कृष्णकांत
यह लहर दरअसल आवारा पूंजी की है
टीवी चैनलों को राजनीतिक दलों से विज्ञापन के लिए करीब एक हजार करोड़ रुपये मिले हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि चैनलों पर तमाम नये – नये कार्यक्रम शुरू किए गए हैं जो दलों की ओर से विज्ञापन आकर्षित करने का प्रयास है.
एजेंसी पीटीआई अपने सूत्र के हवाले से लिखती है कि चुनावों के दौरान राजनैतिक प्रचार अभियानों में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और आउटडोर विज्ञापनों की श्रेणी में लगभग एक हजार करोड़ का अतिरिक्त खर्च हो रहा है।
हर कोई कुछ न कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहा है. मीडिया योजनाकारों का कहना है कि इस समय विज्ञापन का पारंपरिक बाजार मंद है और राजनैतिक खर्च एक आशीर्वाद की तरह बना हुआ है।
जाहिर है कि आशीर्वाद बिना वंदना के तो मिलता नहीं. यह कोई आश्चर्य नहीं है कि कोई औसत दर्शक—पाठक भी बता सकता है कि किस चैनल या अखबार का झुकाव किस दल के प्रति है.
दोस्तों किसी चौथे पांचवे खंभे के भ्रम में न रहें. हमारा तंत्र बाजार तंत्र है. संसद से लेकर हमारी झोपड़ी तक सब इसी बाजार तंत्र का हिस्सा है. यह जो लहर आई है, यह दरअसल आवारा पूंजी की लहर है जो बाजार के नियंता लेकर आए हैं. खुशफहमी पाल सकते हैं लेकिन इसकी कीमत हमीं आप चुकाएंगे.
(स्रोत-एफबी)