपना बेटा स्वीकार करने का दबाव डाला। वहीं उनके मुताबिक शव की सिर्फ एक तस्वीर जो कथित तौर पर उनके बेटे की बताई गई, को मोबाइल में दिखाया गया। सवाल उठता है कि आखिर शव की तस्वीर हार्ड काॅपी में जो कि निश्चिततौर पर नियमतः पुलिस ने खींची हांगी, क्यों नहीं उन्हें दिखाई गई। वहीं मोबाइल में उन्हें जो तस्वीर दिखाई गई उसमें चेहरा और छाती पर घाव के जख्म नहीं थे। जबकि जो शव उनको दिया गया उसकी छाती और चेहरे के चीथड़े उड़े हुए थे। आखिर यह कैसे सम्भव है। वहीं यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि जब तस्वीर और शव में इतने अंतर्विरोध हैं तो फिर शव का डीएनए टेस्ट क्यों नहीं करवाया गया। जिससे यह साबित हो जाता कि वास्तव में वह जमशेद शेख का बेटा था या नहीं। वहीं इस नौजवान के मारे जाने के 1 माह 10 दिन बाद उसका नाम करीम शेख बताया जाना पूरी कहानी को संदिग्ध बना देता है। वहीं यह सवाल भी अहम है कि करीम बर्दवान से 60 किलोमीटर दूर किरनहार का रहने वाला है जबकि पुलिस मुखबिर के मुताबिक मरने से पहले उसने अपना गांव नैरोडिगी बताया था।

राजीव यादव ने कहा कि इस घटना में मारे गए दूसरे व्यक्ति, जिसे एनआईए शकील अहमद बता रही है की पहचान के लिए घर के मकान मालिक से क्यों नही शिनाख्त करवाई गई। इसी तरह इस घटना में घायल और अब गिरफ्तार अब्दुल हकीम के पिता शाह जमाल तक से उसकी शिनाख्त नहीं करवाई गई कि वास्तव मे वह कौन है। वहीं एनआईए की जांच पर सबसे बड़ा सवाल तो पुलिस के मुखबिर परवेज खान का सार्वजनिक हुआ यह बयान भी लगा देता है जिसमें उन्होंने कहा है कि विस्फोट में घायल व्यक्ति को जिसे पुलिस करीम शेख बता रही है, उसने उसे अपना नाम स्वपन मंडल बताया था। जो कि अखबारों में भी छपा था। जिसके तत्काल बाद पुलिस ने यह प्रचारित किया कि मरने से पहले उसने अपना नाम सुभान मंडल बताया था। वहीं परवेज का यह बयान भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि घायल व्यक्ति जो बाद में मर गया और जिसे करीम बताया जा रहा है उसका खतना नहीं हुआ था जबकि करीम के घर वालों के मुताबिक बचपन में ही उसका खतना हो चुका था। इन तथ्यों के आने के बाद और परवेज के इन बयानों के मुताबिक कि पुलिस ने उसे चुप रहने की हिदायत दी थी, यह आशंका और प्रबल हो जाती है कि इस घटना को राष्ट्रीय खुफिया-सुरक्षा एजेंसियों और संघ परिवार ने मिल कर करवाया है। तथा रणनीतिक तौर पर इसमें बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की हत्या का झूठा प्रचार करके बांग्लादेश से भी अपनी जांच के पक्ष में बयान ले लेने की रणनीति बनाई गई ताकि उसकी भूमिका पर सवाल न उठे। वहीं जिस अमजद शेख उर्फ काजल को इस घटना से जोड़ कर गिरफ्तार करने का दावा किया जा रहा है उसे स्वयं उनके पिता एनआईए के पास ले कर गए थे क्योंकि पुलिस ने उनसे कहा था कि उनके बेटे से पूछताछ करना चाहते हैं।

नागरिक परिषद के नेता रामकृष्ण ने कहा कि जिस तरह से बर्दवान विस्फोट के बाद लगातार घटना और उसकी जांच पर उठते सवालों के बावजूद, तथ्यात्मक न होकर भावावेश में एक समुदाय के खिलाफ जो माहौल बनाया गया और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री की हत्या करने की बात कही गई ऐसे में जब घटना और उसके जांच पर गंभीर सवाल उठ रहे हों तो इस घटना की सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज के नेतृत्व में जांच करवाई जाए। यह इसलिए जरूरी है कि जिस गुजरात माॅडल की बात कही जा रही थी वैसा ही एक षड़यंत्रकारी माॅडल फरेबी अधिकारियों के जरिए बर्दवान में बनाया गया। उन्होंने कहा कि कथित आतंकी गतिविधियां कराने, आतंकवाद के नाम पर फर्जी मुठभेड़ करने वालों को बचाने में संघ परिवार के करीबी अजीत डोभाल पहले से सक्रिय रहे हैं और उन्होंने इशरतजहां फर्जी मुठभेड़ के मास्टरमाइंड राजेन्द्र कुमार को भी बचाने का काम किया है। ऐसे में अजीत डोभाल का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने रहना देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक है।

द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम
प्रवक्ता, रिहाई मंच
09415254919

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