विवेक शुक्ला,वरिष्ठ पत्रकार –
ये बात होगी 90 के दशक के शुरूआती सालों की। हिन्दुस्तान टाइम्स में एक फोटो जर्नलिस्ट थे चन्द्रू मीरचंदानी। यारों के यार। हम से उम्र में 10-12 साल बड़े होंगे। एक दिन कहने लगे कि, हम अपना मेयफेयर गार्डन का घर बेच रहे हैं। घर बेचने की उन्होंने वजह नहीं बताई। पर हमने यह जरूर पूछा कि कौन है खरीददार… जवाब मिला, यूनिटेक रीयल एस्टेट कंपनी का मालिक संजय चंद्रा।
बात आई गई हो गई। पर साउथ दिल्ली के उस एलिट कॉलोनी के घर से हमारी भी बहुत सारी यादें जुड़ी थीं। चंद्रू भाई के घर बार-बार जाना होता था। मेयफेयर गार्डन कालोनी उनके पिता ने ही बनवाई थी। वे यूएनआई के जनरल मैनेजर थे। खैर, उसके बाद संजय चंद्रा ने रीयल एस्टेट के कारोबार में आगे बढ़ना शुरू कर दिया। एक के बाद एक प्रोजेक्ट। मैं तब तक हिन्दुस्तान टाइम्स के एचटी एस्टेट में कॉलम लिखने लगा था मित्र रशिम चुग के कहने पर। इसलिए समझ आ रहा था कि चंद्रू का घर खरीदने वाला तो आसमान को छू रहा है। तब ही मैंने इंडिया आफ इंडिया के टाइम्स प्रॉपर्टी में लिखना शुरू कर दिया। यही इच्छा थी उसके संपादक और मित्र प्रभाकर सिन्हा की। इस बीच, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर लिखने के क्रम में संजय चंद्रा से दो-तीन बार मुलाकात भी हो गई। बहुत सुसंस्कृत व्यक्ति लगा पहली नजर में। पर उसके बाद उसने अपने कस्टमर्स को जिस तरह से रूला-रूलाकर खरबों रुपया बनाया उसके आपको बहुत उदाहरण नहीं मिलेंगे।
चंद्रू भाई का घर खरीदने के दो दशक के भीतर सिंध (पाकिस्तान) से आए एक रिफ्यूजी परिवार के लड़के ने लूट-खसोट के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। संजय 2जी घोटाले में भी फंसा था।प्रार्थना कीजिए कि अपने कस्टमर्स को जार-जार आंसू रूलाने वाले संजय और बाकी बिल्डर्स का शेष जीवन जेलों की कोठरियों में ही गुजरे।
(लेखक के सोशल मीडिया प्रोफाइल से साभार)