विनीत कुमार
इंडिया टीवी की एंकर तनु शर्मा ने अपने अधिकारियों द्वारा उत्पीड़ित किए जाने, दफ्तर की गुटबाजी और फिर बिना कारण बताए बर्खास्त कर दिए जाने पर दफ्तर के सामने ही जहर खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की। इससे पहले उन्होंने चैनल के उन अधिकारियों का नाम लेते हुए सुसाइड नोट की शक्ल में फेसबुक पर स्टेटस अपडेट किया, जिसमें इस बात को बार-बार दोहराया कि उनकी मौत के जिम्मेदार यही लोग हैं। सही समय पर अस्पताल पहुंचा दिए जाने पर फिलहाल तनु शर्मा की जान तो बच गई, पर इस घटना से इंडिया टीवी सहित बाकी समाचार चैनलों को लेकर कई चीजें उघड़ कर सामने आ गर्इं।
पहली बात तो यह कि 22 जून को तनु शर्मा ने फेसबुक पर जिन अधिकारियों का जिक्र किया और बाद में जो बयान दर्ज कराया उसके आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 306, 501 और 504 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया, पर इसकी एक पंक्ति की भी खबर किसी चैनल पर नहीं चली। उसी समय प्रीति जिंटा-नेस वाडिया मामले को लेकर इन चैनलों पर क्रमश: अपराध, मनोरंजन और ब्रेकिंग न्यूज जैसी खबरों के अलग-अलग संस्करण लगातार प्रसारित होते रहे। तनु शर्मा का मामला इससे किसी भी रूप में कम गंभीर और झकझोर देने वाला नहीं था।
दूसरा कि तनु शर्मा ने औपचारिक रूप से इस्तीफा नहीं दिया था। अपने एक सहकर्मी से मानसिक तनाव साझा करते हुए उसे एसएमएस किया था कि वे अब इस चैनल में काम करने की स्थिति में नहीं हैं। वह एसएमएस घूमते-घूमते एचआर डिपार्टमेंट तक गया और उसे तनु शर्मा का इस्तीफा मान कर उनकी बर्खास्तगी तक कर दी गई; उन्हें अपमानजनक ढंग से दफ्तर के बाहर रोक दिया गया।
तीसरी कि तनु शर्मा के हवाले से यह बात भी सामने आई कि पुरुष अधिकारी के साथ-साथ महिला अधिकारी ने भी उन्हें लगातार अलग-अलग तरीके से परेशान किया। मसलन, उनके कपड़े से लेकर अपीअरेंस तक पर हल्की बातें कहीं, उससे असहमति जताने पर तनु शर्मा पर कार्रवाई करने की धमकी दी।
चौथी और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि इंडिया टीवी जैसे चैनल के भीतर यह सब होता रहा और इसकी जानकारी चैनल के सर्वेसर्वा और ‘आपकी अदालत’ के जाने-माने प्रस्तोता रजत शर्मा को नहीं हुई, यह बात हैरान करने वाली और अफसोसनाक है। यह भला कैसे संभव हो सकता है?
यह सही है कि अपने चैनल के अधिकारियों और वहां के दमघोंटू माहौल से तंग आकर तनु शर्मा ने खुदकुशी की जो कोशिश की, उसे किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह एक टीवी एंकर की जिंदगी से उकता जाने को नहीं, एक मीडियाकर्मी के खोखलेपन को उजागर करता है। तनु शर्मा ने ऐसा करके सांकेतिक रूप से ही सही, यह संदेश देने की कोशिश की है कि न्यूज चैनलों की दुनिया में कुछ भी बदला नहीं जा सकता और इससे पार पाने का अंतिम विकल्प आत्महत्या है, जो कि सरासर गलत है। वे चाहतीं और शिद्दत से उन विकल्पों की ओर जातीं तो बहुत संभव है कि न केवल उनका जिंदगी के प्रति यकीन बढ़ता, बल्कि संबंधित अधिकारियों और चैनल को भी मुंह की खानी पड़ती। लेकिन ऐसा करके तनु शर्मा ने बेहद कमजोर और हताश करने वाला उदाहरण पेश किया है। कानूनी प्रावधानों के तहत आगे उनके साथ जो भी होगा, निस्संदेह वह मौत से कम तकलीफदेह नहीं होगा और दूसरा कि प्रोफेशनल दुनिया में उनके साथ जो व्यवहार किया जाएगा, वह भी कम दर्दनाक नहीं होगा। लेकिन इन सबके बीच न्यूज चैनल की दुनिया की जो शक्ल हमारे सामने उभर कर आती है, वह कहीं ज्यादा खौफनाक, अमानवीय और विद्रूप है।
तरुण तेजपाल और महिला पत्रकार यौन उत्पीड़न मामले में टीवी परिचर्चा (नवंबर 2013, प्राइम टाइम, एनडीटीवी इंडिया) के दौरान बीइए (ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन) के महासचिव एनके सिंह ने कहा था कि क्या लड़की तंग आकर सीधे पंखे से झूल जाए, तभी माना जाएगा कि उसका शोषण हुआ है, क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं? दुर्भाग्य से तनु शर्मा ने यह बताने के लिए कि उनका उत्पीड़न किया जा रहा है, वही कदम उठाया। लेकिन विडंबना देखिए कि ऐसा किए जाने पर भी इंडिया टीवी तो छोड़िए, दूसरे किसी चैनल ने भी एक पंक्ति की खबर नहीं चलाई। बीइए की तरफ से कोई बयान नहीं आया और न ही चैनल के रवैए की भर्त्सना की गई। टेलीविजन के नामचीन चेहरे, जो सोलह दिसंबर की घटना से लेकर तरुण तेजपाल मामले में लगातार बोलते-लिखते आए, इस मामले में चुप्पी साध गए। इनमें से अधिकतर, जो छोटी से छोटी घटनाओं को लेकर अपनी फेसबुक वॉल अपडेट करते रहे हैं, एक-दो को छोड़ कर इस पर एक पंक्ति भी लिखना जरूरी नहीं समझा।
