आलोक कुमार
पटना में रावण – दहन के उपरान्त मची भगदड़ के बाद जैसी कुव्यवस्था और बदइंतजामी देखने को मिली वो सुशासनी सरकार के बहुप्रचारित आपदा प्रबंधन के मुँह पर ‘तमाँचा’ ही है ….. तीन साल पहले छठ पूजा के अवसर पर ऐसी ही परिस्थितियों में ऐसा ही हादसा हुआ था और तब भी सरकार की व्यवस्था की पोल खुल गई थी लेकिन फिर भी सरकार चेती नहीं….. कल हादसे के बाद जैसी अफरा-तफरी और बदइंतजामी का माहौल हादसे की जगह से लेकर पीएमसीएच तक देखने को मिला उसे देखकर ये साफ जाहिर था सरकार की नजर में आम लोगों की जान की कीमत भेड़-बकरियों से भी बदतर है ….. पटना में रावण-दहन के दौरान लाखों की भीड़ दशकों से जुटती और इससे हर कोई वाकिफ है …बावजूद इसके प्रशासन की तरफ से किसी भी तरह के हादसे के निबटने की कोई माकूल व्यवस्था ना तो पहले कभी की जाती रही है ना ही कल भी किसी तरह के पुख्ता -इंतजामात थे ….. गांधी मैदान में मौजूद पूरा सुशासनी अमला वीआईपीओं की तीमारदारी और सुरक्षा में जुटा था ….
कुव्यवस्था का आलम तो ये था कि इतनी भीड़ की मौजूदगी के बावजूद गाँधी मैदान में प्रवेश व निकासी के लिए एक्जिबिशन रोड साईड में बना बड़ा गेट बंद था , पूरे गाँधी मैदान इलाके में एम्बुलेंसों की कोई तैनाती प्रशासन के द्वारा नहीं की गई थी , हादसे के बाद एम्बुलेसों को ढूँढने व राहत – कार्यों में लगाने का काम शुरू किया गया , गाँधी मैदान के बाहरी इलाकों में जिधर से भीड़ का आना और जाना होता है वहाँ ना तो पुलिस – प्रशासन की कोई मौजूदगी थी और ना ही पर्याप्त लाईट एवं पब्लिक – एड्रेस सिस्टम की कोई व्यवस्था प्रशासन के द्वारा की गई थी अगर ऐसी कोई व्यवस्था होती तो निःसन्देह मरने वालों के संख्या काफी कम होती ….. पीएमसीएच में तो हमेशा की तरह बदइंतजामी अपने चरम पर थी …. घंटो तक तो डॉक्टरों की खोज ही जारी थी ….. घायलों को ज़मीनों पर लिटाया जा रहा था , बिना कोई साफ-सफाई किए जख्मों पर मरहम-पट्टी किया जा रहा था और टाँके लगाए जा रहे थे , घायल खुद अपने हाथ में ही स्लाईन की बोतलें थामे नजर आ रहे थे …… और प्रशासन घायलों की मदद करने की बजाए मीडिया को रोकने में लगा हुआ था , कैमरा देखते ही पुलिस वाले ऐसा बर्ताव कर रहे थे मानों कोई बड़ा अपराधी दिख गया हो ….. मोर्चुयरी में तो लाशों के साथ ऐसा सलूक किया जा रहा था वैसा बूचड़खानों में देखने को मिलता है …. एक पर एक लाशें फेंकी हुई दिखीं ……
पीएमसीएच में ही मौजूद हादसे के कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि मरने वालों की संख्या सौ – सवा सौ से कम नहीं है , उनका कहना था कि अनेकों लाशों को एम्बुलेंसों में लादकर गंगा की तरफ पुलिस निगरानी में ले जाया गया है , अगर ये सच है तो धिक्कार है ऐसी सरकार और उसके पाखंडी ‘जन-रहनुमाओं ‘ पर ……
आलोक कुमार ,
(वरिष्ठ पत्रकार)
पटना .