अभिषेक उपाध्याय,एडिटर,इंडिया टीवी-
सेक्युलर होने का मतलब अंध बीजेपी विरोध नही होता। नरेंद्र मोदी से कोई हर बात पर क्यों सहमत हो? सो विरोध तो बनता ही है। लोकतंत्र इसी का नाम है। पर जब आप नरेंद्र मोदी नाम से ही नफरत करने लगें और अपने इसी रुख को “सेक्युलर” होने का सर्टिफिकेट मान लें तो दिमाग में कोई न कोई केमिकल लोचा ज़रूर है। फिर तो इस लोकतंत्र के वे करोड़ों नागरिक भी पागल और सिरफ़िरे ही हुए न, जो मोदी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। वोट कर रहे हैं। जब आप लालू के भ्रष्टाचार, मुलायम के घोर परिवारवाद और मायावती के अथाह दौलत प्रेम को ये कहते हुए “विरोधियों की साज़िश” बता दें कि ये सारे सेक्युलर लोग हैं तो समझ में आता है कि आपका ज़ेहन किस ख़तरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। जब आप मुस्लिम कौम के वोट को अपनी बपौती मानकर बैठ जाएं और न मिलने पर बुरी तरह बौखलाएं तो समझ में आता है कि आप उनके कितने बड़े शुभचिंतक हैं। आप उनके बच्चों की तालीम के लिए कुछ न करो। उनके रोज़गार की तो सोचो भी मत। उनके सिर पर कोई छत हो या वो पूरी उम्र हालात की बारिश में भीगते हुए ही काट दें, आपके कान पर जूं तक न रेंगे। आप बस सिर्फ और सिर्फ उन्हें नरेंद्र मोदी का डर दिखाओ, वोट उगाहो और फिर 5 साल के लिए भूल जाओ। बस यही है इस मुल्क की कथित सेक्युलर सोच। नरेंद्र मोदी का विरोध करने वाला भी इसी देश का नागरिक है। ये “स्पेस” होना ही चाहिए। जिस दिन ये विरोध खत्म हो जाएगा, इस देश का महान लोकतंत्र भी खत्म हो जाएगा। पर मोदी विरोध को आप सिर्फ एक क़ौम का वोट इकट्ठा कर राज करने का फॉर्मूला बना लें। खुद के कथित सेक्युलर होने का “सेल्फ मेड” मानक बना लें। मुसलमानो के हित में कुछ न करते हुए भी उनके सबसे बड़े खैरख्वाह होने का सर्टिफिकेट बना लें। तो पासा तो पलटेगा ही एक रोज़। मुसलमान को आपसे अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी की बेहतरी चाहिए, नरेंद्र मोदी का “डर” नही।