न्यूज चैनलों में आमतौर पर चलन है कि कोई एक घटना पर चलाई गई खबर अगर टीआरपी ट्रेंड में फिट बैठती है, तो उसके प्रभाव में उसी मिजाज की एक के बाद एक खबरें प्रसारित होनी शुरू हो जाती हैं। फिर धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बनती है मानो देश में इसके अलावा कुछ और हो ही नहीं रहा। सोलह दिसंबर की घटना से लेकर उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में लड़कियों के साथ दुष्कर्म के बाद पेड़ से लटका देने की खबर आगे चल कर ऐसे ही ट्रेंड बने। इंडिया टीवी की एंकर तनु शर्मा की खबर इस लिहाज से भी लगातार चलनी चाहिए थी कि ठीक इसी समय प्रीति जिंटा-नेस वाडिया को लेकर लगातार खबरें प्रसारित होती रहीं, जो कि अब भी जारी हैं। इस बहाने इस बात पर भी चर्चा होनी शुरू हो गई कि हाइप्रोफाइल और सिनेमा की दुनिया में स्त्रियों की आजादी कितनी बरकरार है? ग्लैमर और हाइप्रोफाइल की दुनिया तक तो चर्चाएं होती रहीं, लेकिन ये कभी टेलीविजन तक खिसक कर नहीं आर्इं। तनु शर्मा मामले को स्त्री-शोषण, उत्पीड़न और ग्लैमर की चमकीली दुनिया के भीतर की सड़ांध की बहस से बिल्कुल दूर रखा गया। यह संयोग न होकर समाचार चैनल उद्योग की रणनीति का हिस्सा है।
इससे पहले भी हेडलाइंस टुडे की मीडियाकर्मी सौम्या विश्वनाथन की आधी रात दफ्तर से लौटते हुए संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई, सबसे तेज होने का दावा करने वाले मीडिया संस्थान ने एक लाइन की भी खबर नहीं चलाई, जबकि मामला श्रम कानून के उल्लंघन का भी था। स्टार न्यूज की सायमा सहर ने अपने ही सहकर्मी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया और मामला महिला आयोग से लेकर हाई कोर्ट तक गया, लेकिन कभी कोई खबर नहीं चली। तनु शर्मा सहित ये वे घटनाएं हैं, जिन्हें लेकर अदालत और पुलिस में बाकायदा मामला दर्ज है, जिन पर खबरें प्रसारित किए जाने पर यह सवाल भी नहीं किया जा सकता कि इन्हें महज कानाफूसी के आधार पर प्रसारित किया गया है। लेकिन न्यूज चैनलों के इस रवैए को आपसी समझदारी कहें या अघोषित करार कि देश-दुनिया की छोटी से छोटी घटनाएं, जिनमें एलियन गाय का दूध पीते हैं जैसे सवाल से टकराने से लेकर सांसद के घर कटहल चोरी होने तक की घटना पर खबरें प्रसारित की जाएंगी। इधर बीइए जैसी संस्था इस पर प्रेस विज्ञप्ति जारी करेगी कि ऐश्वर्या राय की शादी की कवरेज में क्या दिखाना, क्या नहीं, लेकिन शोषण-उत्पीड़न की कोई घटना अपनी बिरादरी के भीतर घटित होती है तो मौन सहमति का प्रावधान होगा।
सवाल सिर्फ चैनलों और उनकी नियामक संस्था की नैतिकता का नहीं, बल्कि उस दोहरे चरित्र का है, जहां वह कोर्ट-कचहरी, पुलिस, कानून की मौजूदगी के बीच भी अपने को स्वतंत्र टापू मानते हैं। स्वायत्तता के नाम पर दोमुंहेपन की एक ऐसी बर्बर जमीन तैयार करते हैं, जहां एक ही घटना दूसरे संस्थान या व्यक्ति से जुड़ी होने पर अपराध और उन पर खबरें प्रसारित करना जनसरोकार का हिस्सा हो जाता है, जबकि वही घटना खुद मीडिया संस्थान के भीतर होने पर घरेलू मामला बना कर चलता कर दी जाती है। यह कितनी खतरनाक स्थिति है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि चैनल पर तो छोड़िए, टेलीविजन के पूर्व चेहरे और अधिकारी जो रोजमर्रा मीडिया नैतिकता और सरोकार की दुहाई सोशल मीडिया सहित अलग-अलग मंचों से दिया करते हैं, वे भी ऐसे मामलों में चुप्पी साध जाते हैं कि कहीं इसकी आंच में संभावनाओं के रेशे न झुलस जाएं। चैनलों की आपसी सांठगांठ सहित व्यक्तिगत स्तर की चुप्पी हमें न्यूज चैनलों की जिस दुनिया से परिचय कराती है, उसकी छवि अपराधी के आसपास की बनती है, सरोकारी की तो कहीं से नहीं।
(साभार-जनसत्ता)
MEDIA KA GANDA CHEHRA RAJAT SHARMA AUR RITU DHAWAN KO JAIL ME DAL DENA CHAHIYE. KAB HINDUSTAN ME MAHILAYO KO PURA SAMMAN MILEGA. YEHI HAI MODI JEE KE ACHE DIN MAHILAYO PAR ATAYACHAR SAARE CHUP BAITHE HAI.